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कहानी : अतुलनीय संबंध

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सुधा सिंह

दिसम्बर की कड़ाके की ठिठुरा देने वाली ठण्ड. ऐसे में दिल्ली तक के सफ़र में रात मे ट्रेन में  सब अपने अपने गर्म लिहाफ़ मे दुबके थे.

        श्रवण भी अपनी सीट पर बस दुबकने की ही तैयारी कर रहा था। सोने से पूर्व एक बार फ्रेश होने के इरादे से वो वॉशरूम की तरफ़ गया।वॉशरूम के बाहर की ओर दरवाजे के सामने 

एक अधेड़ उम्र की महिला एक छोटा सा थैला लिए बैठी थी.

     शायद उसमें उसका सामान था. गर्म कपड़ों के नाम पर मात्र एक पतला सा शॉल ओढ़े हुए थी, जो ठण्ड से राहत देने के लिए काफ़ी नही थी.

     श्रवण ने देखा महिला की आँखों में आँसू की बूंदें थी. जो बार बार गालों पर लुढ़क जाती.. और महिला शॉल से उसे पौंछ देती. तभी बाजू वाले ट्रैक पर कोई ट्रेन गुज़री..

      उससे आती हवा में वह महिला सिहर उठी. कम्पकम्पा कर स्वयं को स्वयं में लपेटने का प्रयास करने लगी.

“कहाँ जा रहीं हैं आप….”

अचानक श्रवण ने पूछ लिया.

महिला ने चेहरा ऊपर किया… श्रवण को देखा.

“मथुरा….”महिला ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

“टिकट नहीं लिया….”श्रवण ने पूछा.

“बेटा… अचानक जाना पड़ रहा है… 

टीसी आयेगा… तो ले लूँगी…”

महिला ने आँसू पोंछते हुए कहा.

“क्यों… ऐसे अचानक क्यों…. इतनी ठण्ड में.. आपको रिजर्वेशन करवाना चाहिए था.”

पता नही क्यों पर श्रवण को उस महिला से एक जुड़ाव सा महसूस हो रहा था।

“बेटा….अभी पता चला कि मेरी बेटी  प्रसव के दौरान चल बसी..” कहते कहते महिला फ़फक पड़ी।

“ओह…. तो आप अकेली.. परिवार का कोई और सदस्य…” 

श्रवण ने कुछ पूछना चाहा ।

“कोई भी नहीं है. हम माँ बेटी ही एक दूसरे का सहारा थीं. अभी साल हुआ. बिटिया का ब्याह किया था….”

महिला सिसकती हुई बोली.

इतने में टीसी आ गया। श्रवण महिला की मनःस्थिति बखूबी समझ रहा था. उसने महिला का टिकट बनवाया और 

उसे सीट पर बैठा कर.अपना एक कम्बल निकाल कर उसे ओढ़ाया.

महिला अचरच भरी निगाहों से बस उसे देखती रही..

        बेचारी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी. उसे तो श्रवण के रूप में जैसे स्वयं ईश्वर मिल गये थे।

“माँ जी.. आप ये हज़ार रुपये अपने पास रखें और अपना पता मुझे नोट करवा दीजिए.  फिर कभी ऐसा मत कहियेगा कि  आपका इस दुनिया में कोई नहीं.. यह आपका बेटा है न. हर महीने जितना भी सम्भव हो. पैसे भेजेगा. और जब कभी मौका लगेगा, मैं आपसे मिलने भी आऊँगा. माँ जी मैं आप पर कोई उपकार नही कर रहा हूँ. मुझे भी आपके रूप में माँ मिली है.”

     यह कह कर श्रवण ने महिला के चरण स्पर्श कर लिए।

       महिला की आँखों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी. उसे सबकुछ स्वप्न की तरह प्रतीत हो रहा था….। महिला कम्बल औढ़े चुपचाप लेटी श्रवण को निहार रही थी 

और श्रवण  वॉलेट में लगे 

अपनी माँ की तस्वीर को देख रहा था.।

कड़ाके की ठण्ड में जहाँ लोग अपने अपने बिस्तरों में दुबके हुए थे..  वहाँ अपनेपन के गर्म लिहाफ से ज़िन्दगी के सफ़र में एक अतुलनीय संबंध रूप ले चुका था। 

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