पुष्पा गुप्ता*
मध्यप्रदेश में छतरपुर ज़िले के ऐतिहासिक स्थल खजुराहो की ओर दिल्ली से जाती ट्रेन अक्सर छतरपुर के पास रुकती है. ये कोई स्टेशन नहीं है. ये वो जगह है, जहाँ ख़ासकर मंगलवार, शनिवार को चेन खींचकर ट्रेन रोकी जाती है. ट्रेन से बड़ी संख्या में लोग उतरते हैं. इन लोगों के लिए बस या ऑटो, टैम्पो खड़े होते हैं. ये लोग जिस जगह जा रहे हैं, उसका नाम है बागेश्वर बाबा धाम, जहाँ 26 साल के ‘बाबा’ धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बैठते हैं.
धीरेंद्र शास्त्री फिर चर्चा में हैं. वजह- अंधविश्वास फ़ैलाने के आरोप, मीडिया कवरेज और आरोपों पर धीरेंद्र शास्त्री के जवाब.
ये पहली बार नहीं है, जब धीरेंद्र शास्त्री ख़बरों में हैं. ताली बजाते चुटीले अंदाज़, पर्चे पर भक्तों के सवाल, सनातन धर्म की बातें, चमत्कार, केंद्रीय मंत्रियों को आशीर्वाद, अजीब बर्ताव, विवादित बयान, ज़मीन पर क़ब्ज़े के आरोप… धीरेंद्र शास्त्री की शख़्सियत की कई परतें हैं.
खजुराहो मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव है- गढ़ा. इसी गाँव में रामकृपाल और सरोज के घर साल 1996 में धीरेंद्र पैदा हुए. धीरेंद्र स्कूल के लिए निकलते, लेकिन मंदिर पहुँच जाते. छोटी उम्र से ही धीरेंद्र धोती-कुर्ता पहनने लगे थे. धीरेंद्र बेहद ग़रीब परिवार से थे, परिवार कई बार मांगकर खाना खाता था.
धीरेंद्र शास्त्री की वेबसाइट के मुताबिक़, ”धीरेंद्र शास्त्री का बचपन तंगहाली में बीता. कर्मकांडी परिवार था. पूजा पाठ में जो दक्षिणा मिल जाती, उसी से पाँच लोगों का परिवार चलता.” धीरेंद्र कुल तीन भाई-बहन हैं. धीरेंद्र सबसे बड़े हैं. बहन रीता गर्ग और शालीग्राम गर्ग धीरेंद्र के बहन और भाई हैं. बहन की शादी हो चुकी है और भाई आश्रम का काम देखते हैं.
स्थानीय लोगों के अनुसार ज़्यादातर तो वो पंडिताई ही किया करते थे. पर हाँ, कभी कभार बैट-बॉल भी खेलते थे. आठवीं तक की पढ़ाई गढ़ा के सरकारी स्कूल में हुई. धीरेंद्र के दादा सैतू लाल गर्ग भी पूजा-पाठ और धार्मिक काम करते थे. दादा से पंडिताई के गुण धीरेंद्र ने सीखे और कम उम्र से ही पंडिताई करने लगे.
एक वीडियो में धीरेंद्र शास्त्री बताते हैं, ”हमें लगातार तीन बार सपने में हमारे दादा जी महाराज आए. हमसे अज्ञातवास पर जाने के लिए कहा. तब हम जानते नहीं थे कि अज्ञातवास क्या होता है. फिर हमें पता चला कि पांडवों ने भी किया था. तब हमें समझ आया कि अज्ञातवास से भी भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है. हम जब अज्ञातवास से लौटे तो दरबार लगाने लगे. लोगों का साथ मिलता रहा.”
धीरेंद्र शास्त्री के साथ स्कूल में पढ़ चुके एक व्यक्ति बताते हैं, ”स्कूल में धीरेंद्र एक क्लास मुझसे छोटा था. मालूम नहीं कि दसवीं पास हुआ या नहीं. पहले तो वहीं घूमा करता था. पढ़ाई में भी कोई बहुत ख़ास नहीं था. कहता था कि बड़े होकर धंधा करना है. फिर पता नहीं कहाँ, एक साल के लिए ग़ायब हो गया था. लौटा तो अलग ही था. धीरे-धीरे विधायकों, बाहुबलियों का आना शुरू हुआ. आप ये समझो कि ये बना तो कांग्रेस नेताओं के कारण है पर आज जो हो रहा है, उसमें भाजपा का रोल है. वरना पाँच साल पहले तक साइकिल, मोटर-साइकिल से घूमा करता था. ”
धीरेंद्र शास्त्री की वेबसाइट पर लिखा है, ”गुरुदेव (धीरेंद्र) को अपनी पढ़ाई बचपन में छोड़नी पड़ी. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े गुरुदेव का बचपन परिवार के ख़र्चे उठाने में बीता. फिर एक दिन दादा गुरु के आशीर्वाद से बालाजी महाराज की सेवा में जुट गए.” इस सेवा का फल कितना मीठा है? धीरेंद्र शास्त्री की अब की ज़िंदगी जवाब देती है. धीरेंद्र शास्त्री अब प्लेन और कई बार प्राइवेट जेट से चलते हैं. भारत से लेकर लंदन तक उनका सम्मान होता है.
जब धीरेंद्र शास्त्री कहीं निकलते हैं, तो दर्जनों गाड़ियों का काफ़िला साथ चलता है. लेकिन ये सब संभव कैसे हुआ?
गढ़ा में धीरेंद्र शास्त्री का जहाँ दरबार है, उसी के पास एक प्राचीन शिव मंदिर है. इसी मंदिर में एक संन्यासी बाबा होते थे, जिनकी विरासत और आशीर्वाद को आगे बढ़ाने की बातें धीरेंद्र करते दिखते हैं. इसी शिव मंदिर परिसर में बालाजी का भी एक मंदिर है, जिसे देखने पर ये पता चलता है कि नया निर्माण है. ऐसे वीडियो भी उपलब्ध हैं, जिसमें देख सकते हैं कि कुछ साल पहले तक इस जगह पर शिव मंदिर तो था, लेकिन बालाजी का मंदिर अभी जैसा नहीं बना था. धीरेंद्र इस जगह से कुछ दूरी पर बैठते हैं.
विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं, ”इस जगह पर शंकर जी का मंदिर था. बगल में हनुमान जी की मूर्ति थी. धीरेंद्र के बाबा यहाँ पूजा किया करते थे. इन लोगों के पास घर द्वार कुछ नहीं था.”
कई मौक़ों पर धीरेंद्र शास्त्री ने रामभद्राचार्य जी महाराज को अपना गुरु बताया है. रामभद्राचार्य बचपन से ही नेत्रहीन हैं और उनके भक्तों में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे लोग भी शामिल हैं.
इंटरनेट से सफलता का रास्ता
जिस तरह भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा, उसका फ़ायदा धीरेंद्र को भी मिला. धीरेंद्र वीडियो यू-ट्यूब, वॉट्स ऐप और फिर संस्कार चैनल के ज़रिए बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचे. सोशल मीडिया ने भी अहम भूमिका अदा की. आज धीरेंद्र के ज़्यादातर वीडियो पर लाखों व्यूज़ हैं. यू-ट्यूब पर 37 लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स और तीन साल में व्यू 54 करोड़ से ज़्यादा हैं. फ़ेसबुक पर बागेश्वर धाम के 30 लाख, ट्विटर पर 60 हज़ार और इंस्टाग्राम पर 2 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर हैं.
बाबा बागेश्वर धाम की वेबसाइट गूगल सर्च को ध्यान में रखकर डिज़ाइन हुई है. आसान भाषा में यूँ समझिए कि गूगल पर लोग क्या लिखकर सर्च करते होंगे, किस सवाल को सबसे ज़्यादा खोजते होंगे और किन कीवर्ड (शब्दों) के साथ खोजते होंगे, इसका ध्यान रखा गया है. ताकि अगर गूगल पर कोई सर्च करे, तो सीधा धीरेंद्र की वेबसाइट तक पहुँचे.
23 जनवरी को वेबसाइट के होम पेज पर ‘बागेश्वर धाम श्री यंत्रम्’ का प्रचार हो रहा था. इस प्रचार में दावा था कि ये यंत्र भारत के सिर्फ़ पाँच हज़ार ‘भाग्यशाली’ लोगों को ही मिलेगा और इसको घर में रखने से ग़रीबी दूर होगी.
रजिस्ट्रेशन करने के लिए जहाँ क्लिक करवाया जाता है, वहाँ अपना फ़ोन नंबर और नाम लिखने पर संस्कार टीवी की वेबसाइट पर अकाउंट बन जाता है. ये संस्कार टीवी वही है, जिसके मालिक योगगुरु और उद्योगपति रामदेव हैं. विवादों में घिरे धीरेंद्र के समर्थन में रामदेव भी आए हैं.
यू-ट्यूब में थंबनेल यानी वीडियो प्ले करने से पहले दिखने वाली फ़ोटो काफ़ी अहम मानी जाती है. अगर आप बागेश्वर धाम के यू-ट्यूब चैनल के वीडियोज़ पर नज़र दौड़ाएँगे, तो वो सर्च और लोगों के मिजाज़ को ध्यान में रखकर बनाए दिखते हैं.
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इंटरनेट से इतर बात करें, तो धीरेंद्र के दीवानों में ज़मीन पर भी काफ़ी लोग दिखते हैं. धीरेंद्र के चेचेरे भाई लोकेश गर्ग बीबीसी हिंदी से बताते हैं, ”हर रोज़ लगभग 10-15 हज़ार लोग बागेश्वर धाम पर आते हैं. जब गुरु जी महाराज (धीरेंद्र) रहते हैं, तब मंगलवार, शनिवार को यहाँ आने वालों की संख्या डेढ़-दो लाख से ज़्यादा होती है.” इन दरबारों में पहुँचा कैसे जाता है और ये पूरी प्रक्रिया क्या है? इसकी जानकारी बाबा बागेश्वर धाम की वेबसाइट पर है.
वेबसाइट के मुताबिक़, बागेश्वर धाम में वक़्त-वक़्त पर टोकन दिए जाते हैं. कमेटी महाराज के फ़ैसले के बाद श्रद्धालुओं को टोकन डाले जाने की तारीख़ बता देती है. ये जानकारी दरबार और सोशल मीडिया से देते हैं. टोकन पेटी में श्रद्धालुओं को अपना नाम, पिता का नाम, गाँव, ज़िला, राज्य, पिन कोड और फ़ोन नंबर लिखकर डालना होता है.
फिर जिसका टोकन लगता है, उससे कमेटी संपर्क करती है. जिस दिन का टोकन, उसी दिन बागेश्वर धाम जाना होगा. वेबसाइट में लिखा है, ”गुरुदेव ख़ुद बता देते हैं कि कितनी पेशी करनी है पर कम से कम पाँच मंगलवार पेशी करने का आदेश हर भक्त को आता है.”
इन टोकन और बागेश्वर धाम में लोगों की श्रद्धा इस क़दर बढ़ रही है कि गढ़ा गाँव में ज़मीन के दाम भी तेज़ी से बढ़े हैं. गढ़ा में दुकानें और दूसरी सुविधाएँ भी तेज़ी से बढ़ी हैं. आलम ये है कि यहाँ आने वाले लोगों की संख्या के कारण ज़मीन के दाम काफ़ी बढ़े हैं. जहाँ ज़मीन होती है, वहाँ विवाद की आशंकाएं होती हैं. धीरेंद्र शास्त्री भी इससे अलग नहीं हैं.
चंदला के पूर्व विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं, ”गढ़ा में जो सरकारी ज़मीन थी, उस पर धीरेंद्र शास्त्री ने अपना निर्माण करवा लिया.”
धीरेंद्र शास्त्री पर ज़मीन हड़पने के आरोप कुछ स्थानीय लोगों ने भी लगाया था और धरना भी दिया था और इस बारे में प्रशासनिक अधिकारियों को शिकायत भी की गई थी. ये मामला कोर्ट तक पहुँचा और अदालत ने निषेधाज्ञा जारी करते हुए किसी तरह का हस्तक्षेप न करने का आदेश दिया था. इस केस को दर्ज करने वाले कई लोगों में से 26 साल के एक संतोष सिंह भी थे.
संतोष सिंह ने कहा है, ”इस जगह पर हमारी दुकानें थीं. एक रात ये लोग आए और दुकानें हटवा दीं. हमें पता तक नहीं चला. हम कलेक्टरेट भी गए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हम धरने पर भी बैठे. ये जगह मंदिर के पीछे है. फिर अभी कुछ दिन पहले हमसे इन लोगों ने कहा कि ज़मीन हमें दे दो और रजिस्ट्री हमारे नाम कर दो, इसलिए अब हमारे पापा, चाचा लोगों ने लगभग 30 लाख रुपए में ये ज़मीन बेच दी है.”
धीरेंद्र की वेबसाइट पर पर्यावरण रक्षा के लिए पेड़ पौधे लगाए जाने की बातें दिखती हैं. लेकिन गढ़ा में ही उन पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के आरोप भी हैं. आरडी प्रजापति बताते हैं, ”गाँव में एक तालाब था. श्मशान जहाँ मुर्दे जलते थे, उस पर क़ब्ज़ा कर लिया. गाँव के सामुदायिक भवन पर भी क़ब्ज़ा किया. ये ऐसा इलाक़ा है, जहाँ कुरीतियाँ और अंधविश्वास आज भी है. पाँच रुपये के लॉकेट को पाँच हज़ार तो कभी 51 हज़ार में देना शुरू किया. ऐसे ही करोड़ों में खेल गए. इस तरह से इनका व्यवसाय चलने लगा. इन लोगों के पास इतना पैसा और ज़मीन कहाँ थी कि ये लोग सामुदायिक भवन बनवा दें. अगर इन लोगों ने नीचे वाले फ़्लोर पर पुताई वगैरह नहीं करवाई होगी, तो अब भी दिख जाएगा कि वो सरकारी जगह है.”
धीरेंद्र के दरबारों में जाने वाले और भक्तों की लिस्ट में सिर्फ़ आम लोग शामिल नहीं हैं. ये लिस्ट छतरपुर के स्थानीय नेताओं में कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी से शुरू होती है, जिनकी धीरेंद्र शास्त्री के आगे बढ़ने में अहम भूमिका बताई जाती है. फिर इस लिस्ट में कैलाश विजयवर्गीय, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और नितिन गडकरी, गिरिराज सिंह जैसे केंद्रीय नेताओं के नाम भी आते हैं.
नेता जब धीरेंद्र के दरबार में जाते हैं, तब सिर्फ़ तस्वीरें आती हैं. लेकिन जब आम लोग दरबार में जाते हैं, तब कई तरह के वीडियोज़ सामने आते हैं.
लगभग सभी वीडियोज़ में श्रद्धालु धीरेंद्र के लिखे पर्चे, बताए सवाल और समाधान से संतुष्ट दिखते हैं. धीरेंद्र इनसे पूछते भी हैं कि धाम में आने के बाद ज़िंदगी बदली? सभी लोग हाँ में जवाब देते हैं.
अंधविश्वास फैलाने के आरोप हाल के दिनों में तब और बढ़ गए, जब अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव ने धीरेंद्र शास्त्री को उनके चुने हुए लोगों के बीच चमत्कार दिखाने की चुनौती दी थी. श्याम मानव ने कहा था कि अगर धीरेंद्र ऐसा करते हैं तो वो उन्हें 30 लाख रुपए देंगे.
इस ऐलान के बाद धीरेंद्र के दो दिन पहले ही अपना दरबार ख़त्म करने की बातें कही गईं. हालाँकि धीरेंद्र शास्त्री ने इस पर कहा कि कार्यक्रम को दो दिन पहले ख़त्म करने की योजना पहले से थी. श्याम मानव की चुनौती और केस दर्ज करने की ख़बरों ने लोगों का ध्यान धीरेंद्र पर और ज़्यादा खींचा. धीरेंद्र पर भारतीय मीडिया की कवरेज शुरू हुई. धीरेंद्र भी पत्रकारों को इंटरव्यू और पत्रकारों के चुने लोगों के पर्चे पढ़ने लगे.
छत्तीसगढ़ में धीरेंद्र के 20 जनवरी के कार्यक्रम में कई पत्रकार शामिल हुए. पत्रकारों के सामने अपने आप को साबित करने की कोशिश करते धीरेंद्र के कई वीडियो भी वायरल हुए. धीरेंद्र ऐसी ही एक रिपोर्टर से भक्तों की भीड़ में बैठे किसी फ़रियादी को चुनने के लिए कहते हैं.
इस दौरान धीरेंद्र अपने पास पर्चा लिखने लगते हैं. जब रिपोर्टर महिला को चुनकर लाती हैं तो बताने से पहले ही धीरेंद्र महिला की समस्या को पर्चे पर लिखकर दिखा देते हैं.
हमने इन रिपोर्टर से बात की. रिपोर्टर कहती हैं, ”मैं इन सब में यक़ीन नहीं रखती. नौकरी है इसलिए वहाँ गई थी. निजी तौर पर मुझे लगता है कि ऐसी कवरेज से इन बाबाओं को फ़ायदा ही पहुँचता है. मैंने जब वहाँ महिला को चुना, तो मुझे किसी ने ऐसा करने के लिए कहा नहीं था. वो महिला जब स्टेज से नीचे आईं तो मैंने उनसे पूछा कि क्या धीरेंद्र शास्त्री ने वही बातें बताईं, जो उनके मन में थीं. इस पर उस महिला ने हामी भरी. वो चमत्कार था या कुछ और ये लोगों को ख़ुद तय करना चाहिए.”
रिपोर्टर के मुताबिक़, ”धीरेंद्र ने पत्रकारों के लिए एक अलग कोना बनाया था, जहाँ हम खड़े थे. फिर अचानक वो बोले कि पत्रकारों को लग रहा होगा कि हम सिर्फ़ अपने लोगों को बुला रहे, तो एक काम करो आप अपनी पसंद से जाओ, किसी को भी चुन लाओ.”
धीरेंद्र का एक ख़ास तरीक़ा है, जो मंच से हमेशा दिखता है. वो ज़्यादातर मौक़ों पर किसी दिलचस्प बात को कहने के फ़ौरन बाद ताली बजाते हैं, जय राम बोलते हैं. कई बार वो श्रद्धालुओं से बात करते हुए बेहद बेरुख़ी भी अपनाते हैं.
अपनी सभा में धीरेंद्र शास्त्री भूत-प्रेतों का इलाज करने का भी दावा करते हैं. वो मंच से बुदबुदाते हैं, फूंक मारते हैं. भीड़ से चिल्लाने की आवाज़ आती है. भीड़ से उठते आदमी, औरतें चीखते नज़र आते हैं. धीरेंद्र कहते हैं- इनको और चिमटे मारे जाएँ, जंज़ीर से जकड़ा जाए इन्हें.
शोधकर्ताओं और डॉक्टरों का मानना है, ”जब लोग भूतों की मौजूदगी महसूस करते हैं, तब दिमाग भटक रहा होता है. यह शरीर की स्थिति का ग़लत अनुमान लगाता है और ऐसा मानता है कि यह किसी और का है.”
धीरेंद्र सिर्फ़ श्रद्धालुओं की समस्याओं पर ही बात नहीं करते हैं. वो फ़िल्म कश्मीर फ़ाइल्स, पठान से लेकर हिंदू राष्ट्र और सनातन धर्म की बातें भी करते हैं. इसी क्रम में धीरेंद्र का ताज़ा बयान 23 जनवरी का है. धीरेंद्र ने कहा, ”नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने नारा दिया था- तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा. हमने आज भारत के इतिहास में नया नारा बनाया है- तुम मेरा साथ दो, हम हिंदू राष्ट्र बनाएँगे. भारत के लोगों अब चूड़ियाँ पहनकर घर में मत बैठो. ये केवल बागेश्वर धाम पर उंगली नहीं उठाई है, ये प्रत्येक सनातनी पर उंगली उठाई गई है.”
मई 2022 में धीरेंद्र शास्त्री का एक वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में एक शख़्स धीरेंद्र के पैर छूते दिखता है. धीरेंद्र उसे रोककर कहते हैं, ”छूना नहीं हमें. अछूत आदमी हैं…जय श्रीराम.
धीरेंद्र शास्त्री जो करते हैं, वो क्या कहलाता है? शायद आप सोच रहे होंगे कि धीरेंद्र जो करते हैं, वो असल में है क्या? इस सवाल के कई जवाब हैं. धीरेंद्र से पूछेंगे तो जवाब मिलेगा- हम कुछ नहीं कर रहे, सब बालाजी कर रहे हैं और हमसे करवा रहे.
श्रद्धालुओं से पूछेंगे तो जवाब मिलेगा- चमत्कार है! विज्ञान, मनोवैज्ञानिकों और जादूगरों से पूछेंगे तो जवाब बिलकुल अलग मिलेगा.
एक कला होती है, जिसका नाम है- मेंटलिज़्म. इसे माइंड रीडिंग यानी दिमाग़ को पढ़ना भी कहते हैं. इस कला को जानने वाला इंसान सामने वाले के हाव-भाव, शब्दों के इस्तेमाल, बोली के आधार पर सामने वाले के दिमाग़ को पढ़ सकता है. इसी कला की एक कलाकार और यू-ट्यूबर मुंबई में रह रही सुहानी शाह हैं. वो इन दिनों टीवी चैनलों पर भी दिखीं.
सुहानी अपने यू-ट्यूब वीडियो और शो में बिना सामने वाले के कहे उससे जुड़ी कुछ बातें बताती दिखती हैं. सुहानी शाह कहती हैं :
”जादू के अंदर कई जौनर होते हैं. मेंटलिज़्म भी उसी में से एक है. मैं 32 साल की हूँ और 07 साल की उम्र से जादू की ट्रिक्स कर रही हूँ. बीते 10 सालों से मेंटलिज़्म कर रही हूँ. मेंटलिज़्म में कई तकनीक होती हैं. कई बार आँखों की मूवमेंट, हाव-भाव, बोलने के तरीक़ों से सामने वाले की बात को जाना जा सकता है. ये पूरी कला लोगों के दिमाग़ के आस-पास होती हैं. सनातन धर्म कहता है कि सच बोलना चाहिए. अगर कोई झूठ बोल रहा है तो ये ग़लत है. अगर धीरेंद्र किसी का दिमाग़ पढ़ पा रहे हैं तो ये एक ट्रिक है. उन्हें इसे ट्रिक ही बोलना चाहिए. लोगों को मुर्ख बनाकर समस्या समाधान के नाम पर धर्म की इंडस्ट्री ख़डी करने में ती बहुतेरे लगे हुए हैं. वे जो करते हैं, आप मेरे वीडियोज़ देखेंगे तो जानेंगे की मैं उससे कहीं आगे की चीज़ें करती हूँ. मैं जिसे कला बोलती हूँ, वे उसे चमत्कार/ईश्वरीय कृपा बोलते हैं.”
यूपीएससी कोचिंग के जाने-माने टीचर डॉ विकास दिव्यकीर्ति भी अपनी एक क्लास में दूसरों के दिमाग़ पढ़ने की कला पर कहते हैं, ”साइकोलॉजी में कई लोग होते हैं, जो उस लेवल पर पहुँच जाते हैं, जो आँख देखकर पूरा टटोल लेते हैं कि सामने वाले के मन में क्या चल रहा है.”
ऐसा नहीं है कि इस तरह से लोगों की परेशानियों को किसी कहे या अनकहे ‘चमत्कार’ से दूर करने वालों में धीरेंद्र शास्त्री अकेला नाम हैं.
ईसाइयों, मुसलमानों में भी ऐसे कई लोग हुए हैं, जो कभी ‘हलालुइया’ तो कभी क़ुरान की आयतें पढ़कर लोगों के दुख दूर करने का दावा करते दिखते हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो उपलब्ध हैं, जिसमें ‘हलालुइया’ कहकर विकलांगों को चलते, व्हीलचेयर से उठकर दौड़ते और आँखों की रोशनी लौटाने का दावा करते कुछ स्वघोषित गुरु दिखते हैं.
भारत में कई लोग मदर टेरेसा के कथित चमत्कारों पर उंगली उठा चुके हैं. हाल ही में एक मलयालम फ़िल्म ‘ट्रांस’ भी रिलीज़ हुई थी. फ़िल्म में ईसाई धर्म में यीशू के नाम पर लोगों का इलाज करते लोगों और इससे जुड़े साम्राज्य पर चोट की गई थी. आमिर ख़ान की ‘पीके’ फ़िल्म तो सभी धर्मों से जुड़े ऐसे लोगों पर तंज़ कसती है.
_पर्दे पर भले ही ऐसे लोगों की कहानियाँ और सच सामने लाने की कोशिश हो रही हैं, लेकिन हक़ीक़त में लोगों की श्रद्धा और विश्वास धर्म से जुड़े गुरुओं पर बढ़ती नज़र आ रही है.ऐसे ही धीरेंद्र शास्त्री भी हैं, जो अपने दरबार में जब लोगों से बात करते हैं तो अक्सर हँसते हुए अपनी हथेली आपस में पीटकर ज़ोर से कहते हैं- बजाओ ताली…!_