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कहानी : पानी 

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(एक मित्र की जुबानी)

    ~पुष्पा गुप्ता 

सुबह जब पानी की प्यास लगने की वजह से मेरी आंख खुली , उस समय सुबह के 5.30 बजे थे और मैने देखा कि सुधा आराम से सो रही थी और शायद वो बेड के करीब पड़े टेबल पर पानी का गिलास रखना भूल गई थी। मैं आंखें मलता हुआ थोड़ा नींद में ही किचन की ओर बढ़ गया था और मैने पानी लेने के लिए नल खोला , तो उसमें पानी नदारद था , मुझे लगा शायद गर्मियों की वजह से सरकार पानी में कटौती कर रही है और क्षण भर के लिए मुझे सुधा पर गुस्सा भी आया था कि उसने पीने का पानी पहले से भर कर क्यों नही रखा , पर फिर मैं फ्रिज में पानी की बोतल ढूंढने लगा , पर फ्रिज में मुझे पानी की एक भी बोतल दिखाई नहीं दी थी और पानी न मिलने की वजह से मैं थोड़ा जुंझला गया था और उस पर मेरी जुंझलाहट और भी बढ़ गई थी क्योंकि प्यास की वजह से मेरा गला सुखा जा रहा था।

       कुछ क्षण मैं सोचता रहा कि अब क्या करूं और मैं जानता था कि इस समय कोई भी दुकान नहीं खुली होगी , कुछ पल खुद से विचार विमर्श करने के बाद , मैंने पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी का दरवाज़ा खटखटाया और उस पल सच में मुझे बहुत शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी , पर मुझे पानी की प्यास इतनी अधिक लगी थी कि मुझे लग रहा था कि अगर मैने वक्त पर पानी न पिया तो बहुत गड़बड़ हो जायेगी.

      अभी मैं यह सब सोच ही रहा था कि शर्मा जी ने दरवाज़ा खोल दिया और इतनी सुबह मुझे अपने सामने खड़ा देख कर वो चौंके और उन्होंने एक दम से पूछा ” सब ठीक तो है न ” मैने चेहरे पर थोड़े शर्मिंदगी के भाव लिए उनसे कहा ” सब ठीक है यार , बस मुझे थोड़ा पीने का पानी चाहिए था , वो क्या है कि नल में पानी नहीं आ रहा और सुधा पानी की बोतलें फ्रिज में रखना भूल गई थी , बस मुझे एक बोतल पानी चाहिए था ” मुझे शर्मा जी थोड़ा हैरान दिखाई दिए थे , पर फिर उन्होंने कुछ मुस्कराते हुए मुझ से कहा था ” कोई बात नही यार कभी कभी ऐसा हो जाता है ” और वो जल्दी से एक बोतल पानी लेकर वापिस लौटे थे। 

        मैंने उनके हाथ से पानी की बोतल ली थी और मैं वहीं खड़ा होकर पानी पीने लगा था , उस पल मुझे प्यास इतनी अधिक लगी थी कि मुझे कुछ और नहीं सूझ रहा था , पानी पीने के बाद मुझे थोड़ी तृप्ति मिली थी और मैने उनका धन्यवाद किया था और उनसे कहा था ” माफ करना यार आपको बेवजह परेशान किया ” और मेरे चेहरे पर आए शर्मिंदगी के भाव देख कर , मेरी झेंप मिटाने के लिए शर्मा जी ने मुस्करा कर मुझ से कहा था ” कोई बात नही यार तुमने एक बोतल पानी ही तो लिया है  ” और मैं उनका धन्यवाद करके वापिस लौट आया था और मैने देखा कि मुझे बिस्तर पर न देख कर , अभी तक सुधा भी उठ बैठी थी ” क्या हुआ सब ठीक तो है न ” सुधा ने चिंतित होकर मुझ से पूछा था। 

      मैने उसे पानी की बोतल दिखाते हुए कहा ” शर्मा जी के घर पर पानी लेने गया था ” सुधा ने चेहरे पर आश्चर्य लिए कहा था ” इस समय ” मैने भी कह दिया ” तुम पानी भरना जो भूल गई थी और नल में भी पानी नही था , तो क्या करता , मुझे बहुत प्यास लगी थी ” सब कुछ ठीक देख कर , सुधा अब तक वापिस बिस्तर पर लेट चुकी थी और उसने लगभग नींद में ही मुझ से कहा था. ” 

      सुबह दुकानें खुलते ही पानी की 10 लीटर की बोतल मंगवा लेना , सुबह चाय बनानी है और सुबह का ब्रेकफास्ट और लंच भी बनाना है और यह कह कर वो फिर से गहरी नींद सो गई थी।

      मुझे सुधा ने कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था , वो एक कुशल गृहणी थी और मुझे उस पर फक्र था। इस बीच मेरी भी आंख लग गई थी। सुबह 6 बजे , जब मेरी आंख खुली तो मैंने किचन में नल खोलकर देखा , पर पानी अभी भी नदारद था और उसी पल मैने फैसला किया कि पास की दुकान से पानी की बोतल मंगवा लेते हैं और मैने पास की ही एक दुकान पर फोन किया और उसे कहा ” भाई एक 10 लीटर की पानी की बोतल भेज देना ”  और उस दुकानदार का जवाब सुनकर मैं सकते में आ गया था , क्योंकि उसने मुझ से कहा था ” साहब पानी बिलकुल भी नहीं है , सुबह दुकान खुलते ही सारा पानी और कोल्डड्रिक्स हाथों हाथ बिक गया  ” और यह कह कर उस दुकानदार ने मुझ से पूछा था ” कुछ और चाहिए साहब ”  मैने कुछ सोचते हुए उससे सिर्फ इतना ही कहा था ” नही ” मैं मन ही मन सोच रहा था कि अब क्या करें।

        अब तक सुधा भी उठ चुकी थी और उसे मैने पानी का सारा किस्सा कह सुनाया और पानी की समस्या को लेकर अब मुझे वो भी परेशान दिखाई दे रही थी। तभी सुधा ने मुझे एक सुझाव दिया कि मैं अपने पड़ोसी शर्मा जी से इस विषय में बात करूं , उसके ख्याल से शर्मा जी के घर पर इतना पानी तो होगा कि आज का गुजर बसर हो सके , पर जब शर्मा जी का द्वार खटखटाने पर यह पता चला कि पानी उनके पास भी नहीं है , अब मुझे पानी की समस्या गंभीर होती हुई दिखाई दे रही थी और अनफन में मैं और शर्मा जी अपनी कार पर , आसपड़ोस की दुकानों पर पानी ढूंढने के लिए निकले और हमें यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि पानी किसी भी दुकानदार के पास भी नहीं था और कोल्ड ड्रिंक्स भी सब दुकानों पर समाप्त हो चुके थे और पानी की समस्या को लेकर सब दुकानों के बाहर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। 

      मैने उसी पल यह फैसला कर लिया कि अब हमें पानी के लिए आसपास की किसी नदी पर जाना होगा और अपनी कार पर निकलने से पहले , हमने एक दुकानदार से 20 लीटर की पानी की कुछ खाली बोतलें ले ली थी। हम जिधर भी गए शहर में चारों तरफ पानी के गंभीर विषय को लेकर गहमागहमी दिखाई दे रही थी और पानी के विषय को लेकर मामला गंभीर होता नज़र आ रहा था और यह वास्तव में बहुत चिंताजनक बात थी।

      कार चलाते हुए उस पल मैं मन ही मन में सोच रहा था कि नदी से पानी लेते समय हमें किसी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है और अपनी इस सोच से मैं बहुत सावधान हो गया था। शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर हम एक गांव के करीब पहुंचे थे और गांव को लग कर एक नदी बह रही थी पर उस गांव के पास भी भीड़ कतारों में खड़ी नज़र आ रही थी और यह देख कर मैने एक सज्जन से पूछा था कि आखिर माजरा क्या है यहां पर भीड़ क्यों लगी हुई है , तब उस सज्जन ने मुझे बताया कि गांव पर कुछ गुंडे किस्म के लोगों ने कब्ज़ा कर लिया है और उनसे गांव के सरपंच की बातचीत चल रही है , उस सज्जन ने हमें बताया कि गांव के किसान और सरपंच हमारी मदद करना चाहते हैं पर वो गुंडे पानी की कीमत वसूलना चाहते हैं।

       उस पल मैं सोच रहा था यह तो बहुत चिंताजनक बात है , फिर मैंने कुछ सोच कर उस सज्जन से कहा था कि क्या इस विषय को लेकर किसी ने पुलिस को फोन नही किया , वह सज्जन आश्चर्य से मुझे देखने लगे थे और उन्होंने थोड़े गुस्से से मुझ से बोले थे ” भाई साहब पानी की विकट समस्या को देखते हुए अब जंगल का कानून बन गया है , जिसके हाथ में बंदूक वो ही राजा और यह सब करने वाले कौन लोग हैं इसके बारे में तो ईश्वर ही बेहतर जान सकता है ” तभी मैंने भीड़ के बीच में से एक बुज़ुर्ग को आते हुए देखा जो बहुत विनम्रता से भीड़ से बातचीत कर रहा था और वो भीड़ में उपस्थित हर सज्जन से कह रहा था कि वो नही जानते कि जिन्होंने बंदूक के जोर पर नदी पर कब्जा कर लिया है वो कौन लोग है , पर हम उनसे बातचीत की कोशिश कर रहे हैं कि जिससे सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से ही हो और सबकी पानी मिल जाए ” मेरे अंदाजे से वह बुजुर्ग गांव का सरपंच था और उसके साथ गांव के कुछ गणमान्य सदस्य भी थे और मुझे वह सब लोग थोड़े लाचार दिखाई दे रहे थे। गांव के सरपंच और गणमान्य लोगों की बातचीत की वजह से मामला थोड़ा सुलझता दिखाई दे रहा था और जिन्होंने नदी पर कब्जा कर रखा था वो इस शर्त पर सबको पानी देने के लिए तैयार हो गए थे कि सब लोगों को पानी का मूल्य चुकाना पड़ेगा और उनका आज का मूल्य 500/= 20 लीटर के लिए था और कल के पानी के लिए वो कल ही मूल्य तय करेंगे , उन लोगों की यह बातें अंधेर गर्दी थी , पर अब क्या करते , सब लाइन में लग कर पानी लेने लगे थे और जिसका जितना समर्थ था उसने उतना पानी ले लिया था। हमने भी 20 लीटर की 6 बोतलें भर ली थी और इस बात से अब हम संतुष्ट थे कि कम से कम अब हमारे 5 से 6 दिन आराम से निकल जायेंगे और शायद तब तक पानी की समस्या को लेकर सरकार कोई हल निकाल लेगी। वहां से वापिस लौटते समय , हमने देखा कि सारे शहर में पानी को लेकर भाग दौड़ मची हुई थी और सड़क पर मीलों दूर तक ट्रैफिक जाम लगा हुआ था , ट्रैफिक जेम देख कर मेरी चिंता बढ़ गई थी और मैने उसी पल सुधा को फोन करके बता दिया था कि हमें पानी मिल गया है पर हम ट्रैफिक जेम में फंस चुके हैं और अब हम घर पर कब पहुंचेंगे इस बारे में हम कुछ भी नहीं कह सकते और मैने सुधा को यह हिदायत भी दे दी थी कि शर्मा जी की पत्नी के साथ तुम एक ही फ्लैट में रहना और किसी भी हाल में घर का दरवाज़ा मत खोलना , सुधा को सारी जानकारी देने के बाद मुझे कुछ संतोष का एहसास हुआ था , पर सड़क पर गाड़ियों की लम्बी कतारें देख कर , मैं सोच में पड़ गया था और मुझे ट्रैफिक जेम का मामला गंभीर होता हुआ दिखाई दे रहा था और मेरे लिए दूसरा चिंता का विषय यह था कि हमारी कार में बहुत सा पानी मौजूद था , जो पानी की विकट समस्या को देखते हुए , कभी भी गंभीरता का रूप धारण कर सकता था और अब तो ट्रैफिक जेम के गंभीर हालात देख कर मुझे इंतजार के सिवा दूसरा कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। 

      उस पल मुझे सुधा और शर्मा जी की पत्नी की चिंता हो रही थी क्योंकि शहर की इस गहमागहमी के खतरनाक माहौल में , वो घर पर अकेले थे और उनके पास पानी की एक बूंद भी नहीं थी। यह सोच कर मैं किसी अनिष्ठ की कल्पना मात्र से बहुत चिंतित हो गया था , पर इस विषय में मैने शर्मा जी से कोई बात नही की थी।

       मैं जानता था कि शर्मा दंपती उम्र में मुझ से थोड़े बड़े थे और उनको मैं कोई ऐसी वैसी बात बता कर चिंतित नहीं करना चाहता था। पानी के विषय की गंभीरता पर विचार करते हुए , मैने सड़क पर एक खाली जगह देखकर अपनी कार रोक दी थी और शर्मा जी से कहा था कि वो पास की दुकान से गेहूं की 6 खाली बोरी ले आएं , मेरी बात सुनकर वो प्रश्नचिन्ह वाली निगाहों से मेरी और देखने लगे थे , तब मैंने उन्हें संक्षेप में समझाया था कि अब हम दुनिया की सबसे कीमती चीज को अपनी कार में ले कर जा रहे हैं और अगर भीड़ ने हमें यूं पानी ले जाते हुए देख लिया , तो अनर्थ हो जायेगा। मेरी बात समझ कर उन्होंने हामी भर दी थी और हम दोनो बहुत चुपचाप और आसपास का माहौल देखते हुए , पानी की बोतलों को गेहूं की खाली बोरियों में बंद करने लगे थे , जिससे किसी को यह न लगे कि हम अपनी कार में पानी लेकर जा रहे हैं। 

      ऐसा करते हुए मुझे कुछ अच्छा प्रतीत नहीं हो रहा था , पर शायद यह वक्त की मजबूरी थी और पानी की किल्लत से बने उस गंभीर माहौल में अगर हम ऐसा नहीं करते , तो शायद हमारा घर पर सही सलामत पहुंचाना नामुमकिन हो जाना था और बाहर का माहौल देखते हुए , अब इस बात की गंभीरता को शर्मा जी भी समझने लगे थे। 

     हम अभी भी अपने घर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर थे और ट्रैफिक जेम की गंभीरता को देखते हुए , अब मुझे घर पहुंचना लगभग नामुमकिन दिखाई दे रहा था। तभी मेरी निगाह कुछ दूरी पर खड़ी एक साइकिल पर पड़ी और कुछ सोच कर , मैने घर तक का रास्ता उस साइकिल पर तय करने का फैसला लिया था। अपनी कार से निकल कर मैं उस साइकिल के करीब गया था और मैं बहुत सावधानी से उस साइकिल के आसपास का निरीक्षण करने लगा था और ऐसा करते हुए मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था , पर मौके की नज़ाकत को देखते हुए , मुझे यह कदम उठाना पड़ा , मैने चुपके से उस साइकिल को उठा लिया था और अपने पीछे ध्यान से देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और जब मुझे इस बात का संतोष हो गया कि उस साइकिल को लेकर पीछे कोई शोरगुल नहीं हो रहा है , तो मैं जल्दी से शर्मा जी के निकट आया था और उनसे कहा था कि कार में से जल्दी से दो बोतलें पानी की निकाल लीजिए , अब हम घर तक का सफर साइकिल पर करेंगे।

       शर्मा जी मेरी तरफ हैरानगी से देख रहे थे और मैने उन्हें ऐसा करते देख कर कहा था , जल्दी कीजिए शर्मा जी अब समय बहुत कम है और अगर किसी ने हमें साइकिल को उठाते देख लिया तो एक और मुश्किल खड़ी हो जाएगी। मेरी बात की गंभीरता समझ कर उन्होंने जल्दी से बोरों में बंद दो पानी की बोतलें कार में से बाहर निकाल ली थी और मैने कार को लाक कर दिया था और हम दोनों साइकिल पर सवार होकर फुटपाथ के रास्ते से अपनी मंजिल की ओर रवाना हो गए थे , मैने एक बोरी अपने साइकिल के डंडे पर आगे बांध रखी थी और एक बोरी को शर्मा जी अपनी गोद में रख कर साइकिल के करियर पर बैठ गए थे और हम उस उठाई हुई साइकिल पर धीरे धीरे अपनी मंजिल की ओर रवाना हो चुके थे और मेरे भीतर एक उम्मीद जगी थी कि अगर सब कुछ ठीक रहा , तो हम जल्दी ही अपने घर पर पहुंच जाएंगे। पर माहौल की वास्तविकता कुछ और ही थी और जो मैं सोच रहा था हकीकत उससे कहीं अधिक खतरनाक थी।

        अभी हमने साइकिल पर लगभग 10 किलोमीटर का सफर ही तय किया था और हमें अभी तक रास्ते में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई थी और साइकिल चलाते हुए बहुत अधिक थक जाने के बावजूद , मैं इस बात को लेकर बहुत खुश था कि अब हम जल्दी ही अपने घर पर पहुंच जाएंगे , पर यह मेरी गलतफहमी थी और हमारी यह खुशी अधिक देर तक नहीं रही थी और हमने देखा कि लगभग आधा किलोमीटर आगे ही लोगों की भीड़ लगी हुई थी जिसे देख कर मेरा माथा ठनका था और लोगों को इधर उधर भागते देख कर , मैने एक सज्जन से पूछ ही लिया था ” भाई साहब क्या बात है लोग इस तरह भाग क्यों रहे हैं ” और उस सज्जन ने मुझे बताया कि पानी के लिए एक घर पर कुछ गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया हैं क्योंकि उस घर में टयूब वेल्ल लगा हुआ था और शायद उन लोगों ने घर के सदस्यों को अपना बंदी बना लिया है या शायद उनकी हत्या कर दी है। वो सज्जन हमें बहुत मायूस हो कर बता रहे थे ” उस घर के लोग बहुत दयालु थे और वो लोगों को पीने का पानी मुफ्त मुहैया करवा रहे थे , पर न जाने कहां से अचानक कुछ गुंडे आए और उन्होंने पानी लेते हुए लोगों पर हवाई फायर कर दिया और देखते ही देखते भीड़ में भगदड़ मच गई और जिसको जहां पर रास्ता दिखाई दिया वो उधर ही भाग खड़ा हुआ ” यह कह कर वो सज्जन एक ओर जाने लगे थे और उस पल मुझे लगा था कि मैं अपनी जिंदगी का सबसे भयानक दृश्य देख रहा हूं। 

       इस कल्पना मात्र से मेरा हृदय कांप गया था कि पानी को लेकर लोग एक दूसरे से लड़ रहे थे। अपने कंधे पर बोरी उठाए हम रात भर इधर से उधर गलियों में दौड़ते रहे और भीड़ के उत्पात की वजह से जब हम एक गली में घुसे , तो एक भारी भरकम गुंडे जैसे व्यक्ति ने हमें चाकू दिखा कर गुस्से से आंखें लाल करके हमसे कहा था ” जो भी तुम्हारे पास है मेरे हवाले कर दो ” उसके हाथ में चाकू देख कर , शर्मा जी मेरे पीछे छिप गए थे और वो बहुत भयभीत दिखाई दे रहे थे और उस समय आसपास का माहौल भी कुछ ऐसा ही था कि कोई भी भला इंसान भयभीत हो उठता , मौके की नज़ाकत को देखते हुए मैने अपनी घड़ी और पर्स उस गुंडे के हवाले कर दिया था और मुझे देखते हुए शर्मा जी ने भी वैसा ही किया था , उसने झपट कर हमारे हाथों से सब कुछ ले लिया था और फिर उसकी निगाह उस बोरे पर पड़ी थी , जो हमने अपने कंधे पर उठाया हुआ था उसने गुस्से से मुझ से पूछा था ” इस बोरे में क्या है इसे नीचे रखो ” इतनी कठिनाई से हम पानी को यहां तक ले कर आए थे और अब हमारा घर यहां से कुछ कदम की दूरी पर ही था और मैं उस गुंडे को पानी नहीं देना चाहता था , मैने उसी पल कुछ सोच लिया था और मैने अपने कंधे से बोरी उतारने से पहले शर्मा जी की ओर अर्थ पूर्ण निगाहों से देखा था और उन्हें आंखों ही आंखों में एक इशारा सा किया था और उनकी शक्ल को देख कर मुझे समझ में नहीं आया था कि शर्मा जी मेरे उस इशारे को समझे भी हैं या नहीं और यह देख कर मैने क्षण भर में ही यह निर्णय कर लिया था कि जैसा भी हो, पर मैं यह पानी इस गुंडे को नहीं दूंगा क्योंकि अब यह हमारी जिंदगी का सवाल बन चुका था और यही सब सोच कर , मैने उस बोरी को धीरे से अपने कंधे से उतारे का अभिनय किया था और फिर अचानक बिजली की सी गति से वह बोरी उसके मुंह पर दे मारी थी , 20 लीटर पानी की बोतल से भरी वह बोरी बहुत भारी भरकम थी और वो गुंडा भी इस सब के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था और वो जमीन पर जा गिरा और जब तक वो कुछ समझता , मैने उसके हाथों से चाकू लेकर दूर अंधेरे में फेंक दिया था और उसकी छाती पर चढ़  बैठा था और उस पल मैने चिल्ला कर शर्मा जी से कहा था ” शर्मा जी वक्त नहीं है इसके सिर पर जल्दी से बोरी मारो  ” शर्मा जी बेचारे सीधे साधे इंसान थे , वो घबरा कर मुझ से बोले ” मैं किसी को मार नहीं सकता ” तब मैंने उन्हें गुस्से से कहा था ” अरे मारने के लिए कौन कह रहा है , बस हमे इसको बेहोश करना पड़ेगा ” इस बीच वह गुंडा हमारी सारी बातचीत सुन रहा था और वो हमारी बातचीत से जान गया था कि अगर उसने थोड़ा जोर लगाया तो हम पर काबू पा सकता था और ये ही सोच कर वो मेरे हाथों में छटपटाने लगा था।

         मैने अपने दोनों हाथों से बहुत मजबूती से उस गुंडे को पकड़ा हुआ था और मैने लगभग चिल्लाते हुए शर्मा जी से कहा था ” यह आपकी और मेरी पत्नी की जिंदगी का सवाल है , जल्दी से इसके सिर पर बोरी दे मारिए ” और मैने देखा कि मेरी कही बात का असर हुआ था और शर्मा जी ने अपने कांपते हुए हाथों से अपने कंधे से बोरी उतारी और उस गुंडे के सिर पर दे मारी और उसके बाद डर कर उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली। 

     वो गुंडा पहले ही थोड़ा जख्मी हो चुका था और वो शर्मा जी के इस आघात से वही बेहोश हो कर गिर पड़ा था। अब मेरी जान में जान आई थी और मैने देखा कि मेरे और शर्मा जी के कपड़े भी इस छीना झपटी में फट गए थे और उस समय हमारी हालात किसी भिखारी की तरह दिखाई देने लगी थी।

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