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अडानी समूह के घोटालों का बोझ देश के हर नागरिक पर

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विजय शंकर सिंह

ब्रिटेन के अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने अडानी समूह के एक ऐसे घोटाले को उजागर किया है, जिसका बोझ देश के हर नागरिक पर पड़ रहा है। वह बोझ है, बिजली की लगातार बढ़ती कीमतों का। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, अडानी समूह ने बाजार मूल्य से काफी अधिक कीमत पर अरबों डॉलर मूल्य का कोयला आयात किया है। इससे यह संदेह पैदा हो गया है कि देश का सबसे बड़ा निजी कोयला आयातक, जानबूझकर ईंधन की लागत बढ़ा रहा है और उस बढ़ी लागत का भार आम उपभोक्ताओं से लेकर कमर्शियल बिजली उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर कर रहा है।

लंदन स्थित फाइनेंशियल टाइम्स ने जुलाई 2021 से सीमा शुल्क रिकॉर्ड की जब पड़ताल की तो यह निष्कर्ष निकला कि अडानी समूह ने “बाजार कीमतों के लिए अधिक प्रीमियम पर कोयले के लिए तीन कंपनियों को कुल 4.8 बिलियन डॉलर का भुगतान किया।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ताइवान, दुबई और सिंगापुर स्थित तीन ऑफशोर बिचौलियों को “काला प्रीमियम” प्राप्त हुआ जो “कई बार बाजार मूल्य के दोगुने से भी अधिक” था। यानी बाजार मूल्य से दोगुने पर अडानी ने कोयला विदेशों से आयात किया।

अडानी समूह के खिलाफ घपले और घोटाले का यह कोई पहला खुलासा नहीं है। आर्थिक मामलों में देश के प्रसिद्ध पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता और रवि नायर ने साल 2016 से ही अडानी समूह द्वारा लगातार किए जा रहे घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं के बारे में अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करते रहे हैं, पर सरकार की जांच एजेंसियों ने, चाहे वह प्रवर्तन निदेशालय हो या सीबीआई हो या सेबी हो या कोई और, किसी ने कोई भी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखाई। जबकि अडानी समूह ने पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता के खिलाफ मानहानि के कई केस कर दिए।

हिंडनबर्ग खुलासे के बाद यह अब तक का सबसे ताजा खुलासा है, जो किसी विदेशी अखबार में छपा है, जिसके बाद  अडानी समूह ने चुप्पी साध रखी है। अडानी समूह अभी तक, जनवरी में अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के कई खुलासे से, जिसने अडानी समूह के शेयरों में बड़े पैमाने पर गिरावट ला दी थी, और समूह अभी उसी से जूझ ही रहा था, तब तक फाइनेंशियल टाइम्स ने यह एक ऐसा खुलासा कर दिया, जिसका असर देश के हर व्यक्ति पर पड़ रहा है।

फाइनेंशियल टाइम्स की इस खोजी रिपोर्ट के आने की भनक लगते ही, अडानी समूह ने संभावित स्टोरी का खंडन करना शुरू कर दिया था और अदालत में जाने की धमकी भी दी थी। एक रोचक तथ्य यह भी है कि हिंडनबर्ग के खिलाफ भी अडानी ने अदालती कार्रवाई की धमकी दी थी, पर आज तक अडानी समूह उक्त अमेरिकी शॉर्ट सेलर कंपनी के खिलाफ अदालत जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

जब अडानी समूह को यह पता चला कि एफटी के पत्रकारों ने अडानी समूह द्वारा कोयला आयात की विस्तृत जांच शुरू कर दी है तो, उसने द टेलीग्राफ के एक लेख के अनुसार, “एफटी के कार्यालय पर हंगामा करना, कॉल करना, प्रश्नावली ईमेल करना और यहां तक ​​​​कि सिंगापुर में एक कार्यालय के दरवाजे के नीचे से लिखित प्रश्न भेजना शुरू कर दिया था” और यह भी धमकी दी थी कि “उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स की आगामी रिपोर्ट को खारिज करने के लिए शेयर बाजार में नियामक फाइलिंग करने का अभूतपूर्व कदम उठाया है।” पर फाइनेंशियल टाइम्स पर कोई असर नहीं पड़ा और उसने कोयला आयात में किया जा रहा घोटाला उजागर कर दिया।

अडानी ने एफटी पर अपने वही पुराने आरोप दुहराए, जो वह हर खुलासे के बाद कहता रहता है कि “अखबार की मंशा अडानी समूह की छवि खराब करने की है।” समूह ने एफटी पर दुर्भावनापूर्ण पूर्वाग्रह और हंगरी में जन्मे अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस और उनके द्वारा वित्त पोषित पत्रकार नेटवर्क जिसे, संगठित अपराध और भ्रष्टाचार परियोजना कहा जाता है, के साथ मिलीभगत करने का भी आरोप लगाया था।

अडानी समूह ने यह भी कहा कि, “ये आरोप एक सीमा शुल्क न्यायाधिकरण के समक्ष जांच में स्थापित नहीं हुए थे और राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), जो मामले को आगे बढ़ा रहा था, को इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था।”

अडानी समूह के इस बयान ने फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में, आर्थिक मामलों में रुचि रखने वालों की भारी दिलचस्पी पैदा कर दी थी। जब यह खोजी रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तो उससे लगा कि अखबार की पड़ताल बेहद गहरी है और खोजी पत्रकारों ने नवीनतम तकनीक और सूचनाओं के साथ यह रिपोर्ट तैयार की है।

एफटी ने भारत और इंडोनेशिया में सीमा शुल्क डेटाबेस का पता लगाया, शिपमेंट का मिलान किया, नौकायन कार्यक्रम का दायरा बढ़ाया और यहां तक ​​कि आरोपों का एक बिल्कुल नया सेट तैयार करने के लिए एक उपग्रह डेटा कंपनी की सेवाओं का भी उपयोग किया था।

लेकिन अडानी समूह के एक अधिकारी ने एफटी के खुलासे के बाद कहा कि वह सोमवार रात यानी, खोजी रपट के प्रकाशित होने के पहले, अपने जारी किए गए बयान पर कायम है। कंपनी ने उस बयान में कहा था, “एफटी की प्रस्तावित कहानी डीआरआई के 30 मार्च 2016 के सामान्य अलर्ट सर्कुलर पर आधारित है।”

जबकि यह खोजी रिपोर्ट 30 मार्च 2016 के लेख से अलग और अधिक तथ्यात्मक तथा सुबूतों से भरी है। एफटी ने इस आधार पर अपनी जांच शुरू की थी कि भले ही डीआरआई में अडानी का मामला लड़खड़ा गया था, लेकिन यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि अडानी समूह ने कोयला आयात करने के लिए, ‘बढ़ा कर बिलिंग’ करने की परिपाटी को छोड़ा नहीं है।

फाइनेंशियल टाइम्स ने गौतम अडानी को “मोदी का रॉकफेलर” बताते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “डीआरआई जांच की अनसुलझी प्रकृति और कुछ घटनाओं की बार बार होने वाली स्पष्ट निरंतरता, अडानी समूह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन के बीच मौजूद परस्पर गहन संबंधों पर नए सवाल उठाती है।”

एफटी के अनुसार अडानी समूह ने भारत में कोयला आयात करने के लिए तीन बिचौलियों की कंपनियों का उपयोग किया। एक, हाय लिंगोस जो ताइपे में एक आवासीय पते से ऑपरेट करती थी, दूसरी, दुबई स्थित टॉरस नामक कंपनी, और तीसरी, पैन एशिया ट्रेडलिंक नामक एक छोटी सी फर्म जो सिंगापुर में है। इन सबके बारे में अखबार ने अपनी पड़ताल में दावा किया है कि, “यह सब अडानी समूह के एक पूर्व कर्मचारी द्वारा संचालित हैं।”

अखबार ने सबसे पहले अपना ध्यान कुल 73 मिलियन टन कोयले के 2,000 शिपमेंट पर केंद्रित किया और उनकी पड़ताल गहनता से शुरू कर दी, जिन्हें सितंबर 2021 और जुलाई 2023 के बीच अडानी समूह द्वारा आयात किया गया था, और यह डीआरआई जांच में कवर नहीं हुआ था। “73 मिलियन टन कोयले में से 42 मिलियन टन के शिपमेंट, अडानी समूह द्वारा स्वयं किए गए थे और औसतन 130 डॉलर प्रति टन की कीमत घोषित की गई थी।”

अखबार ने कहा कि, “शेष 31 मिलियन टन की आपूर्ति तीन बिचौलियों द्वारा की गई थी। इन तीन फर्मों द्वारा आपूर्ति किए गए कोयले के लिए घोषित औसत मूल्य 155 डॉलर था, जो 800 मिलियन डॉलर का 20 प्रतिशत प्रीमियम था।” हाय लिंगोस, जिसका स्वामित्व ताइवान के व्यवसायी चांग चुंग-लिंग के पास है, ने ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से 428 शिपमेंट में 12.9 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति की। कंपनी द्वारा आपूर्ति किए गए कोयले के लिये अडानी समूह ने लगभग 2 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था।

31 अगस्त को प्रकाशित फाइनेंशियल टाइम्स की एक पूर्व रिपोर्ट में चांग की पहचान गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी के करीबी सहयोगी के रूप में की जा चुकी है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भी इस चीनी व्यापारी का उल्लेख है। एफटी लिखता है, “चांग 2013 और 2017 के बीच अडानी समूह की तीन कंपनियों में सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक था। उसकी एक हिस्सेदारी जो कई टैक्स हेवन में स्थित कंपनियों की भूलभुलैया के माध्यम से पैसा लगाकर बनाई गई थी।”

निश्चित रूप से यह मनी लांड्रिंग का एक महत्वपूर्ण मामला है पर आज तक ईडी ने इस अपनी नजरें इनायत नहीं की हैं। एफटी के अनुसार, “चांग का एक कथित साथी, नासिर अली शाबान अहली नामक एक यूएई व्यवसायी है, जिसने मिड ईस्ट ओशन ट्रेड, मॉरीशस के माध्यम से अडानी की कंपनियों में धन भेजा था, जिसमें अहली लाभकारी मालिक था; और गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (बीवीआई) जहां अहली, उसका “नियंत्रक व्यक्ति” था।”

एफटी की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि, “कोयला शिपमेंट में दूसरा बिचौलिया दुबई स्थित टॉरस था, जिसका मालिक मोहम्मद अली शाबान अहली है।” अखबार इसे और स्पष्ट करते हुए कहता है कि, “दोनों नाम सुनने में एक जैसे लगते हैं लेकिन यह स्थापित नहीं हो सका कि मोहम्मद नासिर का रिश्तेदार था या नहीं।”

अखबार के खोजी पत्रकारों द्वारा खंगाले और पड़ताल किए गए भारतीय कस्टम्स रिकॉर्ड के अनुसार, “अडानी ने सितंबर 2021 से आपूर्ति किए गए 11.3 मिलियन टन कोयले के लिए टॉरस को 1.8 बिलियन डॉलर का भुगतान किया। लेकिन सबसे दिलचस्प खिलाड़ी पैन एशिया ट्रेडलिंक था जिसने “सितंबर 2021 से अडानी को 1.1 बिलियन डॉलर में 6.6 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति की।”

अखबार ने यह भी दावा किया है कि, “169 डॉलर प्रति टन की औसत कीमत अडानी द्वारा खुद से मंगाए गए कोयले की कीमत से 30 प्रतिशत अधिक थी।” अखबार ने पहले की अवधि से संबंधित कोयला आयात पर डेटा के एक और सेट पर गौर किया जो, जनवरी 2019 और अगस्त 2021 के बीच थी। इस अवधि के दौरान अखबार इंडोनेशिया से शिपमेंट और भारत में आगमन का मिलान करने में सक्षम था।

जांच इस अवधि पर इसलिए भी केंद्रित थी कि, भारत और इंडोनेशिया दोनों का सीमा शुल्क डेटा उपलब्ध था, जिससे शिपमेंट के दस्तावेजों का मिलान संभव हो सका। अगस्त 2021 के बाद, इंडोनेशियाई सीमा शुल्क के रिकॉर्ड, अखबार के खोजी पत्रकारों को उपलब्ध नहीं हो पाए थे। आंकड़ों के इस ढेर में से एफटी ने कुल 3.1 मिलियन टन की “30 प्रतिनिधि नौकायन” को पड़ताल हेतु अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए चुना।

एफटी का कहना है कि, “इंडोनेशिया में कोयले की कीमत 139 मिलियन डॉलर थी। इसमें शिपिंग और बीमा लागत में 3.1 मिलियन डॉलर और जोड़ा गया। हालांकि, अडानी समूह ने शिपमेंट का मूल्य 215 मिलियन डॉलर घोषित किया, इस प्रकार, “इन यात्राओं ने 73 मिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया जिसमें 52 प्रतिशत लाभ का मार्जिन था।” अखबार आगे लिखता है, कि “कोयला व्यापार एक उच्च मात्रा वाला प्रतिस्पर्धी व्यवसाय है, जहां लाभ मार्जिन आमतौर पर “कम एकल अंक” में होता है।”

अडानी समूह की सबसे पुरानी और सबसे मूल्यवान कंपनी, अडानी एंटरप्राइजेज अपनी बिक्री और मुनाफे का बड़ा हिस्सा अपने कोयला व्यापार प्रभाग, जिसे इंटीग्रेटेड रिसोर्सेज मैनेजमेंट कहा जाता है, से प्राप्त करती है। अखबार में आगे कहा गया है कि, “2023 में कंपनी की कुल बिक्री में आईआरएम राजस्व का हिस्सा 72 प्रतिशत था।” एफटी रिपोर्ट में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि, “कोयले की कीमत कैसे बढ़ी, यह समझने के लिए इसने (अखबार ने) एक शिपमेंट को ट्रैक किया।”

जनवरी 2019 में डीएल अकेशिया नामक एक थोक वाहक भारत में एक बिजली संयंत्र के लिए 74,820 टन थर्मल कोयला लेकर पूर्वी कालीमंतन में कलियोरंग के इंडोनेशियाई बंदरगाह से रवाना हुआ। अखबार ने लिखा: “यात्रा के दौरान, कुछ असाधारण हुआ: इसके माल का मूल्य दोगुना हो गया। निर्यात रिकॉर्ड में कीमत 1.9 मिलियन डॉलर और शिपिंग और बीमा के लिए 42,000 डॉलर थी। अडानी द्वारा संचालित भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक बंदरगाह, गुजरात के मुंद्रा में पहुंचने पर, घोषित आयात मूल्य 4.3 मिलियन डॉलर हो गया था।”

अखबार को पता था कि, “कोयले की कीमतें उसकी गुणवत्ता और कैलोरी मान के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न होती हैं।” इसमें कहा गया है कि, “बिचौलियों द्वारा आपूर्ति किया गया अधिकांश कोयला कैलोरी मान के आधार पर उच्च गुणवत्ता का था, जो दहन पर निकलने वाली कुल ऊर्जा है।” इसलिए तब एफटी ने डेटा प्रदाता आर्गस से प्राप्त इंडोनेशियाई कोयले के लिए एक बेंचमार्क के मुकाबले बिचौलियों द्वारा आपूर्ति किए गए कोयले की तुलना की।

इंडोनेशिया से आने वाले 311 शिपमेंट थे, जहां कैलोरी मान घोषित किया गया था। अखबार में कहा गया है, “कुछ को छोड़कर सभी की कीमत निकटतम आर्गस बेंचमार्क कीमत से अधिक थी।” अक्सर उनकी कीमत बेंचमार्क से बहुत अधिक थी। अगस्त 2022 में 5,004 किलो कैलोरी के घोषित कैलोरी मान के साथ बनाई गई हाय लिंगोज़ की एक शिपमेंट की कीमत 179 डॉलर प्रति टन थी। अखबार ने कहा, “पिछले तीन महीनों में आर्गस 5000 कैलोरी बेंचमार्क की उच्चतम कीमत 145 डॉलर प्रति टन थी।”

अडानी पर यह पहला घोटाला खुलासा नहीं है। इससे बड़े खुलासे और हुए हैं पर हैरानी की बात यह है कि, इस सरकार के कार्यकाल में कभी भी किसी जांच एजेंसी जैसे ईडी, सीबीआई, आयकर, डीआरआई आदि ने न तो कोई नोटिस जारी की और न ही किसी तरह की जांच ही की। ईडी जो, लगभग हर विपक्षी नेता जो इंडिया गठबंधन में है के खिलाफ, अक्सर सक्रिय रहती है, उसे अडानी के शेल कंपनियों द्वारा मनी लांड्रिंग कर किए गए निवेश दिखते नहीं हैं और वह इन आरोपों पर चुप्पी साधे है।

इसका एक बड़ा कारण है, गौतम अडानी का पीएम नरेंद्र मोदी जी से निकटता। हिंडनबर्ग खुलासा, खोजी पत्रकारों के समूह द्वारा किया गया खुलासा, एफटी का कोयला घोटाला का यह ताजा खुलासा, संसद में विपक्ष के आरोप और सत्यपाल मलिक के सबसे अधिक विस्फोटक आक्षेप कि,”अडानी का सारा पैसा मोदी जी का पैसा है” के बयान के बाद सरकार की चुप्पी और संसद में अडानी मोदी रिश्ते पर सवाल उठने पर, सांसद का निलंबन और अडानी से जुड़े भाषणों को सदन की कार्यवाही से विलोपित कर देना, इसी बात की ओर संकेत करते हैं कि, अडानी का प्रभाव और अडानी की सत्ता पर पकड़ कितनी मजबूत है।

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