~आरती शर्मा
अंततः कल संझलौके बारिश आ ही गई ।बिकट बारिश। कई साल बाद इस तरह बरस रही है। आधे ओसारे तक पानी का झीसा आता है , खटिया – मचिया , ओढ़ना – बिछौना भिगो कर निकल जाता है। नशीले बयार की लहालोट लहर बारिश को चकरघिन्नी में घुमा रहा है।
बूँदे बेहया हो गई हैं , जगह , कुजगह कुछ नहीं देख रही , जहाँ मन किया वहीं झर जा रही हैं , डारे पर लटकी काकी की कथरी भीग कर चू रही है। बाबू की खटिया उतान हो गई है , उसका एक गोड़ा ऊपर उठ चुका है। नवल उपाधिया जनम के मुरहा , लम्मरदार को इशारा करता है
– काका ! ऊ देखो !
– का देखें बे ? कुछ सुझात बा का ?
– आपन खटोलवा देखो !
– का हुआ है , भीग गया होगा , और का !
– नाहीं ! मूतत बा , हम्म पहली बार खटिया देख रहे
हैं , टांग उठाय के मूतत
आगे जो कुछ भी हुआ वह “ वल्गर “ है , गाँव की पुरानी आदत है , इसका कुछ भी सामान्य नहीं चलता , रवायत भी , लेकिन मनसा , वाचा से ही , कर्मणा नहीं , यहाँ समाज आ खड़ा होता है। भाषा भरपूर दौड़ती है। कथित संभ्रांत भाषा की उम्र ज्यादा नहीं होती , अपने तो अपने मरती है साथ में सभ्यता को भी तोड़ देती है।
नवल और लम्मरदार का संवाद बीच में ही छोड़ कर वह वापस घर पहुँचना चाहता है।
– चलें लम्मरदार
– भीग जाओगे बेटवा , छाता लेते जाओ
– नहीं काका भीगना ही है यह छाता वाली बारिश नहीं है।
नवल हँसता है – ई बारिश त छाता क लहँगा।
नवल को वही छोड़ कर वह पैदल चल पड़ा। पूरे इत्मीनान के साथ।
वह अपने घर आ गया , बिलकुल भीगा हुआ। दरवाज़े पर खड़ा है , दरवाज़ा बंद है। फ़र्श पर , जहाँ वह खड़ा है पानी का एक चकत्ता बन चुका है , डगर भर की बारिश बूँद बूँद टपक रही है। कुरता निचोड़ता है। नीचे पानी का जमाव अपनी डगर खोज लेता है और सीढ़ी की तरफ़ निकल जाता है। दरवाज़ा खुल गया
– यह क्या भीग कर आ रहे हो ? नीचे देख रहे हो क्या है यह सब ?
– केवल पानी है !
– दुष्ट !
– पानी ही पहला पदार्थ है जो नीचे भागता है
– सब को मालूम है , लेकिन भीगने की क्या ज़रूरत पड़ गई ? रुक कर आते ?
– रोने का मन था
– रोने का ? बारिश में रोने का मन ?
– आंसू गिरते हैं लेकिन दिखते नहीं ,
– बकवास मत करो यहीं खड़े रहो , कपड़े बदल कर आना।
– और आंसू ?
– कोई नयी फ़िलासफ़ी खोज लाये हो ?
– वह हर व्यंग्य जो रुला दे , उससे बड़ा कोई हास्य नहीं होता , यह पढ़ लो।
उसने जेब से एक भीगा कागद का टुकड़ा निकाल कर बढ़ा दिया।
– किसने लिखा है यह
– लिखा है हमने , बोला है दुनिया का सबसे बड़ा हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन , भेजा है जे पी सिंह ने
चैपलिन बोल रहा है –
“ तीन बातें याद रखो , एक – दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है यहाँ तक की परेशानी भी। दो – बारिश में घूमना हमे इस लिये अच्छा लगता है कि , कोई भी हमारे आंसुओं को नहीं देख पाता। और तीसरा – हमारे लिये वह दिन सबसे ख़राब दिन होता है , जिस दिन हम हँस नहीं पाते।
बारिश रोने का मौसम है ! , वापस जाते कदमों की आवाज़ दरवाज़े की चौखट पकड़े खड़े उसके पास तक आती है। साँझ कब रात हो गई , पता ही नहीं चला। इन दिनों ऐन वक्त पर बिजली जाती है , बाहर घुप्प अँधेरा। अचानक कई मीठी आवाजों का दर्द , नीम पर पड़े झूले में आ गया। कजरी उठी –
“लछिमन कहाँ जानकी होईहैं , बड़ी बिकट् अंधेरिया ना.”
सावन की अंधेरी रात है राम सीता वनवास में है , साथ में लक्ष्मण हैं। सीता का हरण हो चुका है। राम लक्ष्मण से पूछते हैं, जानकी कहाँ होंगी , इस विकट अंधेरी रात में ?
सावन वियोग की गाथा है।