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वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश व्यवस्था नाकाम,दिल्ली को अलग राज्य का दर्जा ही एकमात्र उपाय

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विजय दलाल

दिल्ली की जनता के लिए देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा अपने चुने हुए शासन से शासित होने में वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश व्यवस्था नाकाम।*
आजाद भारत में यह प्रश्न 2014 के बाद ही क्यों पैदा हुआ?
इसका मुख्य कारण इस सरकार के एजेंडे का एक प्रमुख लक्ष्य देश के मजबूत संघीय ढांचे को कमजोर कर सत्ता का केंद्रीयकरण करना।
इसलिए बीजेपी द्वारा एक प्रमुख नारा “डबल इंजन की सरकार”
खैर सिसोदिया तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। उन्हें बदनाम करने के लिए केंद्र के इशारों पर सीबीआई उनके पीछे पड़ी हुई है । वो तो है ही किन्तु अभी ताजा टकराव भी एलजी के माध्यम से टीचर्स के ट्रेनिंग के फिनलैंड जाने वाली फाइल पर रोक लगाने को लेकर है। आए दिन एलजी और वहां की जनता की चुनी हुई सरकार के बीच विवाद सुनने को आते हैं।
*साफ है केंद्र सरकार एलजी के माध्यम से राज्य सरकार के कामों में रूकावट डाल रही है। केंद्र शासित होने के नाम पर प्रशासन की आड़ में अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर दलगत राजनीति कर रही है।
*दो दिन पहले राज्य सरकार और एलजी के याने केंद्र के प्रतिनिधि प्रशासक के अधिकारों की व्याख्या के प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो प्रश्न किया कि प्रशासनिक व्यवस्था जो राज्य सरकार की जिम्मेदारी है तो एक अधिकारी के ट्रांसफर के लिए केंद्र की इजाजत की क्या जरूरत और यदि है तो इसके लिए चुनी हुई सरकार की क्या आवश्यकता?*
सरकार के वकील का जवाब देखिए और उसी के संदर्भ में इस फ़ाइल पर प्रशासक की कार्रवाई को देखें।
चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए केंद्र सरकार की आतंकवादी व अन्य अपराधी गतिविधियों को ध्यान में रख कर सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन में हस्तक्षेप आवश्यक है।
इसलिए दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है ।
अब शिक्षकों की फिनलैंड में ट्रेनिंग को ले और प्रशासक की कार्रवाई को ले।
यह दोगली नीति भी स्पष्ट हो जाती है ।
प्रशासक के दिल्ली सरकार के इस निर्णय को रोकने का दिल्ली के केंद्र शासित रहने और रहने के कारणों से क्या संबंध है ?
साधारण बुद्धि के भी समझ के बाहर है।
इस सरकार ने इस बात की नींव डाल दी है कि अगर दिल्ली के लोगों को विकास चाहिए और सर्व सुविधायुक्त शहर चाहिए तो केंद्र में जिस पार्टी की सरकार है दिल्ली में भी उसी पार्टी की सरकार होगी तब ही वो उसे काम करने देगी।
दिल्ली की आबादी यूरोप के कई देशों से ज्यादा हो गई है। अब उसे शासन और प्रशासन की दृष्टि से एक अलग राज्य का दर्जा चाहिए।
केंद्र सरकार की दिल्ली की सीमाओं को चिन्हित कर अब केंद्र सरकार के लिए वेटिकन की तरह एक अलग सरकार चाहिए। उस हालत में उसका प्रशासन और अच्छे से देखा जा सकता है।
2024 में ये सरकार रहे न रहे इसने ऐसी गलत परंपरा डाल दी है कि इस समस्या से आगे भी निजात पाना मुश्किल है।
इसलिए दिल्ली को अलग राज्य का दर्जा ही इसका एकमात्र उपाय है।

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