~ रीता चौधरी
गजानन्द बहुत ही पुण्यात्मा व्यक्ति था. ईश्वर के प्रति परम् आस्था थी. वो अपने परिवार सहित जिसमे उसकी पत्नी और छोटे छोटे बच्चे थे सब को लेकर तीर्थ यात्रा के लिए निकला।
ये घटना उस ज़माने की है ज़ब सिर्फ बैल गाड़िया अथवा घोड़ा गाड़िया ही हुआ करती थी.
गजानंद परिवार सहित पैदल ही यात्रा करता हुआ बहुत दूर तक जा पहुंचा. जेठ की गर्मी थी थकान के मारे पूरे शरीर से पसीना छूटने लगा प्यास से गला सूखने लगा तो एक पेड़ की छाँव मे रुके और अपने साथ जो पानी लाए थे उसे पी कर अपनी प्यास बुझाई.
कुछ देर आराम करने के बाद आगे की यात्रा तय करने लगे.
अब चलते चलते ऐसी जगह पर पहुंचे की दूर दूर तक कोई नही, गर्मी भी अपनी चरम सीमा पर आग बरसा रही थी. अब साथ मे जो पानी लाए थे वो भी खत्म हो चुका था.
गजानंद ईश्वर का नाम जपते भजते हुए आगे बढ़ते रहा और ईश्वर से कहता रहा हे ईश्वर तू ही कोई मार्ग दिखा.
तभी कुछ दुरी पर गजानंद को एक साधु तप करता हुआ नजर आया, व्यक्ति ने उस साधु से जाकर अपनी समस्या बताई। साधु बोले कि यहाँ से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है, जाओ जाकर वहाँ से पानी लेकर अपने परिवार की प्यास बुझा लो।
साधु की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने साधु को धन्यवाद दिया। पत्नी एवं बच्चों की स्थिति नाजुक होने के कारण गजानंद ने रुकने के लिये बोला और खुद बाल्टी उठाए पानी लेने चला गया।
गजानंद दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पाँच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे। पुण्य आत्मा को उन पाँचो व्यक्तियों की प्यास देखी नहीं गयी और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया।
जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पाँच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे। पुण्य आत्मा गजानंद सोच मे पड़ गया की अरे प्रभु ये कैसी लीला है तेरी.
अब ये कैसे धर्म संकट मे फंसा दिया मुझे. वहाँ मेरी पत्नी और बच्चे प्यास से व्याकुल है और यहां ये लोग भी बुई हालत मे. अब ऐसे मे इनको प्यासा छोड़ कर चला जाऊ तो स्वार्थी कहलाऊंगा. और समय पर उन तक ना पहुंचा तो पापी कहलाऊंगा.
ये कैसी परीक्षा है प्रभु, कृपया कोई मार्ग दिखाओ. इस बार फिर गजानंद ने उनसब को पानी पिला दिया और तेजी से दौड़ता हुआ दरिया से फिर पानी ले आया.
यही घटना बार-बार हो रही थी, और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधु उसकी तरफ चल पड़ा। बार-बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधु बोला- “हे पुण्य आत्मा, तुम बार-बार अपनी बाल्टीभरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए खाली कर देते हो।यह जानते हुए भी की उधर तुम्हारे बच्चे भी प्यासे है. इससे तुम्हें क्या लाभ मिला?
पुण्य आत्मा ने बोला मुझे क्या मिला, या क्या नहीं मिला इसके बारे में मैंने एक बार भी विचार नही किया पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया।
साधु बोला आखिर ये कैसा धर्म है – “ऐसे धर्म निभाने से क्या फायदा जब तुम्हारे अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचें?
तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया। पुण्य आत्मा ने पूछा- “कैसे महाराज?
साधु बोला- “मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया। तुम्हें भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था। ताकि तुम अपने परिवार की प्यास भी बुझा सको और अन्य प्यासे लोगों की बहुत प्यास बुझ जाए। फिर किसी को अपनी बाल्टी खाली करने की जरुरत ही नहीं”।
इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गया। इस तरह तुम इस धर्म संकट से बाहर निकल सकते थे.
यह सुन गजानंद तुरंत बाल्टी मे पानी लिए सबको दरिया का रास्ता बताता हुआ अपने परिवार की प्यास बुझाने के लिए दौड़ पड़ा.