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कैग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा….खजाने को सवा अरब का चूना

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अफसरों की गलतियों का खामिजाया प्रदेश के सरकारी खजाने को उठाना पड़ता है। ऐसे ही एक मामले का खुलासा हुआ है कैग की रिपोर्ट से। इसमें सरकार को 117 करोड़ रुपए की चपत लगने का उल्लेख किया गया है। यह चपत लगी है जीएसटी और वैट अधिनियम के तहत करों के निर्धारण वसूली में कमियों, गड़बड़ियों की वजह से। कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि सिस्टम व अधिकारियों की गलती से रेवेन्यू कलेक्शन में 117 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है।
कैग ने जीएसटी के ट्रांजिशनल क्रेडिट के 2357 प्रकरणों की नमूना जांच की। इसमें सामने आया कि विभाग में ट्रांजिशनल क्रेडिट दावों के सत्यापन के लिए कोई सिस्टम ही नहीं बनाया है। जीएसटी के दायरे में नहीं आने वाले माल पर भी अस्वीकार्य इनपुट कर क्रेडिट का लाभ दे दिया गया। इसके साथ ही वैट रिटर्न दाखिल किए बिना ट्रांजिशनल ट्रांजेक्शन के अनियमित दावों के मामले भी सामने आए।  कैग को अफसरों को रिटर्न में आईटीआर शेष को गलत तरीके से अग्रेषित करने के कारण अतिरिक्त ट्रांजिशनल क्रेडिट दावों के उदाहरण भी देखने को मिले हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन कमियों की वजह से रेवेन्यू पर 86.93 करोड़ रुपए का असर पड़ा।
कम कर बनने की यह बताई वजह
वैट निर्धारण के 33 हजार से ज्यादा दस्तावेजों की कैग ने जांच की। इससे सामने आया कि निर्धारण प्राधिकारियों ने गलत टर्नओवर तय किया। इस वजह से कम टैक्स बना और न्यूनतम पेनाल्टी नहीं लगाई गई। इसके साथ ही कर योग्य माल को टैक्स फ्री और पहले से ही देना मान लिया। इससे टैक्स कलेक्शन का नुकसान हुआ। कैग रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा गया है कि प्राधिकारी कर की सही दर और कटौतियों, समायोजनों को लागू करने में विफल रहे। माल पर प्रवेश कर नहीं लगाया गया था या स्थानीय क्षेत्र में यह गलत दरों पर लगाया गया। प्राधिकारियों ने स्वीकार्य इनपुट कर छूट के विरूद्ध अत्याधिक रिबेट की अनुमति दी। इस तरह टैक्स कलेक्शन में 21 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ।
जरूरी दस्तावेजों की पुष्टि किए बगैर किया रिफंड
कैग ने जुलाई 2017 से जुलाई 2020 के दौरान किए 447 प्री ऑटोमेशन और 564 पोस्ट ऑटोमेशन रिफंड प्रकरणों की भी रैंडम जांच की। इसमें अधिनियम व नियमों का पालन न करने की बात प्रमुख तौर से सामने आई। बताया गया कि रिफंड दावों की पावती, ऑर्डर की मंजूरी और कमी ज्ञापन जारी करने में देरी की गई। इतना ही नहीं जरूरी दस्तावेजों की पुष्टि किए बगैर रिफंड कर दिया गया। दावों की उत्तरोत्तर लेखा परीक्षा भी नहीं की गई। इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की अस्वीकार्य और अतिरिक्त रिफंड दिया गया। जीएसटीएन पोर्टल में जीएसबीआर-2ए का सत्यापन न होने के कारण अतिरिक्त रिफंड किया गया। इन कारणों से 10.36 करोड़ का नुकसान हुआ।
प्राचीन संस्कृति विरासतोंं को भी सहेजने में लापरवाही
कैग ने पाया कि प्रदेश की प्राचीन संस्कृति और विरासतों को बचाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। कैग ने 2016-17 से 2020-2 का 12 कार्यालयों का ऑडिट किया। इसमें पाया कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्मारकों की पहचान के संरक्षण को लेकर कोई नियमावली ही उपलब्ध नहीं पाई गई। कैग ने ये भी पाया कि मध्यप्रदेश के प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम, 1964 में यदि स्मारकों पर पहले से कब्जा है तो उन्हें अंतिम अधिसूचना जारी होने से पहले ही खाली कराने के संबंध में कोई प्रावधान ही नहीं है। पुरातत्वीय स्थलों को गैर-अधिसूचित किए जाने से इनके संरक्षण में होने वाले कारकों के औचित्य और लाभ का उल्लेख किए गए बिना गैर-अधिसूचित किया गया और गैर-अधिसूचित करने एकमात्र मकसद उन्हें हेरिटेज होटलों में बदलना था। ऑडिट में ये भी पाया गया कि शैल कला के आसपास न तो बाड़ लगाई गई थी और न ही धूप एवं बारिश के प्रभाव से बचाने के लिए शेड का निर्माण किया गया था। महलों और किलों के प्रबंधन में भारी लापरवाही पाई गई। रिपोर्ट के अनुसार यदि ये स्मारक या उनसे संबंधित दस्तावेज-कलाकारी एक बार मिट जाए या नष्ट हो जाए तो इनकी वापसी के लिए कोई तंत्र ही विकसित नहीं किया गया है।

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