संतोष के.
कांग्रेस से कितनी पार्टियां निकली, अलग – अलग राज्यों मे सरकार बनाई, केंद्र में कांग्रेस को कमजोर करती दिखी और आज भी कई जगह शासन कर रही है। इतने कुछ होने के बावजूद कांग्रेसी नेताओं का पार्टी छोड़ना, लॉबीइंग करना और पार्टी की अंदरूनी गतिविधियों में धड़ावाद खबरों में नजर आ ही रही है। लोग कहते हैं की बिखरी कांग्रेस ही भाजपा की प्रगति का एक कारण है। सच है पर भाजपा भी इससे अछूती नहीं रही। संघ में अलग – अलग ग्रुप का विवाद सालों से दिख रहा है, भाजपा में भी अटल जी और अडवाणी जी के दौरान कई उदाहरण गूगल पर मिल जाएंगे। मगर आज जब भाजपा अपने ऊँचाई पर है तो क्या इसका कारण अंदरूनी एकता है? हो सकता है लेकिन आनेवाले चुनाव से पहले भाजपा चार लॉबी में बटी हुई है , भले ही समाचार चैनल न दिखाए पर चुनाव तक नौटंकी पर्दे पर आ जाएगी। एक लॉबी है संघ की राजनैतिक हस्ताक्षेप की प्रधानता, दूसरा इसे चुनौती देती मोदी गुट क्यूंकि पहली भार भाजपा राजनैतिक रूप से इतना मजबूत है की संघ की पकड़ ढीली पड़ गयी है, तीसरा गुट है अमित शाह की और चौथा लॉबी है कुछ गिने चुने नेताओं को जो मजबुरी में वहाँ है पर विचारधारा नही मिल रही और उन्हे सचमुच सरकार चलाने का आदर्श मालूम हो। अब संघ को उसके ही गोद से उपजे मोदी जी से खतरा है उनकी बढ़ती करिश्माई चेहरे से। भाजपा जो कभी संघ की परछाई लिए पाँव पसारति थी वो अब मोदी के नाम पर बढ़ते रहने से खुश है। संघ की लॉबी में सबसे बड़ा बाण है नितिन गडकरी और इनके संबंध अमित शाह से जगजाहिर है क्यूंकि शाह की लॉबी को दोनों ही से खतरा है और वो फड़नविस, शिवराज और योगी जैसे हिंदुत्ववादी बड़े चेहरों के साथ सत्ता पाने की तलाश में है और उपरोक्त नेताओं को भी इनके बाद की बारी का इंतज़ार अच्छा लग रहा है। एक और लॉबी है जिनके मुखिया राजनाथ सिंह है, तत अडवाणी के साथ रहे बचे खुचे नेता, वरुण गाँधी समेत कुछ ऐसे नेता भी जो कभी – कभी राजनीति से उपर उठकर सच्चाई बयां कर दें। विचारधारा में विभिन्नता के बावजूद सरकार में शामिल नेताओं को भी यह लॉबी खींचती है, जो मौका मिलते ही मोदी, शाह और संघ से भाजपा की पिंड छुड़ा दें। गडकरी जैसे काम करने वाले मंत्री इन्हे भी प्रिय है और गडकरी साब तो विपक्षी नेताओं के भी प्रिय हैं । तो ऐसा लगता है की गडकरी ही पहली और चौथी लॉबी के साथ भाजपा पर कब्जा जमाए मगर यहाँ राजनाथ जैसे दिग्गज को परेशानी होगी। शिवराज की राजनैतिक अनुभव और योगी की लोकप्रियता मोदी के लिए खतरा है और ऐसे में शाह का गुट इनकी मजबूरी भी है क्यूंकि आंतरिक विरोध अंदर के हि किसी मजबूत सहारे के दम पर हो सकती है, शाह वो सहारा है। शाह की चपलता तो जगजाहिर है, उन्हे और गुटों के नेता तोड़ने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। एक उम्र की सीमा होती है भाजपा मे राजनीति की, अब शायद फॉलो न की जाए पर अडवाणी और जोशी को ऐसे ही भगाया गया था, चुकी मोदी सत्ता में है तो भगाना मुश्किल है बाकी लॉबी के नेताओं के लिए पर कोशिस चल रही है और दिख भी रही है।। विपक्षी पार्टियों के नेताओं द्वारा कभी – कभी गडकरी का बड़ाई करना और भी हवा देती है। चौबीस के चुनाव सिर्फ विपक्ष के लिए निर्णायक नहीं है बल्कि भाजपा के अंदरूनी कलह को एक दिशा देने के लिए भी सही समय है। ये गुटबाजी भाजपा में चौबीस के बाद शांत होगी चाहे जो जीते और जो प्रधानमंत्री बने, और भाजपा का हारना शायद इस विवाद को शांत करे, पर जितने के बाद और भी लॉबीइंग फ्रंट पर दिखेगी। धीरे – धीरे बनते गुट चुनाव से पहले नहीं बिगड़ने वाले और विपक्षी इसका फायदा उठा सकते हैं। । कई प्रमाण हैं और कई घटनाएं हैं जिसके आधार पर मैं यहाँ तक पहुंचा हूँ, बाकी इंतजार कीजिये मीडिया में आने का। शायद चुनाव तक मीडिया इसपर गौर करे लेकिन उन्हे जानकारी अभी भी इस बात की है पर बिग ब्रदर से डर भी तो है दिखाने पर।
तो ये ‘अखंड भारत’ की कहानी की तरह ही अटुट भाजपा की कहानी भी फर्जी है…………