(लैंग्स्टन ह्यूज़ की स्टोरी का भाषिक रूपांतर)
वह बड़ी कद काठी की हृष्ट पुष्ट स्त्री थी और उसके हाथ में उस जैसा ही एक बड़ा सा पर्स था – पर्स में दुनिया भर का सामान ठुँसा पड़ा था, बस हथौड़ा और कीलों को छोड़ कर। पर्स का खूब लंबा पट्टा उसने अपने कंधे पर टाँगा हुआ था… रात के करीब ग्यारह बज रहे थे, सुनसान सड़क पर वह अकेली जा रही थी कि पीछे से दौड़ता हुआ एक लड़का पास आया और उसका पर्स झपट कर भागने की कोशिश करने लगा। लड़के के धक्के के पहले ही झटके में पट्टा टूट गया पर; लड़के का अपना वजन और पर्स का भार मिलकर इतना हो गया कि वह सँभल नहीं पाया और लड़खड़ाकर वहीं सड़क के बीचों बीच पीठ के बल गिर पड़ा।
भारी भरकम स्त्री झटक कर फुर्ती से पीछे मुड़ी और लड़के की आसमान में उठी टाँग पकड़ कर तड़ातड़ पीटने लगी। उसके बाद नीचे झुक कर उसने लड़के का कॉलर पकड़ लिया… ऐसे दनादन झापड़ रसीद करने लगी कि उसके दाँत किटकिटा गए – अब लड़का पूरी तरह उसकी गिरफ्त में था।
स्त्री बोली : “बच्चे, मेरी किताब नीचे से उठाओ और मेरे हाथ में थमाओ।”
यह कहते हुए भी उसने लड़के का कॉलर थामा हुआ था पर इतना ढीला छोड़ दिया कि वह नीचे झुक कर सड़क पर गिरे सामान उठा सके।
“क्या तुम्हें यह सब करते हुए शर्म नहीं आती?,” उसने लड़के की आँखों में आँखें डाल कर पूछा।
“आई, मैम…” लड़के ने मुँह झुका कर जवाब दिया।
“फिर ऐसा क्यों किया?”
“ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था…”
“झूठे… तुम सरासर झूठ बोल रहे हो।”
इस बीच कुछ लोग उधर से निकले… खड़े हुए… ठहर कर तमाशा देखने लगे।
“मैं तुम्हारा कॉलर छोड़ दूँगी तो तुम तो जान छुड़ा कर भाग जाओगे।”, स्त्री ने लड़के की ओर मुखातिब होकर कहा।
“हाँजी, मैम।”
“फिर तो मैं तुम्हें छोड़ने से रही।”, स्त्री ने कहा और कॉलर कस कर पकड़े रही।
“सॉरी मैम… मुझसे गलती हो गई… सॉरी।”, लड़का गिड़गिड़ाया।
“हूँ… देखो तो तुम्हारा चेहरा कितना गंदा है… आज घर ले जाकर तुम्हारा चेहरा साबुन से रगड़ रगड़ कर धोऊँगी… घर में किसी ने तुम्हें अपना चेहरा धोने के लिए नहीं कहा?”
“नहीं… “, धीरे से लड़के ने शब्दों को चबाते हुए जवाब दिया।
“तो चलो मेरे घर, आज तो इसको साफ होना ही है।”, सड़क पार करते हुए डर से काँपते उस लड़के को लगभग घसीटते हुए भारी भरकम स्त्री ने कहा।
देखने से वह चौदह पंद्रह साल का लड़का लगता था… दुबला पतला और लंबा, टेनिस शू और नीली जीन्स पहने था।
चलते चलते उसको देखते हुए स्त्री बोली : “तुम्हें तो मेरा बेटा होना चाहिए था …मैं सिखाती गलत क्या होता है, सही क्या… इतना तो कर ही सकती हूँ कि अभी चल कर तुम्हारा चेहरा धो कर साफ कर दूँ। भूख लगी है?”
“नहीं मैम… मैं बस इतनी गुजारिश करूँगा कि आप मेरी कॉलर छोड़ दें।”, घिसटते घिसटते लड़के ने बिनती की।
“जब मैं मोड़ पर पहुँची तो मुझे देख कर तुम्हें किसी तरह की परेशानी हो रही थी क्या?”
“नहीं मैम”
“फिर तुमने मुझे पीछे से आकर धक्का क्यों मारा?” स्त्री ने सवाल किया… “तुमने देखा तुम्हारे धक्के से मुझे कुछ हुआ नहीं तो फिर तुम्हारे मन में दूसरा खयाल आया… अब चलो घर, मैं भी तुम्हें बताती हूँ… तुम भी मिसेज लुइला बेट्स वाशिंगटन जोन्स को क्या याद करोगे!”
लड़के के चेहरे से पसीना चू रहा था और वह किसी तरह खुद को स्त्री की पकड़ से छुड़ाने का यत्न कर रहा था। मिसेज जोन्स चलते चलते थोड़ा ठहरीं, उस लड़के को नीचे पटक दिया और कॉलर छोड़ अब एक बाँह पकड़ कर घसीटने लगीं। घर पहुँच कर वे उस लड़के को लेकर सीधे अंदर चली गईं… बड़ा हॉल पार कर किचेनेट लगे अपने कमरे में पहुँच कर ही रुकीं। उन्होंने कमरे की बत्ती जलाई और बाहर जाने वाला दरवाजा खोल दिया। घर बड़ा था और लड़के को पहले से वहाँ मौजूद अन्य लोगों की आवाजें सुनाई दे रही थीं… वह समझ गया, इस घर में वह स्त्री अकेली नहीं रहती है बल्कि उसके साथ साथ और लोग भी हैं। कमरे के बीचों बीच ले जाकर स्त्री ने लड़के को छोड़ दिया।
पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“रोजर”, उसने जवाब दिया।
“हाँ तो रोजर, सिंक पर जाओ और अपना मुँह धो कर आओ।”
लड़के ने पहले दरवाजे की तरफ देखा… फिर स्त्री का चेहरा निहारा… इसके बाद चुपचाप सिंक पर चला गया।
“नल खुला रख कर कुछ देर छोड़ दो… उसे तब तक चलने देना जब तक गुनगुना पानी न आने लगे” ,स्त्री ने हिदायत दी… “यहाँ साफ तौलिया रखा है, देख लो।”
“क्या आप मुझे जेल भेज देंगी?”, लड़के ने सिंक पर झुकते हुए जिज्ञासावश पूछा।
“ऐसे गंदे चेहरे के साथ भला क्यों भेजूँगी… वैसे मैं तुम्हें कहीं नहीं भेज रही हूँ… मैं दिन भर खट कर घर लौट रही थी कि कमरे पर पहुँचते ही कुछ बना कर खाऊँगी… और तुम हो कि मेरा पर्स झपट कर भागने लगे… हो सकता है तुमने भी खाना न खाया हो, पर अब तक तो बहुत देर हो गई है। बताओ, तुमने दिन भर में कुछ खाया है?”, स्त्री ने एक साँस यह सब पूछ लिया।
“मेरे घर में कोई नहीं है।”, लड़के ने बताया।
“तब चलो हम दोनों मिल कर कुछ खाते हैं”, स्त्री बोलती रही : “मुझे लगता है तुम्हें भूख लगी होगी – यहाँ पहुँच कर अब तो यह भूख और भी बढ़ गई होगी – तुमने मेरा पर्स झपटने में भी तो अच्छी खासी मेहनत की है।”
“मुझे नीले रंग का सुएड का जूता चाहिए…”, लड़का बोल पड़ा।
“पर यह जूता खरीदने के लिए तुम्हें मेरा पर्स छीन कर तो नहीं भागना चाहिए था न”, स्त्री बोली : “मुझसे माँग लेते, मैं इसके लिए तुम्हें पैसे दे देती।”
“मैम?”
लड़के ने अपना चेहरा उठा कर स्त्री को देखा, उसके अभी धुले हुए चेहरे से अब भी पानी की बूँदें चू रही थीं। वह देखता रहा, देखता रहा… उसे पता ही नहीं चला इसमें कितना समय बीत गया, लगता था समय का एक मुलायम सा टुकड़ा उनके बीच ठहर गया है। इस बीच उसने अपना चेहरा पोंछ लिया… इसके बाद भी जब उसको कुछ समझ नहीं आया तो उसने दुबारा तौलिये से पोंछ कर अपना चेहरा सुखाया। लड़का असमंजस में था, अब आगे क्या करे – सामने का दरवाजा खुला था, छलाँग लगा कर वह बाहर भी भाग सकता था… एक दो तीन, अभी यहाँ और अगले पल घर से बाहर।
स्त्री बिस्तर पर बैठी थी, थोड़ी देर बाद कुछ सोचते हुए बोली : “कभी मैं भी तुम्हारी तरह थी, लड़की थी… और कई चीजों की लालसा होती थी पर खरीदने को जेब में पैसे नहीं होते।”
देर तक दोनों खामोश बैठे रहे। फिर लड़के ने मुँह खोला पर उसकी भँवें तनी हुई थीं – उसको भँवों के तने होने का एहसास नहीं था।
“तुमने उम्मीद लगाई हुई थी कि अपनी बात मैं वहीं खतम नहीं करूँगी बल्कि कहूँगी : मगर… है न यह बात? तुमने सोचा होगा मैं कहूँगी : मगर मैंने किसी का पर्स तुम्हारी तरह नहीं छीना… मैं यह नहीं कहूँगी… बिलकुल नहीं कहूँगी।”
इसके बाद दोनों के बीच खामोशी पसरी रही… खामोशी और सिर्फ खामोशी…” मैंने भी यह सब किया है… क्या क्या किया है यह सब नहीं बताऊँगी… मेरे बच्चे, न तुमसे कहूँगी और न कभी ऊपर वाले को ही बताऊँगी यदि उसे अब तक मेरी कारस्तानियों का पता न लगा हो। थोड़ी देर यहाँ बैठो, मुझे बस थोड़ा समय और लगेगा खाना तैयार करने में… तब तक एक काम करो बेटे, वहाँ कंघी रखी है – अपने बाल सीधे कर लो, और झट से अच्छे बच्चे बन जाओ।”
कमरे के दूसरे छोर पर गैस का चूल्हा और आइस बॉक्स रखा था… मिसेज जोन्स वहाँ से उठा कर चूल्हे के पास गईं – उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी कि उनके पास से हटते ही लड़का उठ कर बाहर भाग सकता है… न ही इसकी फिक्र थी कि ठीक उसी के सामने उनका पर्स रखा हुआ है।
वह लड़का था कि अपनी जगह से थोड़ा हट कर ऐसी जगह बैठ गया जिससे मिसेज जोन्स की निगाह से ओझल न हो बल्कि काम करते हुए भी उन्हें दिखता रहे… यदि वे उसपर नजर रखना चाहें। उसको लगा जिस स्त्री ने उस पर उतना भरोसा किया है उसका भरोसा किसी सूरत में टूटना नहीं चाहिए… वह किसी शक की छाया से एकदम बाहर रहना चाहता था।
“पास के स्टोर से कुछ सामान लाना हो तो बताइए, मैं जाकर ले आता हूँ… दूध, या और कोई और सामान?”, लड़का बोला।
“वैसे मुझे तो नहीं लगता कुछ चाहिए पर यदि तुम्हें शक्कर वाला दूध चाहिए तो जाकर ले आओ… अभी मेरे पास डिब्बे वाला दूध है, उससे मैं हम दोनों के लिए कोको ड्रिंक बना रही हूँ।”
“अरे यह तो बड़ी अच्छी बात हुई।”, लड़का एकदम से चहक कर बोल पड़ा।
स्त्री ने आइस बॉक्स में रखी कुछ चीजें गरम कीं और कोको ड्रिंक बना कर टेबल पर रखा। पर उसने लड़के से एक बार भी उसके घर का पता ठिकाना नहीं पूछा… न परिवार के बारे में ही पूछा… दरअसल वह ऐसी कोई बात पूछ कर उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी। टेबल पर साथ साथ बैठ कर खाना खाते हुए अलबत्ता उसने अपने काम के बारे में उसको बताया – होटल के ब्यूटी शॉप के बारे में बताया जो रात देर तक खुला रहता है और जहाँ सब तरह की औरतें आती जाती हैं। कोको पी चुकने के बाद उसने अपने पास रखा केक आधा काट कर लड़के को दे दिया : “अच्छी तरह से खा लो बच्चे, शर्माना नहीं, भूखे बिलकुल नहीं रहना।”
खाना पूरा होने पर उसने लड़के को दस डॉलर का नोट थमाया और कहा स्टोर में जाकर अपनी पसंद का नीला सुएड शू खरीद ले : “कान खोल कर सुन लो बच्चे – अगली बार मुझे मेरा या किसी और का पर्स झपटते नहीं दिखने चाहिए, समझे… छीने हुए पैसों से जो जूता खरीदोगे वह तुम्हें सुख नहीं देगा बल्कि पैर जला कर छलनी कर देगा… बच्चे, अब घर जाओ, मेरे सोने का समय हो गया… आज के बाद तुम अच्छे बन कर रहोगे, मुझे तुम पर भरोसा है।”, स्त्री ने कमरे से निकलते हुए उसे हिदायत दी।
उसे लेकर वह बाहर के दरवाजे तक छोड़ने आई, बोली : “गुड नाइट बच्चे… घर जाओ और अब खूब अच्छे से रहना।”
लड़का बस इतना बोल पाया : “थैंक यू, मैम”, हालाँकि मिसेज लुइला बेट्स वाशिंगटन जोन्स से कहना वह और भी बातें चाहता था… सुनसान सड़क पर कुछ कदम चल कर उसने पीछे पलट कर देखा, स्त्री के दरवाजा बंद करते करते वह फिर इतना ही बोल पाया : “थैंक यू…” उस रात के बाद से उसे मिसेज जोन्स फिर कभी नहीं दिखाई दीं।