ए. के. ब्राईट
कौन ईमानदार है, कौन बेईमान है इसे मीडिया द्वारा प्रचारित होना होता है. और इस सब प्रचार में मीडिया संस्थानों के मालिक अपने हितों की अनदेखी भला कैसे कर सकते हैं ! कम से कम देश दुनिया में चल रही छीना झपटी की राजनीति तो यही बयां कर रही है. जैसा कि पूंजीवादी व्यवस्थाओं का अपना एक मात्र मुनाफावादी चरित्र होता है, इससे इतर उनके लिए कोई संवेदना नहीं होती है. इसलिए मीडिया उसी को हीरो बनाने की होड़ में रहती है, जिससे मुनाफे में क्रूरतम वृद्धि दर जारी रहे.
पूंजीवादी मीडिया के हीरो नेतन्याहू, बाइडेन, नाटो देश, कनाडा बगैरह हैं क्योंकि ये देश महाविनाशक हथियारों के न केवल बड़े उत्पादक देश हैं बल्कि अपने हथियारों के प्रचार के लिए उसी मीडिया का सहारा लेते हैं, जिस मीडिया से आप उनके दुश्मनों की सलामती की खबर की उम्मीद रखते हैं. नतीजा ये होता है कि दुनिया में शांति की बात करने वालों को उनकी गोदी मीडिया या तो जोकर साबित कर देती है या फिर उसके राजनीतिक बयानों का वजन इतना हल्का कर देती है कि खबर आते आते गायब हो जाती है.
लोकतंत्र, अतीत की राजशाही से लोहा लेने वाले संघर्षकारियों के लिए भविष्य की उन्नत मानव व्यवस्थाओं को स्थापित करने के बीच मूल्यांकन व विमर्शकारी पड़ाव मात्र है, न कि लोकतंत्र को ही अंतिम व्यवस्था साबित करने का राजनीतिक तमाशा करना. एक सचेतन सुरक्षा प्रहरी को हर समय हर चीज को संदेह की नजर से देखना होता है, यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसके साथ कभी भी अनहोनी हो सकती है.
चूंकि मानव विकास क्रमों के मुताबिक भूमंडलीकरण के आगाज के साथ ही देश दुनिया लोकतांत्रिक देश लोकतंत्र को अपनी जगह छोड़ चुके हैं. अब दुनिया में सैद्धांतिक लोकतंत्र नहीं है, अब जो भी एक व्यवस्था किसी मुल्क में होगी बाकी के मुल्कों में भी उसी से कम ज्यादा तौर पर व्यवस्था होगी, नतीजा ये है कि आर्थिक तौर पर संपन्न विकसित देशों ने भी अपनी राजनीतिक हैसियत को विकासशील देशों की राजनीति के आगे बिछा दिया है.
दुनिया के मुल्कों में चाहे वैचारिक तौर पर कोई भी सरकार बनती रही हो लेकिन बाकी के मुल्कों के राष्ट्राध्यक्ष उस नये प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पदासीन होने पर बधाई देते हैं. इस बधाई संदेश में उस मुल्क के नागरिक अपेक्षाओं के लिए धीरज व सांत्वना शामिल होती है. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक हितों के मद्देनजर यह एक शर्मीली राजनीतिक शुचिता है, वरना पूंजीवादी देश अपने शत्रु व्यवस्था ‘कम्युनिस्ट देशों’ के राष्ट्राध्यक्षों के पदारूढ़ होने पर बधाई क्यों देने लगें.
इसी क्रम में जब हम देखते हैं अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करने पर डोनाल्ड ट्रम्प की जीत पर पुतिन की बधाई जल्दी नहीं पहुंचने पर दुनिया की मीडिया एक अलग ही भांगड़ा करने लगी तो इससे साबित होता है शक्तिशाली राष्ट्र होने का ‘पूंजीवादी गौरव’ अमरीका पूरी तरह खो चुका है. कई पश्चिमी मीडियाई खबरों में तो यहां तक चलाया गया कि ट्रम्प को पुतिन एक संदिग्ध राष्ट्रपति के तौर पर देखते हैं. हालांकि बाद में पुतिन ने ट्रम्प को न केवल बधाई दी बल्कि जल्दी से आमने-सामने बातचीत करने की उम्मीद जताई.
अब सबसे पहले बातचीत क्या होनी चाहिए ये सभी जानते हैं. यूक्रेन और इजरायल को अमरीका हथियारों की मदद नहीं करेगा, इसे पुतिन पहले से कहते रहे हैं. उधर ट्रम्प ने भी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद पुतिन को खुश करने के लिए ये तक कह दिया कि यूक्रेन को अगले 20 सालों तक नाटो की सदस्यता नहीं दी जानी चाहिए, और इजरायल को समर्थन नहीं दिया जायेगा.
इस समय का मानवतावादी दस्तूर भी यही कहता है कि गाजा, फिलिस्तीनी, इजरायल, यूक्रेन में हो रही हर रोज अनगिनत मौतों को रोका जाए. यदि ट्रम्प इन व्यापारिक युद्धों पर वास्तविक लगाम लगाने के लिए काम करते हैं तो यह एक बहुत बड़ी शाबाशी वाला राजनीतिक कदम होगा.
हालांकि मुनाफाखोरों की चौकसी को धता बताने जैसा काम ट्रम्प के लिए आसान नहीं होगा लेकिन वैश्विक मानवतावादी प्रयासों की बदौलत इसके लिए दबाव जरूर बनाया जायेगा, वरना पुतिन, किमजोंग उन और जिनपिंग तो ये जानते ही हैं कि रक्त-पिपासु शासकवर्ग की बधाई लेना और उसे बधाई देना एक राजनीतिक स्वांग से अलावा कुछ भी नहीं है. इसमें भी कोई दोराय नहीं कि ट्रम्प की ‘कुर्सी’ की उम्र भी ट्रिपल पावर ही तय करने जा रही है.
ट्रम्प की जीत और पुतिन का आशीर्वाद
ट्रंप की जीत के साथ ही उधर ब्रिटेन से भी एक विमान में बमबाजी की खबर आ रही है तो जेलेंस्की का चेहरा निचोड़े हुए नींबू जैसा हो चुका है. खबर तो यहां तक आ रही है कि ट्रंप समर्थकों ने पुतिन जिंदाबाद तक के नारे लगा दिए हैं. उधर हिजबुल्ला ने इजरायल के लगभग आधे दर्जन महत्वपूर्ण ठिकानों पर सफल हमले कर ट्रंप को राष्ट्रपति पद पर जीत की बधाई भेज दी है. लगे हाथ हमास ने भी दो इजरायली मर्कावा टैंकों का धुआं उड़ाकर ट्रंप के लिए बधाई सन्देश भेजा है. हालांकि ट्रंप 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.
बाइडेन प्रशासन जेलेंस्की को सभी विचाराधीन करोड़ों डालर की मदद को जल्दी से यूक्रेन के सुपुर्द करना चाहता है. लेकिन, जो लोग सोच रहे हैं ट्रंप – पुतिन की राजनीतिक नजदीकी से दुनिया से युद्धों का संकट टल जायेगा, वो भारी गफलत के शिकार हैं. एक धरती पर एक ही सर्वशक्तिमान शासक रहेगा और वह सर्वशक्तिमान शासक या तो पुतिन खुद होंगे या फिर जो भी होगा उसे पुतिन के घर झाड़ू पोंछा करना होगा.
एडजस्टमेंट और मैनेजमेंट का काम पहले से ही उत्तर कोरिया और चीन ने हथिया रखा है. बाकी, किसी ने बीच में चूं-चपड़ की तो ‘ट्रिपल पावर’ द्वारा परमाणु बम और सुपरसोनिक मिसाइलों का टेस्ट करके बता दिया जाएगा कि तुम ‘अमरीका से बड़े गुंडे नहीं हो.’
फुटबॉल मैदान से नेतन्याहू को मारी किक
बीते 7 नवंबर को नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में सरकार को अनिश्चितकालीन कर्फ्यू की घोषणा करनी पड़ी लेकिन इससे भी नेतन्याहू के अंधभक्तों पर चढ़ बैठी साढ़ेसाती की बला नहीं टली और सैकड़ों नेतन्याहू अंधभक्तों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा और फिलीस्तीन शांति समर्थकों ने सरेआम उनके गुप्तांगों पर डंडे घूंसे और लात बरसाई.
डेली न्यूज़ ‘नीदरलैंड्स टाइम्स’ के मुताबिक एम्स्टर्डम में चल रहे फुटबॉल मैच के दरमियान मैदान के किनारे पर फहराये गये फिलिस्तीनी झंडे से विवाद पैदा हुआ. इजरायली नागरिकों ने फिलिस्तीनी झंडे को उखाड़कर फेंकने कोशिश की. फिर क्या था दर्शक दीर्घा में बैठे आधे से अधिक लोग, जिसमें महिलाएं भी शामिल थी उजड्ड इजरायली नागरिकों के पीछे दौड़ पड़े और देखते-देखते एम्स्टर्डम में पुलिस सायरन हूटर बजने लगे.
बताया जा रहा है कि इस भगदड़ में कम से कम 46 ‘इजरायली हुड़दंगियों’ को भीड़ ने बुरी तरह घायल कर दिया है. हालांकि चोटिल हुए इजरायली हुड़दंगियों की तादाद 122 के आसपास बताई जा रही है. नेतन्याहू ने मेडिकल साजो-सामान के साथ 2 विमान तुरंत ही एम्स्टर्डम के लिए रवाना करते हुए आरोप लगाया कि एम्स्टर्डम सुरक्षा अधिकारियों की अनुमति के बिना फिलिस्तीन समर्थक इतनी ताकत हरगिज नहीं दिखा सकते.
जेलेंस्की के होश फाख्ता
यूक्रेनी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी यूक्रिनफार्म के अनुसार ‘सब कुछ पहले से फिक्स था. यूक्रेन की मदद के नाम पर सिर्फ अपने हथियारों की टेस्टिंग की गई. टेस्ट में जिन हथियारों ने प्रोग्रामिंग के हिसाब से नतीजे दिये, उन हथियारों को यूक्रेन से वापस उठा लिया गया. पुतिन से सब डरते हैं. अब सब कुछ चीन, उत्तर कोरिया और रूस तय करेंगे.’
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