*जंग हिंदुस्तानी*
जंगल के बीचो बीच बसे इस गांव में आज काफी चहल-पहल थी । इस गांव में दोनों तरफ से नदी तथा दो तरफ जंगल था। गांव के लोग मछलियों का शिकार करते और मौज मस्ती के साथ जिंदगी गुजारते थे। इनके गांव तक कभी पुलिस नहीं पहुंचती थी। गांव वालों के पास हजारों एकड़ जमीन थी जिस पर एक सरकारी विभाग की नजर लगी हुई थी। हां, गांव में सुविधाओं का बहुत अभाव था।
आज स्कूल के पास काफी भीड़ जमा थी और सड़कों पर साफ सफाई का काम चल रहा था। ऐसा लगता था कि कोई बड़ा अधिकारी आने वाला है।
किसी गांव में घोंसला बनाकर रहने वाले गौरैया, कौवा आदि पक्षी भी उत्सुक थे कि इस दूरस्थ जंगल के गांव में आज क्या होने वाला है? कौवा तो गांव में घूम घूम कर जैसे लग रहा था कि न्योता बांट रहा हो। लेकिन गौरैया का चेहरा कुछ उदास था।
थोड़ी देर में जंगल से गांव की तरफ आती हुई कुछ गाड़ियां दिखाई पड़ी, सभी लोग सतर्क हो गए।
उनमें से एक नेता जैसा दिखने वाले व्यक्ति ने जो पहले इस गांव में रहता था और अब किसी कस्बे में दुकान खोल कर रह रहा था। यहां पर सिर्फ पुनर्वास का लाभ लेने के लिए आया हुआ था उसने गांव वालों को समझाते हुए कहा- देखिए, साहब लोग आ रहे हैं।अगर आप लोगों ने मांग किया तो आप लोगों को शहर के करीब में बसा दिया जाएगा और हर परिवार को दस लाख रुपए नगद दे दिया जाएगा 25 बीघा जमीन अलग से दी जा दे दी जाएगी। आपके बच्चों का भविष्य बन जाएगा, यहां जंगल में आपको क्या मिल रहा है? रोज-रोज बाघ भालू हाथी का खतरा! अगर आप लोगों ने जाने से इनकार किया तो आप लोग बरबाद हो जाएंगे।
पास आने पर पता चला कि आने वाले मेहमानों में कुछ अधिकारी, कर्मचारी और वर्दीधारी जवान भी साथ में है।
कोई चारपाई पर, कोई कुर्सी पर और कोई जमीन पर बैठ गया। बच्चे तो अमरूद के पेड़ पर और स्कूल की चारदीवारी पर बैठकर बात सुनने लगे।
उन सभी लोगों में से एक अधिकारी, जिसे सब लोग कलेक्टर साहब कहते थे। उन्होने कहा – इस गांव की क्या समस्या है?
कोई और बोलता इसके पहले उस नेता टाइप के आदमी ने बोलना शुरू किया – साहब,यह गांव चारों तरफ जंगल से घिरा हुआ है। आने-जाने के रास्ते नहीं है। जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। अभी पिछले महीने ही एक आदमी को हाथी ने मार दिया है ।हम गांव वाले चाहते हैं कि हमें पुनर्वास का लाभ देकर जंगल से बाहर कहीं पर बसा दिया जाए। हम सभी गांव वाले तैयार हैं।
क्यों भाइयों?
उसके बोलने का तरीका ही कुछ ऐसा था कि सारे लोगों ने हाथ खड़ा कर दिया और कहा “हां भाई हां”।
कलेक्टर साहब ने डिप्टी साहब से कहा -आप लोग इन गांव वालों की सूची बना दो और देख लो, जो पुनर्वास पाने के लायक हैं। उनकी सूची हमारे पास भेज दो, हम शासन में भेज देंगे।
मुश्किल से 10 मिनट तक बातचीत चली और इसके बाद कलेक्टर साहब के साथ आई हुई भीड़ वापस जंगल के रास्ते बाहर निकल गई।
गौरैया ने कौवे से कहा-सुना भाई आपने, गांव वालों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। सड़क बिजली और सुविधा मांगने के बजाय यह तो अपना विनाश मांग रहे हैं। यह गांव वाले तो घर उजाड़ कर चले जाएंगे लेकिन हम लोग हमारे बच्चे ,हमारे अंडे ,कहां जाएंगे?
कौवा ने गौरैया से कहा – बहन, चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह सरकारी कामकाज है। इसमें अभी बहुत दिन समय लगेगा। एक बात तुमने नहीं देखा, हमने देखा है । आज की जो यह बैठक थी इसमें तमाम विभाग के लोग मौजूद थे। यह ना कभी आपस में इकट्ठा होंगे और ना इन लोगों का पुनर्वास हो पाएगा । ना नौ मन तेल होगा और ना राधा नाचेगी। हां, यह गांव के लोग धोबी के कुत्ते हो जाएंगे । अब यह ना घर के रह जाएंगे और ना घाट के रह जाएंगे। ना तो इन्हें बैंक वाले कर्ज देंगे और ना ही अड़ोस पड़ोस के दुकानदार। यह त्रिशंकु की तरह लटके रह जाएंगे।
हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है बहन, जिसने हमें बनाया है वही हमारा जीवन रक्षा करेगा। गौरैया को कौवा की बात पर बहुत संतोष हुआ लेकिन वह चाह कर भी निश्चिंत नहीं हो सकी।
कौवा की बात सच निकली। कई बरस तक एक के बाद एक तमा सूची बनाई गई। पहले 400 परिवार, फिर ढाई सौ परिवार, फिर 75 परिवार और इसके बाद 40 परिवार पात्र पाए गए और अचानक एक दिन सूची निरस्त कर दी गई और फिर से सूची बनाने का काम शुरू कर दिया गया।
गांव वाले भी दिन में सपने देख रहे थे कि उन्हें 2 हेक्टेयर प्रति परिवार जमीन मिल जाएगी और 10 लाख रुपए मिल जाएंगे। इसके बाद वह घर मकान खरीदेंगे, लड़की की शादी करेंगे, और कार खरीद कर जिंदगी में ऐश करेंगे। कौव्वा गांव वालों की बात को जब सुनता तो उसे बहुत हंसी आती थी।
एक दिन एक हाथी गांव की तरफ आया तो कौवे ने शिकायत किया – देखो, हाथी तुम्हारी वजह से यह गांव उजड़ने जा रहा है।
हाथी ने कहा- मेरी वजह से नहीं बल्कि यह गांव इन लोगों के अपनी वजह से उजड़ रहा है। अगर यह लोग अपने रास्ते साफ कर लें, तार फेंसिंग लगा ले, संगठन बना लें तो हम क्या हमारा बाप भी इनका नुकसान नहीं कर पाएगा। लेकिन यह लोग केवल अपने अपने खेत के किनारे तार लगाएंगे। एकमुश्त मिलकर जंगल के किनारे तार लगाने का या खाई खोदने में इनकी नानी मर जाएगी। रास्ता खुला होगा तो हम भी आएंगे और जीव जंतु आएंगे।
इधर पुनर्वास के लिए कई बार सूचियां बनाई गई और मिटाई गई। लोग रोज रोज की बैठक से तंग आ चुके थे। अधिकारी आश्वासन पर आश्वासन दे रहे थे लेकिन निस्तारण नहीं कर रहे थे।
अचानक एक दिन लेखपाल गांव में सूची लेकर आया और कहा कि यह फाइनल सूची है। सब लोग साइन करो।
गांव वालों ने सूची देखा तो सिर पकड़ कर बैठ गए। जो लोग गांव से जा चुके थे और कहीं बस गए थे या फिर जिन लोगों की केवल जमीन थी और वहां नहीं रहे थे। उन्हें पुनर्वास योजना का लाभ देने का पात्र समझा गया था और 10 पांच लोगों को छोड़कर बाकी मूल निवासियों को अवैध घोषित कर दिया गया था। गांव वाले ने इसका विरोध किया तो एक बार फिर अधिकारियों ने आश्वासन देकर मना लिया और इसके बाद पूरे गांव को 40 किलोमीटर दूर एक जंगल के अन्य ऐसे क्षेत्र में उन्हें पहुंचा दिया गया जहां हर साल बाढ़ आती थी और वह डूब क्षेत्र था। लेकिन मरता क्या न करता। लालच में पड़कर गांव वाले एक बार जंगल से बाहर हुए तो दोबारा वापस जंगल में नहीं आ सके।
गौरैया गांव को उजड़ते तथा अपने अंडो और छोटे-छोटे बच्चों से भरे नष्ट होते घोसले को देखकर रोती बिलखती रही और अंत में जंगल छोड़ने पर मजबूर हो गई।
कौवा भी उड़ कर चला गया और फिर उस गांव की ओर लौट कर नहीं आया। गांव के उजड़ने के बाद हिरन , हाथी और बाघ भी निराश हो गए। अब उधर की तरफ कभी नहीं आते हैं। एक दिन बाघ ने हाथी से कहा -जब इंसान ही नहीं रहे तो हम यहां रहकर क्या करें। हमारा इंसानों के साथ जन्म जन्म का नाता है। कभी वह हमसे नाराज होते हैं कभी हम उनसे नाराज होते हैं लेकिन इतना नाराजगी की उम्मीद नहीं थी कि वह हमें छोड़कर चले जाएंगे।
बहुत दिन बाद एक दिन कौवा की मुलाकात गौरैया से हुई तो गौरैया ने कौवे से पूछा कि उस गांव का क्या हाल है जो गांव उजड़ गया था? कौवा ने कहा कि जैसे 100 वर्ष पुराना पेड़ जड़ से उखड़ने के बाद कहीं नहीं लग पाता है और सूख जाया करता हैं उसी तरह उस गांव का बुरा हाल हुआ।इस साल की बाढ़ में वह गांव एक बार फिर उजड़ गया और वहां के लोग बाल बच्चों को लेकर दिल्ली पंजाब में रिक्शा चलाने के लिए निकल चुके हैं। बहन, अब हमें वह गांव भूल जाना चाहिए। इतना कहते हुए कौवा और गौरैया अलग-अलग दिशा में उड़ गए।
(कहानी काल्पनिक है)