*अनुच्छेद 370 और 35A निरस्त होने की प्रक्रिया और 370 निरस्त होने के निहितार्थ*
*अजय असुर
17 अक्तूबर, 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मूकश्मीर को स्वायत्तता (स्वाधिकार) का अधिकार दिया गया और 35 A के तहत कश्मीरी जनता को विशेष अधिकार दिया गया। यानी जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था। अनुच्छेद 35A को अनुच्छेद 370 (1) के अनुसार ही संविधान में 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से इसे शामिल किया गया था। अनुच्छेद 35A राज्य के स्थायी निवासियों का परिभाषित करने और उन्हें विशेष अधिकार और सुविधा प्रदान करने के लिए जम्मू कश्मीर विधायिका को अधिकार देता है। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को अपना एक अलग संविधान बनाने और भारतीय संविधान (अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) को लागू न करने की इजाजत दी गई है।
अनुच्छेद 370 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिफारिश पर यह घोषणा की कि 17 नवंबर, 1952 से उक्त अनुच्छेद 370 इस उपांतरण के साथ प्रवर्तनीय होगा कि उसके खंड (1) में स्पष्टीकरण के स्थान पर निम्नलिखित स्पष्टीकरण रख दिया गया है, अर्थात्: — स्पष्टीकरण– इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य की तत्समय पदारूढ़ मंत्रि-परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत (अब राज्यपाल) के रूप में मान्यता प्रदान की हो।
(विधि मंत्रालय आदेश सं. आ. 44, दिनांक 15 नवंबर, 1952)।
समय-समय पर यथासंशोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश, 1954 (सं. आ. 48) परिशिष्ट 1 में देखिए।
जम्मू और कश्मीर के मामले में भारतीय संसद केवल इन मसलों पर ही कानून बना सकती है:
1- संघ सूची (यूनियन लिस्ट) और समवर्ती सूची (कॉन्करेंट लिस्ट) के सिर्फ उन विषयों पर जो ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ में शामिल हैं। इन विषयों की घोषणा राज्य सरकार से विचार करने के बाद राष्ट्रपति करेंगे। इण्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 में दिये गये इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन में रक्षा, विदेश, संचार और आनुषंगिक मसलों को शामिल किया गया है और संघ सूची और समवर्ती सूची से जुड़े ऐसे मसले जिन पर राज्य सरकार की सहमति हो।
2- भारत को राज्यों और क्षेत्रों का संघ घोषित करने वाले आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे।
3- इसके अलावा संविधान के अन्य प्रावधानों को राज्य पर केवल उन छूटों और बदलावों के साथ लागू किया जा सकता है जिन पर राज्य सरकार की सहमति ले ली गई हो।
4- भारत के राष्ट्रपति धारा धारा 370 को खत्म करने की घोषणा कर सकते हैं या उसमें बदलाव कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए राज्य की संविधान सभा की सिफारिश जरूरी है।
जम्मूकश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 के अंतर्गत जम्मू कश्मीर को विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र और लद्दाख को बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का प्रावधान करता है। अब राज्य में अनुच्छेद 370 (1) ही लागू रहेगा, जो संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिये कानून बनाने से संबंधित है। अनुच्छेद 370 के तहत जो प्रावधान है उनमें समय-समय पर परिवर्तन किया गया है जिसकी शुरुवात 1954 से हुआ।
अनुच्छेद 370 और 35 A को खत्म करने पर राष्ट्रभक्ति पर सवार कुछ बेवकूफ लोग कह रहे हैं कि ‘‘अब कश्मीर हमारा हो गया।’’ ये मन्द बुद्धि भक्त लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि “अब कश्मीर में पत्थरबाजों पर लगाम लग जायेगा और ‘‘अब आतंकवाद, वंशवाद, भाई-भतीजावाद का कश्मीर से खात्मा हो जायेगा।’’ और यह भी दावा है कि ‘‘अब वहाँ कारखाने लगेंगे, लोगों को रोजगार मिलेंगे, गरीबी खत्म होगी।’’ कश्मीर में अब “जमीन खरीद सकते हैं।” “कश्मीरी लड़की से शादी कर सकते हैं।” ऐसे ना जाने कितनी वाहियात और तथ्यहीन बातें कहते हैं। अब वास्तविकता देखिये कई सारे अधिकार जो पहले से ही मिल गये थे उनको भी ये भक्त लोग भाजपा की महिमा बता रहें हैं। इन अधिकारों को आप भी एक बार देख लें कि कब और क्या अधिकार मिला-
1- 1954 में चुंगी, केंद्रीय अबकारी, नागरी उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मूकश्मीर में लागू किये गये।
2- 1958 से केन्द्रीय सेवा के आई ए एस तथा आय पी एस अधिकारियों की नियुक्तियाँ इस राज्य में होने लगीं। इसी के साथ सी ए जी (CAG) के अधिकार भी इस राज्य पर लागू हुए।
3- 1959 में भारतीय जनगणना का कानून जम्मूकश्मीर पर लागू हुआ।
4- 1960 में सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मूकश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया, उसे अधिकृत किया गया।
5- 1964 में संविधान के अनुच्छेद 356 तथा 357 जम्मूकश्मीर राज्य पर लागू किये गये। इस अनुच्छेदों के अनुसार जम्मूकश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार प्राप्त हुए।
6- 1965 से श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून जम्मूकश्मीर राज्य पर लागू हुए।
7- 1966 में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित जम्मूकश्मीर से प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।
8- 1966 में ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने संविधान में आवश्यक सुधार करते हुए- ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पदनामों को स्वीकृत कर उन नामों का प्रयोग करने की स्वीकृति दी। ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी।
9- 1968 में जम्मूकश्मीर के उच्च न्यायालय ने चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया।
10- 1971 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जम्मूकश्मीर के विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया।
11- 1986 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए। आर्टिकल 249 के तहत केन्द्र सरकार को कोई कानून बनाना है जो कि राज्य के लिए होगा लेकिन यह राष्ट्रीय से भी जुड़ी है या राष्ट्रीय हित में भी है तो इस अवस्था में लोकसभा इस पर कानून बना सकती है लेकिन यह तभी मुमकिन है जब राज्यसभा अपने सदस्य के दो तिहाई बहुमत से कोई संकल्प पारित करें।
आप स्वंय देखें कि भाजपा सरकार किस तरह से पहले से दिये गये अधिकार को अपने द्वारा दिया बताकर, अपने भक्तों और दलाल मीडिया के जरिये कैसे ढिंढोरा पीट रही है और इस मसले को कैसे सांप्रदायिक रंग दे रही है ताकि असल मुद्दे पर जनता बात ना कर इनके द्वारा थामये गये मुद्दे में उलझकर मेहनतकश जनता यूं ही बंटकर शासक वर्ग से महंगाई, भ्रष्टाचार, भुखमरी, बेरोजगारी…. जैसे असल मुद्दे पर सवाल ना करे और ये लोग यूं ही सत्ता की मलाई खाते रहें। यदि ऐसा नहीं है तो फिर बतायें कि कश्मीर का मुद्दा ही क्यूँ? धारा 370 की तरह धारा 371 से महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों, आसाम, मिजोरम, अरुणाचल, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, नागालैंड आदि प्रदेशों को भी विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है और कश्मीर की तरह नागालैंड का भी अलग संविधान है, अलग झंडा भी है तो ऐसे राज्यों को अनुच्छेद 371 से मिली स्वायत्ता के खिलाफ आवाज क्यूँ नहीं उठाते? हिमाचल प्रदेश में भी, इसी तरह गैर-अधिवासियों को भूमि के स्वामित्व से रोकने के कानून हैं (उनके अपने स्वयं के एचपी टेनेंसी कानून, भूमि सुधार अधिनियम, 1972 के तहत)। तो, ऐसा नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ अनोखा था। अधिकांश राज्यों में ऐसे विशेष कानून हैं जो स्थानीय रीति-रिवाजों और संस्कृति को संरक्षित करते हैं या भूमि के अलगाव को रोकते हैं, उनका एक विशेष इतिहास और जनसांख्यिकीय रचना है उदाहरण के लिए, आदिवासी आबादी। जो उनके अधिकारों और उनके प्रति संवेदनशीलता के रुख का आश्वासन चाहते हैं या वह वास्तविक जरूरत है। यही हाल जम्मू-कश्मीर का था। तो फिर क्योँ नहीं देश की सीमा को 371 खत्मकर और बेहतर विस्तार देते। क्योंकि शासक वर्ग ने अपने हितों के लिये इन राज्यों में हिन्दू बनाम मुस्लिम का खेल नहीं खेला गया और आपको हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा नहीं थमाया गया। जब शासक वर्ग ने मुद्दा नहीं दिया तो जनता ने उसपर बात भी नहीं किया।
संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा दी गयी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 5 अगस्त 2019 को भारत के संसद के ऊपरी सदन ने एक वैधानिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सिफारिश की गई थी कि भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार अनुच्छेद 35 A और अनुच्छेद 370 के उप अनुच्छेद 2 और 3 निरस्त कर दें। अगले दिन, 6 अगस्त को, निचले सदन को पारित किया और 9 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई। राष्ट्रपति के आदेश सीओ 273 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि इस विधेयक का नाम जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 है। यह आज से ही लागू होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संसोधित संविधान जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019, अनुच्छेद 35A को भी तत्काल प्रभाव से समाप्त करेगा। समय-समय पर यथा संशोधित संविधान के सभी उपबंध जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे और जिन अपवादों और संशोधनों के अधीन ये लागू होंगे- अनुच्छेद 367 में निम्नलिखित खंड जोड़ा जायेगा, अर्थात- संविधान में जहाँ तक यह जम्मू और कश्मीर के सम्बन्ध में लागू है, के प्रयोजन के लिये- “जम्मूकश्मीर राज्य की सरकार की सहमति” के साथ, “समय-समय पर संशोधित संविधान के प्रावधान, जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में लागू होंगे।” इसके अलावा, चूंकि सरकार अन्य अनुच्छेदों को निरस्त करने के लिए सीधे अनुच्छेद 370 (3) पर्याप्त ना होने पर अनुच्छेद 367 (1) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग संविधान की व्याख्या खंड, अनुच्छेद 367 में संशोधन किया, ताकि “सरकार” का संदर्भ दिया जा सके। जिस व्यक्ति को राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा जम्मूकश्मीर के “सदर-ए-रियासत”, जो स्थानीय रूप से पदासीन राज्य की मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे है, के रूप में स्थानीय रूप से मान्यता दी गयी है, उनके लिए निर्देशों को जम्मूकश्मीर के राजयपाल के लिए निर्देश माना जायेगा और अनुच्छेद 370 (3) में अभिव्यक्ति “राज्य की संविधान सभा” को संदर्भित करने के रूप में वर्तमान जम्मूकश्मीर की विधानसभा को पढ़ा जाएगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को संविधान में शीर्षक में ‘टेम्परेरी’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए शामिल किया गया था। इसे इस रूप में भी अस्थायी माना जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को इसे बदलने, हटाने या रखने का अधिकार था, जो कि खत्म हो गया था। भले ही अनुच्छेद 370 अस्थायी नहीं है, फिर भी इसे खत्म किया जा सकता है। भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है। इसके 3 उपधारा है और उपधारा 3 में ही 370 खत्म करने का तरीका बताया गया है कि ‘‘पहले से दिये गये प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है। किन्तु इस धारा का एक शर्त (Proviso) भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा यानी जम्मूकश्मीर की संविधान सभा की मान्यता चाहिये।” किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है क्योंकि जम्मूकश्मीर की संविधानसभा 25 जनवरी, 1957 को भंग हो चुकी थी। जो संविधानसभा अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है? मामला यंहा थोड़ा सा पेंचीदा है गौर से समझियेगा कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा 26 जनवरी, 1957 को भंग हो चुकी है और उस वक्त अगस्त 2019 में राज्य में राज्यपाल शासन था, राज्य के राज्यपाल द्वारा राज्य विधानसभा को भंग करने के बाद पिछले एक साल से, राज्य संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत सीधे राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा है। राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि है, राष्ट्रपति की तरह। इसलिए, वास्तव में, राष्ट्रपति के आदेश 272 के तहत केंद्र सरकार संविधान में संशोधन करने के लिए अपनी सहमति लेती है। इसलिये राष्ट्रपति का आदेश ही इसे खत्म करने के लिये काफी है ऐसा शासक वर्ग ने भ्रम फैलाया। 5 अगस्त 2019 को जो सरकार 370 को खत्म करने के लिये जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 विधेयक लाती है और उस विधेयक के अनुसार आज यानी 5अगस्त 2019 से जम्मूकश्मीर के राज्यपाल को जम्मूकश्मीर के विधानसभा कह दिया और जम्मूकश्मीर की विधानसभा को संविधानसभा समझा जाये। गजब का खुलेआम दिन दहाड़े आंखों में धूल झोंक रही है। बड़े से बड़ा संविधान विशेषज्ञ 370 खत्म करने का तरीका खोज नहीं पाए क्योंकि जम्मूकश्मीर की संविधानसभा भंग हो चुकी थी और इस जुमलेबाज सरकार ने एक झटके में रास्ता खोज लिया। ये जो तरीका निकाला है ये असंवैधानिक है, पूरी तरह से फ्राड है। अब आप कहेंगे कि विपक्ष या और लोग क्यूँ नहीं ऐसा कह रहें हैं क्योंकि विपक्ष और सत्ता पक्ष में कोई अंतर नहीं है, सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। कश्मीर के कुछ लोग न्यायालय गये हैं और मामला अभी भी विचाराधीन है।
अब आगे शासक वर्ग का खेल देखिये कि आर्टिकल 370 के सबआर्टिकल ।A कहता है कि आर्टिकल 238 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे और आर्टिकल 238 भाग ख राज्यों की स्थिति से संबंधित था। भाग ख की स्थिति वाले वे राज्य थे जिनका भारत में विलय हुआ था। 1952 में धारा 370 के जरिये जम्मू कश्मीर को इन राज्यों से अलग कर दिया गया। इसके बाद 1956 में सातवें संविधान संशोधन के जरिये अनुच्छेद 238 को कांग्रेस सरकार ने ही खत्म कर दिया था। इस तरह से सिर्फ जम्मू और कश्मीर को छोड़कर बाकी भाग ख की स्थिति वाले सभी राज्य पूरी तरह से भारत का हिस्सा बन गये। अभी आगे-आगे देखते जाइये कैसे अंधेरे में रखकर शासक वर्ग ने मूर्ख बनाया है भारत की जनता को और इसपर सारी पार्टियां मौन होकर शासक वर्ग का साथ दे रही है।
जम्मूकश्मीर जिसके वित्तीय संसाधन बहुत सीमित थे, पहले का जम्मू-कश्मीर भारत के सबसे कम विकसित राज्यों में से एक था। बीजेपी और उसके समर्थक यह तर्क आगे बढ़ाते रहते हैं कि अनुच्छेद 35A से गैर स्थानीय लोगों को ज़मीन या संपत्ति नहीं मिल पाती थी, इसलिए निजी निवेशक राज्य में निवेश करना नहीं चाहते थे। यह तर्क दिया जाता है कि पहले के जम्मू-कश्मीर राज्य के सीमित संसाधन और कम निजी निवेश के चलते बड़े स्तर पर युवाओं में बेरोज़गारी आई और संपदा का राज्य से निर्यात हो गया, क्योंकि लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और काम से जुड़े मौकों की तलाश में राज्य से बाहर प्रवास करते रहे।
राज्यसभा में गृहमंत्री ने अनुच्छेद 370 और 35A को जम्मू-कश्मीर की गरीबी और वहां कम विकास होने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था। गृहमंत्री ने कहा कि इन प्रावधानों ने लोकतंत्र में बाधा डाली है, भ्रष्टाचार बढ़ाया है और विकास में अवरोध पैदा किया है। अमित शाह ने कहा, “अनुच्छेद 370 तय करता है कि वहां PPP [(पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) यानी सार्वजनिक एवं निझी भागीदारी] मॉडल काम न कर पाए, किसी तरह का निजी निवेश ना हो पाए, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में बाधा आती है, पर्यटन नहीं हो पाता है। इस सबकी वजह सिर्फ़ अनुच्छेद 370 है।” बीजेपी नेतृत्व एक चंहुमुखी विकास वाले नये कश्मीर की बात करने लगा, दावा किया गया कि अनुच्छेद 370 को हटाने से उग्रवाद के खात्मे और शांति बहाली में मदद मिलेगी, जिससे नए कश्मीर में प्रगति और खुशहाली आएगी। लेकिन इस दावे के उलट पिछले एक साल में हिंसा और उग्रवाद में तेजी ही आई है और यह तर्क एवं भाषण तथ्यात्मक तौर पर बिल्कुल गलत हैं। अनुच्छेद 35A और 370 ने जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में ढांचागत परिवर्तन किए थे। जनवरी 2020 और जून 2020 के बीच में कश्मीर में 220 लोगों की हत्या हुईं और 107 हिंसा के मामले सामने आए। इनमें से 143 हत्याएं उग्रवादियों से संबंधित हैं, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 120 और 2018 में 108 था। ये आंकड़े बिभिन्न समाचारों के मध्यम से मिले हैं।
35A के खिलाफ़ दिए जाने वाले तर्क से बिलकुल उलटे, राज्य में 90 साल की लीज पर जमीन दिए जाने का प्रावधान था, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता था। इसी तरीके से बिरला समूह ने 1963 में चिनाब कपड़ा मिल की स्थापना की थी। 1990 में होटल ग्रांड ललित खोला गया, इंडियन होटल समूह ने होटल ताज विवांता खोली, फोर सीज़न्स, रेडिसन और ITC भी राज्य में आईं। कश्मीरियों और गैर कश्मीरियों के बीच साझेदारी से कई निजी अस्पताल भी खोले गए। राज्य में बिसको-मैलींसन, दिल्ली पब्लिक स्कूल, जीडी गोयंका समेत कई दूसरे निजी स्कूल भी मौजूद हैं। यह सही बात है कि जम्मू और कश्मीर में बड़े स्तर का निजी निवेश नहीं हुआ, लेकिन इसकी बुनियादी वजह वहां का राजनीतिक संकट था, ना कि अनुच्छेद 35A के चलते ऐसा हुआ। यदि 35A रोड़ा होता तो ये निजी संस्थान कैसे खुलते?
जम्मूकश्मीर का भारत में विलय के वक्त भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं थे पर 2019 तक अधिकतर अनुच्छेद लागू हो चुके थे। 370 के मुताबिक ही यह कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संविधान का आर्टिकल 1 भी लागू है और इसके बाकी प्रावधानों को भी लागू करना कोई बहादुरी नहीं थी। भारत में शासक वर्ग ने इस वक्त यही खेल खेला है। उसने राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिये भारतीय संविधान को पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर लागू करने का सिर्फ ढिंढोरा पीट दिया है। इस पूरे प्रकरण का सीधा सा मतलब यह था कि धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा पहले भी था, और आज भी है। 370 हटाना सिर्फ एक पाखण्ड पूर्ण घोषणा थी जिसकी आड़ में कश्मीरी जनता के जनवादी अधिकारों को कुचल कर साम्राज्यवादी हितों को साधा जा रहा है।
*शेष अगले और अन्तिम भाग में….*