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*कहानी : जूठन नहीं है औरत*

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        ~ पुष्पा गुप्ता

सुबह का नाश्ता यूं ही टेबल पर रखा रह गया। किसी ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। मालती जी अपने पति और बेटे को मनाती रह गई। पर दोनों की दोनों अपनी गर्दन ऊंची किए चुपचाप घर से निकल गए।

    कितने प्यार से दोनों के लिए सुबह 5:00 बजे उठकर उनकी पसंद का नाश्ता बनाया था। ये सोचकर कि कुछ तो घर का माहौल बदलेगा, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बात करना तो दूर की बात है, दोनों ने ही एक दूसरे की तरफ देखा तक नहीं।

    उदास होकर वो भी बिना नाश्ता किये ही सोफे पर आकर बैठ गई। आखिर उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कैसे घर की स्थिति को संभाले।

     जब से घर में समीर ने कहा है कि उसे नेहा से शादी करनी है, बस तब से घर का माहौल बड़ा ही उदासीन हो चुका है। रमेश जी तो इसके पक्ष में बिल्कुल नहीं है। और समीर है तो उन्हीं का बेटा।

    अपने पिता की तरह ही जिद्दी। वो उनकी बात मानने को तैयार नहीं है। पर दोनों बाप बेटे के बीच में पीस तो मालती जी रही थी। 

      समीर नेहा से दो साल पहले मिला था अपने दोस्त रजत की शादी में। उस दिन नेहा की रजत से शादी थी। रजत यही पड़ोस में रहता था और उसके बचपन का दोस्त था। नेहा काफी सुलझी हुई लड़की थी।

       रजत के माता-पिता उसे बहुत पसंद करते थे। जिंदगी यूं ही खुशी खुशी चल रही थी। रजत और समीर में बनती भी बहुत थी। दिन में एक बार ना मिल ले तो दोनों को चैन ही नहीं पड़ता था।

नेहा का भी समीर के घर आना जाना था। मालती जी और रमेश जी को भी नेहा बहुत पसंद थी। रमेश जी तो अक्सर ही कहते थे कि इस घर में बहू आएगी तो नेहा जैसी ही आएगी।

लेकिन पिछले साल एक कार दुर्घटना में रजत और उसके पिता की आकस्मिक मृत्यु हो गई।

     नेहा का तो सब कुछ ही लूट गया। लेकिन उसके बावजूद रजत की मम्मी सुलोचना को संभालने के लिए नेहा ने अपने आप को मजबूत कर लिया। नेहा के माता-पिता ने उसे अपने साथ चलने को भी कहा, लेकिन सुलोचना जी के लिए वो नहीं गई।

      ऐसे में समीर ने सुलोचना जी और नेहा की काफी मदद की। नेहा ने भी दोबारा जॉब ज्वाइन कर ली थी। दिन में सुलोचना की अकेली होती थी इसलिए मालती जी खुद भी दिन में एक चक्कर उनके घर जरूर लगा आती थी। बड़ी मुश्किल से वो लोग अब उभरने लगे थे। लेकिन सुलोचना जी को हमेशा नेहा की चिंता रहती थी। वो उसका पुनर्विवाह करवाना चाहती थी। पर नेहा इसके लिए राजी ही नहीं होती थी।

     लेकिन पिछले संडे समीर की बुआ जी यहां आई हुई थी। वो अपने साथ समीर के लिए कुछ रिश्ते लेकर आई थी। सब लोग बैठकर दोपहर का खाना खा ही रहे थे कि बुआ जी ने समीर के रिश्ते की बात छेड़ दी। पहले तो समीर आना कानी करने लगा। लेकिन जब बुआ जी ने साफ-साफ कहा तो उसने ये कहकर धमाका कर दिया कि वो नेहा को पसंद करता है और उससे शादी करना चाहता है।

बस तब से दोनों बाप बेटे के बीच में शीत युद्ध चल रहा है। लेकिन कल रात उस कमरे में ऐसी क्या बात हुई जो अब बचा कुचा बोल-चाल भी बंद हो गया। मालती जी ने समीर जी से पूछा भी, लेकिन समीर ने कुछ बताया ही नहीं।

    तभी घर की डोर बेल बजी। मालती जी ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने रमेश जी खड़े हुए थे। उन्हें देखते ही मालती जी ने पूछा,

” अरे आप इतनी जल्दी आ गए। तबीयत ठीक तो है?”

” सिर दर्द हो रहा है। आराम करना चाहता हूं.”

रुखा सा जवाब देकर रमेश जी अंदर कमरे में चले गए। उनके पीछे-पीछे मालती जी भी कमरे में आई,

    “अब बिना नाश्ता किए जाओगे तो सिर दर्द तो होगा ना। अपनी सेहत का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते हो। मैं नाश्ता लेकर आती हूं। आप नाश्ता कर लो। फिर दवाई लेकर आप आराम कर लेना.”

“अब बस भी करो तुम। बस एक बार शुरू हो जाती हो तो बंद ही नहीं होती। इतनी ही फिक्र है तो समीर को समझाओ। मेरे सिर दर्द का कारण तो वो ही है.”

   अचानक रमेश जी बिगड़ते हुए बोले।

” देखिए, समीर समझदार है। अपना भला बुरा जानता है। एक बार आराम से बैठकर उससे बात तो कीजिए.”

” अच्छा मुझे ही समझा रही हो। पर उसे कुछ नहीं बोलोगी.”

” देखिए, नेहा समझदार है। कुछ सोच कर ही समीर ने उसे अपने लिए चुना होगा। एक बार उसकी बात सुन लेते तो..!”

मालती जी की बात सुनकर रमेश जी को गुस्सा आ गया। और वो अपनी आवाज को तेज करते हुए बोले,

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। जानबूझकर झूठन कौन निगलता है?”

“झूठन?”

मालती जी ने हैरानी से कहा।

“हां झूठन, झूठन नहीं है तो क्या है? अरे दोस्त की झूठन खाने को तैयार हो रहा है। उसकी ऐसी क्या मजबूरी है जो उस विधवा से शादी करने को तैयार हो रहा है। उसे तो अभी एक से बढ़कर एक मिल जाएगी। मेरी तो मजबूरी थी कि मुझे अपने बेटे को पालने के लिए एक औरत की जरूरत थी। इसलिए मैने……”

    बोलते बोलते रमेश जी अचानक रुक गए। उन्हें ध्यान आया कि वो कुछ बहुत गलत बोल गए। मालती जी उनकी बात सुनकर बिल्कुल हैरान होकर खड़ी रह गई। जबकि रमेश जी वहां पर रखी कुर्सी पर दूसरी तरफ मुंह कर बैठ गए।

    मालती जी की हालत ऐसी हो चुकी थी जैसे शरीर में से किसी ने जान ही निकाल ली। वो चुपचाप बाहर आकर सोफे पर बैठ गई। अब तो आंखों में से आंसू भी बरबस ही बहे रहे थे। 

अपनी जिंदगी के पच्चीस साल जिस शख्स के साथ बिता दिए, उसकी सोच इतनी घटिया थी। मतलब उसके लिए मालती जी सिर्फ एक झूठन थी जो मजबूरी में उनकी जिंदगी में थी। सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने बेटे समीर को पालने के लिए एक औरत की जरूरत थी।

     आज से पच्चीस साल पहले मालती जी का भी तो रमेश जी के साथ पुनर्विवाह हुआ था। तब रमेश जी की पत्नी अपने तीन साल के बेटे समीर को छोड़कर दुनिया से कुच कर गई थी। और इधर मालती जी माँ नहीं बन सकती थी। इस कारण उनके पति ने उनका त्याग कर दिया था। रमेश जी की माँ ने ही ये रिश्ता करवाया था। 

शुरू शुरू में तो रमेश जी मालती जी से ढंग से बात भी नहीं करते थे। बस वो मालती जी के पास अपनी जरूरत भर के लिए आते थे। बाकी उन्हें मालती जी से कोई लेना देना नहीं होता था। अगर मालती जी से कोई काम भी होता तो या तो अम्मा के जरिए बोलते थे या फिर समीर के जरिए। सीधे मुंह कभी भी उन्होंने मालती जी से बात नहीं की। 

      हमेशा ही दोनों के रिश्ते में कुछ कमी सी रही थी। अपनापन तो ना के बराबर ही होता था। मालती जी ने इसे रमेश जी का स्वभाव मानकर अपना लिया था। बस समीर के पालन पोषण पर उन्होंने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया था। पर आज जो शब्द बोले गए, उसने इस रिश्ते की पोल खोल कर रख दी। ऐसा लग रहा था कि जिंदगी के पच्चीस साल बाद वो बिल्कुल खाली हाथ खड़ी हुई थी।

     उनकी नजर अपने दोनों खाली हाथों पर गई। सचमुच आज हाथ खाली नजर आ रहे थे। इन पच्चीस सालों में क्या किया और उसका क्या प्रतिफल है? कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। पूरी जवानी जहां स्वाहा कर दी, वहाँ क्या किसी को अपना कह सकती है? ये भी समझ में नहीं आ रहा था।

    उन्हीं दोनों खाली हाथों में अपना मुंह छुपाए मालती जी का रोना छूट गया। तभी उनके कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ। उन्होंने नजरें उठा कर देखा तो सामने समीर खड़ा हुआ था। मालती जी के सामने आकर समीर ने कहा,”आपके हाथ खाली कहाँ है मम्मी? आपकी इतने सालों की तपस्या का फल मैं हूं ना। इसीलिए नहीं बता रहा था आपको कुछ भी कि मेरे और पापा के बीच में क्या बात हुई। जानता था आपको दुख होगा। खून मैं उनका जरूर हूं लेकिन परवरिश तो आपकी हूं। इसलिए आप रो मत.”

     समीर मालती जी को समझाते हुए बोला तो मालती जी समीर के कंधे लगकर रो पड़ी। आखिर उन्हें जैसे तैसे चुप करा कर समीर मालती जी का हाथ पकड़ कर उस कमरे में ले गया जहाँ रमेश जी पहले से बैठे हुए थे। और वहां जाकर बोला,

” पापा मैं अपनी मम्मी को लेकर यहां से जा रहा हूं। मैं नहीं चाहता कि मम्मी को ये महसूस हो कि जिस शख्स के साथ वो इतने सालों से रही है, वो उनके लिए इतनी घटिया सोच रखता है.”

ये सुनकर रमेश जी गुस्से में बोले,

   “मैं तुम्हारा पिता हूं। मेरे कारण तुम्हारा अस्तित्व है। और तुम इसके लिए मुझे छोड़ रहे हो? ठीक है, जहां जाना है वहां जाओ। लेकिन याद रखना, फिर तुम्हें प्रॉपर्टी में से कुछ नहीं मिलेगा.”

“पापा प्रॉपर्टी तो हर कोई कमा सकता है। परिवार और सम्मान कमाना हर किसी के बस की बात नहीं। मैं यहां से सिर्फ मेरी मम्मी और उनके सम्मान को लेकर जा रहा हूं। आपको आपकी प्रॉपर्टी मुबारक हो.”

कहकर समीर मालती जी को लेकर उस घर से निकल गया। और पीछे रह गए रमेश जी अपने दंभ और अपनी घटिया सोच के साथ।

    कुछ दिनों बाद समीर और नेहा की शादी मालती जी और सुलोचना जी ने संपन्न करवा दी। हालांकि रमेश जी को भी बुलाया था, पर वो नहीं आए।

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