शिवानन्द तिवारी,
पूर्व सांसद
जेल से भेजे गये शिकायती पोस्टकार्ड को जनहित याचिका के रूप में सुनवाई करने की मान्यता देने वाले उच्चतम न्यायालय ने आज अपने इतिहास को ही पलट दिया. 2009 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माओवादियों के विरूद्ध पुलिस कार्रवाई में सत्रह आदिवासियों की मौत की सीबीआई जाँच की माँग करने वाली याचिका को उच्चतम न्यायालय ने न सिर्फ़ ख़ारिज कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर पाँच लाख जुर्माना लगाया दिया. हिमांशु जी उस इलाक़े में एक एनजीओ चलाते हैं.
उच्चतम न्यायालय द्वारा देश के सबसे उपेक्षित और वंचित समाज के लिये इंसाफ़ माँगने वाले पर पाँच लाख रूपये का जुर्माना लगाना गंभीर चिंता का विषय है. अपने इस निर्णय से उच्चतम न्यायालय ने ग़रीबों पर होने वाले जुल्म के विरूद्ध इंसाफ़ माँगने वालों के लिए अपना दरवाज़ा बंद कर देने की घोषणा कर दी है.यह तो इन तबकों के लिए. हिमांशु कुमार ने उच्चतम न्यायालय के इस फ़ैसले को मानने से इंकार किया है. उन्होंने कहा है कि वे जेल जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन जुर्माने की राशि नहीं देंगे. हिमांशु कुमार के इस साहसिक फ़ैसले का हम समर्थन और स्वागत करते हैं. उच्चतम न्यायालय से भी नम्रतापूर्वक हम अनुरोध करते हैं कि अपने फ़ैसले पर वह पुनर्विचार करे.
शिवानन्द तिवारी,पूर्व सांसद