थाईलैंड के राजाओं को “राम” की उपाधि से जाना जाता है, जो भारत के साथ इसके गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते को दर्शाता है. यह परंपरा 1782 में चक्री वंश की स्थापना से शुरू हुई, जब पहले राजा पुत्थयोत्फा चालुलोक ने शासन शुरू किया. बाद में छठे राजा वजिरावुध ने अंग्रेजी में खुद को “राम सिक्स्थ” कहा, जिससे यह चलन पक्का हो गया. वर्तमान राजा “राम दशम” हैं, जिन्हें “फुटबॉल प्रिंस” भी कहा जाता है और वे दुनिया के सबसे अमीर शासकों में गिने जाते हैं. यह उपाधि सिर्फ नाम नहीं, बल्कि थाईलैंड की पहचान का हिस्सा है.

रामायण का थाई संस्करण: रामाकियन
थाईलैंड में रामायण को “रामाकियन” कहते हैं, जो न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि थाई कला, नाटक और साहित्य का आधार भी है. यह कहानी भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध मिशनरियों के जरिए पहुंची और थाई संस्कृति में ढल गई. चक्री वंश के पहले राजा राम प्रथम ने 18वीं सदी में इसे संहिताबद्ध किया, जिससे यह थाईलैंड का राष्ट्रीय गौरव बन गया. बैंकॉक के वाट फ्रा केव मंदिर में इसके चित्रण आज भी देखे जा सकते हैं, जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाते हैं.
200 साल पुरानी परंपरा
चक्री वंश ने 200 से ज्यादा सालों तक “राम” की उपाधि को जीवित रखा है, जो थाईलैंड में राजशाही के सम्मान को दिखाता है. यह परंपरा हिंदू और बौद्ध प्रभावों का मिश्रण है, जो थाई शासन की संरचना में गहराई से जुड़ी है. भले ही आधुनिक समय में राजनीति और समाज बदल रहे हों, लेकिन “राम” की यह पहचान अभी भी कायम है. यह भारत और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक बंधन की मजबूती को भी उजागर करती है, जो सदियों से चला आ है.
थाईलैंड की अयोध्या: अयुत्थया
थाईलैंड में अयुत्थया नामक एक प्राचीन नगर है, जिसे “थाईलैंड की अयोध्या” कहा जाता है. 1351 में स्थापित यह शहर स्याम की राजधानी था और इसका नाम भारत की अयोध्या से प्रेरित है. अयुत्थया में रामायण की कहानियां मंदिरों और मूर्तियों में बिखरी पड़ी हैं, जो भारतीय संस्कृति की गहरी छाप को दिखाती हैं. यह शहर न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि दोनों देशों के सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक भी है.
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