शशिकांत गुप्ते
आज सीतारामजी ने मुझसे शायराना अंदाज में ही गुफ़्तगू की।
गुफ़्तगू की शुरुआत ही शायर अकबर इलाहाबादी के इस शेर की।
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
मैने जानना चाहा की उक्त शेर पढ़ने का क्या कारण है।
सीतारामजी ने कहा इनदिनों कुछ लोग अपने पुरखों की तौहीन करते हैं। जिन पुरखों ने अपनी शहादत देकर मुल्क को आजाद किया। जिन पुरखों ने विदेशी हुकूमत से लोहा लिया।
मैने कहा उक्त मानसिकता तो ऐसे लोगों की जो मानसिक रूप से गुरुर में चूर होते हैं।
सीतारामजी ने ऐसे लोगों को नसीहत देते हुए, शायर बशीर बद्र का ये शेर पढ़ा।
ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो
इसी में उस का भला है ग़ुरूर कम कर दे
गुरुर करने वाले का नतीजा अंतः क्या होता है,इस मुद्दे पर मैने भी सीतारामजी को शायर
क़ैसर-उल जाफ़री का ये शेर सुना दिया।
ज़मीं पे टूट के कैसे गिरा ग़ुरूर उस का
अभी अभी तो उसे आसमाँ पे देखा था
मैने कहा किसी विचारक ने कहा है,गुरुर करना मतलब अपनी नासमझी और नाकामियों को छिपाना ही तो है।
मेरी बात समर्थन करते हुए सीतारामजी शायर मोहम्मद आज़म का यह शेर सुना दिया।
आसमानों में उड़ा करते हैं फूले फूले
हल्के लोगों के बड़े काम हवा करती है
मुझे फिल्म जिस देश में गंगा बहती है के गीत की कुछ पंक्तियों का स्मरण हुआ। गीतकार शैलेंद्र रचित पंक्तियां निम्नानुसार है।
होठों पे सच्चाई रहती है
जहाँ दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
अपने ही देश में गुरुर में चूर कुछ लोगों की मानसिकता इस तरह की है।
कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं
इन्सान को कम पहचानते हैं
सीतारामजी कहा गुरुर इंसानियत का दुश्मन होता हैं।
अंत में सीतारामजी ने गीतकार इंदिवर रचित इन पंक्तियों स्मरण किया।
होगा मसीहा सामने तेरे फिर भी न तू बच पायेगा
तेर अपना खून ही आखिर तुझको आग लगायेगा
आसमान में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेगा
मैने सीतारामजी के कथन को सहमति देते हुए कहा,समझदार को इशारा काफ़ी है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर