Site icon अग्नि आलोक

*कहानी : राजाजी का विदेश भ्रमण*

Share

       ~ प्रखर अरोड़ा 

राजा विदेश यात्रा पर जा रहा था। राजा की विदेश यात्रा की खूब चर्चा थी। हो भी क्यों न! महान देश के महान राजा की यात्रा जो थी। समाचार प्रस्तोता ऐसा ही कुछ प्रस्तुत कर रहे थे। 

      यात्रा करते-करते राजा इतना बड़ा यात्री बन गया था कि इसकी यात्रा के आगे सिंदबाद की यात्रा फेल थी। कहने वाले तो यह भी कहते कि सुबह उठते ही राजा की निगाहें नक़्शे पर जहाँ टिक जातीं, राजा उसी देश की यात्रा कर मारता था। 

यूँ तो राजा आये दिन यहाँ-वहाँ यात्राएं करता ही रहता था,मगर यह वाली…अभी वाली यात्रा कुछ खास थी। कारण था विदेश से मंगाया गया एक नया नवेला जलपोत। राजा इस नये वाले जलपोत से यात्रा करने वाला था। राज्य में इन दिनों एक से बढ़ कर एक दुखद समाचार आने का क्रम रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कभी किसान मर रहे थे, तो कभी कोई नई महामारी फैल जाती थी।

       नये जलपोत के आने से बहुत दिनों बाद एक खुश खबरी आयी थी। इसलिये यह जलपोत समस्त राज्य में उत्सुकता का सबब बना हुआ था। और उत्सुकता का दूसरा कारण टीवी चैनल वाले बनाए हुए थे। समाचार प्रस्तोता के अनुसार राजा के बाद अगर किसी में इतनी खूबियाँ हो सकती थीं,तो विदेश से मँगाया गया यह जलपोत ही था।

       चर्चा तो यहाँ तक थी कि जितनी धनराशि में यह जलपोत खरीदा गया है, उतनी धनराशि को अगर प्रजा में बाँट दिया जाता तो कम से कम दस लाख सबके बैंक खाते में आ जाते! कुछ का अनुमान पन्द्रह लाख तक का भी जाता था !

यात्रा की सभी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं। अब राजा को यह बात बतानी शेष थी।

    ‘महाराज, सारा प्रबन्ध हो गया है! विदेश में अपने आदमी आपके स्वागत की तैयारी में ढोल नगाड़े लिए तैयार खड़े हैं।’ मंत्री ने फाइनल रिपोर्ट दी।

   ‘ताश तो रखवा दिया न!’ राजा ने पूछा।

   ‘जी, महाराज! वो कैसे भूल सकता हूँ! साथ में चार एंकर भी!’ मंत्री ने बताया।

‘और शतरंज भी रखवा दिया है महाराज!’ मंत्री ने यह भी बताया।

    ‘शतरंज क्यों!’ राजा को शतरंज में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। वह कहता था कि शतरंज में सब काठ के होते हैं। कितने भी मर जाये,मगर खून किसी का नहीं बहता है। इसलिये शतरंज को लेकर उसका मंत्री से सवाल-जवाब करना लाजिमी था। 

      ‘इस बार की यात्रा बहुत लंबी है महाराज! दो-तीन दिन तो लग ही जायेंगे! मैंने सोचा कि ताश खेलते-खेलते अगर बोर हो जाएं, तो शतरंज आपकी बोरियत दूर कर देगा!’ मंत्री ने सही वजह बतायी। जो राजा को भी कहीं न कहीं पसंद आयी।

    ‘उसे तो नहीं भूले हो न!’ राजा ने यह बात कुछ विशेष अंदाज में कही।

‘सवाल ही नहीं उठता महाराज! इस बार कड़क माल है!’ मंत्री खुश हो कर बोला।

    ‘मैं क्या पूछ रहा हूँ!’ राजा थोड़ा सख्त होकर बोला।

    ‘चिलम के बारे में न महाराज!’ मंत्री कुछ शंकालू हो कर बोला।

‘चिलम!!!’ राजा ने किसी तरह से अपनी हँसी रोकी। फिर बहुत प्यार से बोला,’अरे यार, मैं जानता हूँ कि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो! तुम सब भूल जाओगे मगर ये नहीं भूलोगे! जानता हूँ… मगर मैं फोटोग्राफर के बारे में पूछ रहा था!’

      ‘ओह!’ अब मंत्री ने अपनी हँसी रोकी। ‘क्षमा करें महाराज! नहा-धोकर वो तो कब से तैयार बैठा है! इतना कर्तव्यनिष्ठ है कि खाली कमरे में फ्लेश चमका-चमका कर न जाने कब से फोटो उतारने का अभ्यास कर रहा है!’ मंत्री की बात सुनकर राजा को तसल्ली हुई। 

कुछ पल बाद ही राजा अपने नये अति सुसज्जित, अति आधुनिक विदेशी जलपोत पर सवार होकर, राष्ट्र के नाम आत्मनिर्भरता का नया संदेश दे कर, विदेश रवाना हुआ।

     अगले ही दिन यात्रा करते हुए राजा की एक फोटो समस्त राज्य में प्रदर्शित की गयी।

      लोगों ने देखा कि  जलपोत के अंदर राजा आराम नहीं काम कर रहा है। उसके आसपास कई कागज बिखरे हुए हैं। जिनमें से एक पर वह साइन करते हुए साइनिंग चेहरे के साथ दीख रहा है।

इस फोटो के प्रदर्शित होते ही राज्य की दसों दिशाओं में नियुक्त समाचार प्रस्तोता एक सुर में शब्दों की पुष्पवर्षा करते हुए, यह बताने के लिए मरे जा रहे थे कि समय का प्रबन्धन तो कोई राजा जी से सीखे!

ReplyForward
Exit mobile version