*क्या पुलिस की शह पर हुआ यह बड़ा हादसा?*
*छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने पत्रकार की हत्या के मामले में दिखाई तत्परता, निष्पक्ष जांच का दिया भरोसा* *आखिर इंस्पेक्टर दुर्गेश शर्मा का नाम ही क्यों आता है पत्रकारों को प्रताड़ित करने में?**मध्यप्रदेश में पत्रकारों पर हो रहे हैं सरकार के दमन-अत्याचार के शिकार* *मुख्यमंत्री मोहन यादव के इशारों पर पत्रकारों के बंद हो रहे निजी विज्ञापन*
*विजया पाठक, सम्पादक, जगत विजन*
भारतीय लोकतंत्र में चार स्तंभों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और पत्रकारिता। भारत देश में इन चारों स्तंभों में से तीन स्तंभों को अपने-अपने हिसाब से कार्य करने की स्वतंत्रता है। लेकिन मीडिया की स्वतंत्रता पर समय-समय पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाता रहा है। यह अंकुश न सिर्फ पूर्व में लगाया जाता रहा है बल्कि वर्तमान में मीडिया की आवाज को रोकने और कलम की ताकत को दबाने के प्रयास जारी हैं। लेकिन देश में हो रहे अनाचार और दुराचार को सहन न करते हुये चौथे स्तंभ द्वारा जब-जब आवाज उठाई गई उस आवाज को दबाने की भरपूर कोशिश की गई। जरूरत पड़ी तो चौथे स्तंभ का गला तक घोंट दिया गया। ऐसा ही कुछ हुआ है छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर के साथ। अपनी बेबाक आवाज और कलम की ताकत के लिये खास पहचान रखने वाले मुकेश चंद्रकार की राज्य के दंबगों ने निर्मम हत्या कर दी और प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा व उनका कानून चंद्राकर की रक्षा करने में असफल साबित हुआ। छत्तीसगढ़ में दबंगों ने जो किया वह सिर्फ चंद्राकर की हत्या नहीं है, वह कलम की हत्या है। चंद्राकर की हत्या के बाद प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कलम के सिपाही खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के हस्तक्षेप के बाद फिलहाल दोषियों पर कार्यवाही हुई है, पर सवाल यह कि मुख्यमंत्री प्रदेश चलाए या कानून व्यवस्था संभालें।
*कहीं पुलिस तो ही नहीं बन गई भक्षक*
देश और समाज में पुलिस का महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोग पुलिस और पुलिस की वर्दी को जनता की सुरक्षा से जोड़कर देखते हैं। लेकिन मुकेश चंद्राकर की हत्या के मामले में सीधे पहला संदेह पुलिस की भूमिका पर जाता है। स्थानीय पत्रकारों और लोगों का कहना है कि चंद्राकर को पिछले कई दिनों से पुलिस और दबंग सुरेश चंद्राकर द्वारा मारपीट करने व मौत की धमकी आदि के संदेश भेजे जा रहे थे। पुलिस के संरक्षण में जिस तरह से दबंगों ने पत्रकार को धमकियां दी हैं उससे सीधे तौर पर समझ आता है कि यह पुलिस वाले ही तो कहीं चंद्राकर की मौत के भक्षक तो नहीं बन गये।
*दुर्गेश शर्मा की भूमिका पर है संदेह*
मुकेश चंद्राकर से जुड़े पत्रकार साथियों और अन्य दोस्तों के अनुसार मुकेश के हत्यारों के साथ थानेदार दुर्गेश शर्मा के सम्बंध, साथ ही पूरे हत्याकांड में उनकी भूमिका पर सवालियां निशान खड़े हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार दुर्गेश शर्मा वही थानेदार हैं जो एसपी जितेन्द्र यादव के इशारे पर लोगों को मारने, उठवा लेने और डराने धमकाने का काम करते हैं। दुर्गेश शर्मा जब भिलाई में पदस्थ थे तब महादेव सट्टा एप्प खूब फैला और कार्यवाही के नाम पर छोटे मोटे प्यादों को उठा लिया जाता था, तब के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने एक निजी चैनल द्वारा बनाई गई स्टिंग में यह कुबूल भी किया था कि मुख्यमंत्री सचिवालय को महादेव सट्टा मनाली में आशीर्वाद प्राप्त था, यही नहीं पर इसके बावजूद पुलिस विभाग द्वारा भूपेश बघेल के प्रिय इस थाना प्रभारी को 2024 गणतंत्र दिवस पर सर्वश्रेष्ठ थाना प्रभारी का सम्मान दिया गया। दुर्गेश शर्मा ने इससे पहले भी कई पत्रकारों को सच लिखने से रोकने का दुस्साहस किया और डराने तथा धमकाने का प्रयास किया है। मुझे बहुत अच्छे से याद है जब मैंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संरक्षण में चल रहे महादेव सट्टा ऐप से जुड़े मकड़जाल को उजागर किया तो बघेल ने इसी थानेदार दुर्गेश शर्मा के माध्यम से मुझे डराने और धमकाने का प्रयास किया। यहां तक कि दुर्गेश शर्मा अपने अन्य पुलिस के साथियों के साथ मेरे भोपाल स्थित घर तक कई बार आए और मेरे परिवार के लोगों को डराया और धमकाया।
*आखिर कब तक सोते रहेंगे छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री?*
एक तरफ राज्य में एक पत्रकार की निर्मम हत्या हो जाती है, दूसरी तरफ नक्सलियों द्वारा आठ जवानों को ब्लास्ट कर मार दिया जाता है। इन सबके बावजूद राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा चुप्पी साधे हुये क्यों बैठे हुये हैं। यही नहीं यही गृहमंत्री इन सभी मामलों में संदिग्ध भूमिका में रहने वाले थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा को मंच पर बुलाकर सम्मानित कर रहे हैं। अगर प्रदेश में कानून और लॉ एंड ऑर्डर की यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य की जनता के मन में डर और भय इतना गहरा घर कर जायेगा कि लोगों का सरकार और पुलिस से भरोसा ही उठ जायेगा। आखिर गृहमंत्री विजय शर्मा की नींद कब खुलेगी और कब वे दोषियों पर कार्रवाई कर जनता की सुरक्षा के लिये कोई सख्त कदम उठायेंगे।
*मुख्यमंत्री साय ने दिखाई तत्परता*
भले ही राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा इस पूरे मामले में उदासीन बैठे हुये हों। लेकिन राज्य के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने तत्परता दिखाते हुये दोषियों को कड़ी सजा देने का ऐलान किया। यही नहीं उन्होंने पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के लिये एसआईटी का गठन किया है जिसने अपना कार्य आरंभ भी कर दिया है।
*सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ले संज्ञान*
आये दिन देश के पत्रकारों के साथ हो रही इस तरह की घटनाओं को संज्ञान में लेते हुये सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को सख्त कदम उठाना चाहिये। मेरी अपील है सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति से कि वह पत्रकारों की सुरक्षा और दबंगों पर की जाने वाली कार्रवाई पर सख्त रवैया अपनाते हुये कोई जनहित के फैसले ले, जिससे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को जीवित रखा जा सके। क्योंकि अगर चौथे स्तंभ को संरक्षण नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब देश से सच्चाई के खिलाफ आवाज उठाने वाला लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे के निशान को भी पार कर जाये।
*मध्यप्रदेश सरकार के कारण सुरक्षित नहीं हैं पत्रकार*
भले ही आज मुकेश चंद्राकर छत्तीसगढ़ में इस तरह की घटना का शिकार हुये हैं। लेकिन इससे बुरा हाल मध्यप्रदेश का है। यहां लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में है। मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार, सरकार के नुमाइंदों द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के मामलों को छापने पर न सिर्फ पत्रकार को डराया धमकाया जाता है बल्कि उनकी अधिमान्यता तक समाप्त की जा रही हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचारों को परत दर परत खोलने वाले एक पत्रकार के सरकारी विज्ञापन तो बंद किये ही गये उनके निजी विज्ञापन भी बंद करने जैसी औछी हरकत पर उतर आई है प्रदेश की मोहन सरकार। लेकिन सरकार और उससे जुड़े लोग शायद यह भूल जाते हैं कि कलम के सिपाही किसी भी डर, धमकी या दबाव से पीछे नहीं हटते वह निरंतर आगे बढ़कर सच लिखने का साहस करते हैं और लिखते चले जाते हैं।
अक्टूबर 2023 में, पत्रकार जालम सिंह किरार के खिलाफ चार दिनों में 11 एफआईआर दर्ज की गईं, जब उन्होंने भाजपा के एक मंत्री के खिलाफ खबर प्रकाशित की थी। नवंबर 2024 में, भोपाल में लगभग 150 पत्रकारों की एक सूची वायरल हुई, जिसमें उन्हें भ्रष्टाचार से जोड़ा गया था। इस पर चार पत्रकारों ने शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। उज्जैन के चिमनगंज थाना क्षेत्र की राज रॉयल कॉलोनी में एक पत्रकार के घर देर रात बदमाशों ने हमला किया। तीन मोटरसाइकिलों पर सवार छह बदमाशों ने पहले घर के बाहर गालियां दीं और फिर पत्थरों से हमला किया।
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