सुसंस्कृति परिहार
दो बार आपातकाल लगाने के बावजूद आज श्रीलंका के लोग जिस तरह मरने मारने पर आमादा है कर्फ्यू जहां बेअसर है। उसके पीछे सरकार की गलत नीतियां हैं जिनके कारण आज लंका वासियों की हालत बहुत जर्जर हो चुकी है।अब मूल झगड़ा सरकार समर्थकों और सरकार विरोधियों के बीच है।जैसा कि सर्वविदित है श्रीलंका की जो आर्थिक हालत बदतर हो चुकी है उसकी वजह उसका ड्रेगन के कर्ज में इस बुरी फंस जाना है और उससे मुक्ति का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है इसलिए प्रधानमंत्री महेंद्रा राजपक्षे ने अपने एक और मंत्री के साथ राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप दिया है।एक सांसद पर लोगों ने हमला कर दिया उसने फायरिंग करते हुए लगा कहीं शरण ले ली है थोड़ी देर बाद उसका शव सामने आ गया।इस बीच श्रीलंका आग की लपटों में झुलसा हुआ है। राष्ट्रपति अंतरिम सरकार बनाने की कोशिश में लगे हुए।कई लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं आगजनी भी जारी है।
यह सब श्रीलंका सरकार की गलत विदेश नीति और भारत से दूर होने का परिणाम है।”बीजिंग और कोलंबो के बीच ‘मैत्रीपूर्ण संबंधों’ में किसी ‘तीसरे पक्ष’ को दखल नहीं देना चाहिए’, ये शब्द थे पिछले जनवरी में श्रीलंका के दौरे पर आए चीनी विदेश मंत्री वांग यी के।तब चीनी की मिठास में घुलकर महेन्द्रा राजपक्षे ने चीन को अपना दोस्त और भारत को रिश्तेदार बताया था। आज चीन समर्थक महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका को चीन के उपनिवेश के रूप में बदल दिया है। ड्रैगन’ की दोस्ती ने न सिर्फ ‘लंका में आग लगाई’ बल्कि भारत को भी ख़तरे में डाल दिया है।
श्रीलंका ने आंख मूंद कर ना सिर्फ भारत के सुरक्षा हितों को नजरअंदाज किया है बल्कि चीन को बड़े पैमाने पर रणनीतिक अड्डे विकसित करने की खुली छूट भी दी। श्रीलंका में चीन की कर्ज-जाल कूटनीति सफल साबित हुई जिसका उदाहरण हंबनटोटा बंदरगाह है जिसे कर्ज न चुका पाने के चलते राजपक्षे को 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा। यह बंदरगाह भारत के बेहद पास में स्थित है। 2019 में जब उनके भाई गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने और महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, उसके बाद तो दोनों ने खुलकर चीन के इशारों पर काम किया ।
राजपक्षे सरकार ने कोलंबो पोर्ट पर बनने वाले ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) प्रोजेक्ट से भारत को बाहर कर दिया। कहा गया कि सरकार ने देशभर के ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद यह फैसला लिया। साल 2019 में श्रीलंका सरकार ने भारत और जापान के साथ मिलकर इस पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए समझौता किया था। भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट पर चीन की मौजूदगी की काट के रूप में देखा जा रहा था।इतना ही नहीं, श्रीलंकाई संसद में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल पास किया गया जिससे कथित तौर पर चीन को श्रीलंका में एक उपनिवेश स्थापित करने की अनुमति मिल गई। चीन को लेकर राजपक्षे के फैसले लगातार देश की संप्रभुता को कमजोर करते रहे। भारत CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो को लेकर चिंतित है जो धीरे-धीरे चीन की एक कॉलोनी बन सकता है। यह भारत के दक्षिणी छोर से सिर्फ 300 किमी की दूरी पर स्थित है।
चीन अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रातों में भी अपने अधिपत्य को बढ़ा रहा है जहां तमिल बहुसंख्यक हैं। चीन की सरकारी कंपनियों ने अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर काम शुरू कर दिया है। कमोवेश श्रीलंका के जो हालात हैं उसमें राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग भी की जा रही है जिससे कुछ बनने बिगड़ने वाला नहीं है।क्योंकि देश का खज़ाना खाली है सिर्फ बांग्लादेश से ही उसे अब तक मदद मिली है वह भी बतौर कर्ज ।ऐसी जर्जर हालत में ड्रेगन अपने शिकार को और कसेगा इसमें शक नहीं और संभव यह भी है कि वह अपने गुर्गों को सत्ता में बिठाकर वह कर दिखाए जो रूस यूक्रेन में नहीं कर पाया।एक बात और साफ़ है चीनी आतंक के बीच हस्तक्षेप शायद ही कोई राष्ट्र कर पाए।
यह घटना भारत के लिए बड़ा सबक और चुनौती भी है।