अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कहानी : तिवारी मास्साब

Share

पुष्पा गुप्ता 

     तिवारी मास्साब सेठ नत्थूमल गेंदामल मेमोरियल इण्टर कालेज, यानी एस. एन. जी. एम. इण्टर कालेज में हाईस्कूल के छात्रों को गणित पढ़ाते थे I खैनी को ज्ञानवर्धिनी चूर्ण कहते थे और जब छात्रों को पीटने का मन होता तो कहते थे, “आज सरस्वती की कृपा बरसने वाली है!”

       क्लास के अतिरिक्त बाकी सारा समय तिवारी मास्साब प्रिंसिपल के दरबार में बिताते थे I वह मैनेजर साहब के भी प्रिय थे और सुबह-शाम तीन-तीन घण्टे घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे I मुहल्ले के काली मंदिर में कीर्तन के बाद वह आरती की थाली हाथ में लिए भावविभोर होकर नाचते हुए आरती गाते थे I

तिवारी मास्साब पैण्ट-शर्ट पहनते थे और शर्ट के कालर के पास से उनका जनेऊ झाँकता रहता था I जनेऊ से चाभियों का गुच्छा बँधा रहता था जिसे वह पैण्ट की जेब में डाले रहते थे.

     जब वह चलते थे या उछल-उछलकर विद्यार्थियों पर सरस्वती की कृपा बरसाते थे तो चाभियों का गुच्छा पैण्ट में बजता रहता था I

       तिवारी मास्साब अपने आसपास की ज़्यादातर चीज़ों से असंतुष्ट रहते थे और बात-बात में बस एक ही जुमला दुहराते थे, “यह महाचूतियों का देस है!” अंग्रेज़ों के जमाने के अनुशासन के वह बहुत बड़े प्रशंसक थे और मानते थे कि काहिल-जाहिल भारतीय सिर्फ़ डंडे के भय से ही काम कर सकते हैं और अनुशासित रह सकते हैं.

        भारत के लिए वह तानाशाही को सबसे सही शासन-प्रणाली मानते थे I देश की आज़ादी से, आरक्षण से, दलितों के ब्राह्मणों के बच्चों के साथ बैठकर पढ़ने से, सभी मुसलमानों के पाकिस्तान नहीं जाने से, ब्राह्मणों की अवनति से, बढ़ती आबादी से, औरतों की बेशर्म पोशाकों से, प्रेम और अन्तर्जातीय विवाहों से और ऐसी तमाम चीज़ों से तिवारी मास्साब बेहद दुखी रहा करते थे I 

        तिवारी मास्साब की बेटी मुहल्ले के किराने के दुकान वाले के लौंडे के साथ कुछ बरस पहले भाग गयी थी और मास्साब ने उसे मरा मान लिया था I उनका इकलौता लड़का प्रद्युम्न तिवारी, जिसे उसके साथी-संघाती ‘परदुमन बकचोद’ कहते थे, पढ़ने-लिखने में महाफिसड्डी था, हर कक्षा में एक-दो साल लुढ़कने के बाद ही अगली कक्षा में पहुँच पाता था, बीए पास कर लेने की उमर तक पहुँच कर कक्षा नौ तक का ही सफर तय कर पाया था, भाँग के दो गोले रोज़ाना खाता था और उसे भोलेशंकर का प्रसाद बताता था I

         परदुमन मान-अपमान से ऊपर उठकर परमहंस हो चुका था I बरसों भरपूर पिटाई-कुटाई के बाद तिवारी मास्साब भी अब हार मान चुके थे और गाँव में बचा हुआ दो बीघा खेत बेचकर अपने कुलदीपक के लिए एक किराना स्टोर खुलवाने के प्रोजेक्ट पर गंभीरतापूर्वक काम कर रहे थे.

        परदुमन अपने यार-दोस्तों के बीच कहता था, “जानते हो, मेरा बपवा खुदई परम चूतिया है!” और फिर वह ‘फिस्स-फिस्स’ करके हँस देता था I

फरवरी का महीना था I बोर्ड परीक्षाओं के लिए एडमिट कार्ड लेकर छात्र घर लौट रहे थे I कालेज के पास के  चौराहे पर पान की एक दुकान थी जहाँ कुछ लड़के पान-सिगरेटादि के सेवन के लिए रुके हुए थे I इतने में वहाँ तिवारी मास्साब खैनी लेने के लिए आ धमके I छात्रों के झुण्ड को घूरते हुए वह बोले, “हम्मम्मम्म, तो यहाँ परीक्षा की तैयारी चल रही है! क्या होगा इस देस का! वैसे होना ही क्या है!”

       फिर पानवाले की ओर मुख़ातिब होकर बोले,”महाचूतियों का देस है यह चौरसिया!” पानवाला तटस्थ भाव से तिवारी मास्साब के उद्गार सुन रहा था, लेकिन तभी छात्रों के झुण्ड में से एक मनबहक लड़का बोल पड़ा, “ए मास्साब, ई स्कूल का क्लासरूम थोड़ेई है जो मास्टरी छाँट रहे हो! ई सड़क है I

       अपना ज्ञानवर्धिनी चूरन लेव अउर घर का रस्ता नापो! और अब जाते-जाते एक बात अउर सुनते जाव! महाचूतिया यह देस नहीं, तुम हो तिवारी मास्साब! एकदम परम चूतिया हो! हमरी न मानो तो घर जाकर परदुमन से खुदई पूछि लेव!”

        उस दिन घर लौटते-लौटते तिवारी मास्साब को तेज़ बुखार चढ़ गया. पंद्रह दिन वह छुट्टी पर रहे!

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें