अखिलेश अखिल
पांच किलो अनाज पर जयकारा लगाने वाली 80 करोड़ जनता की हालत क्या है यह किसी से छुपी नहीं है। हो सकता है कि इसी 80 करोड़ जनता में से कुछ आबादी मध्यम वर्ग की हो। लेकिन भारतीय मध्यम वर्ग की क्या हालत है यह दुनिया भर के देशों को पता है। हालिया रिपोर्ट तो यही बताती है भारतीय मध्यम वर्ग का लगभग खात्मा हो गया है और इस वर्ग के अधिकतर लोग गरीबी की श्रेणी में जा चुके हैं क्योंकि यह वर्ग भी अब सरकार के आसरे जीने को अभिशप्त है। बाकी बचे गरीब लोगों के बारे में कहना ही क्या है। इस वर्ग की कहानी आजकल धर्म के आसरे है। लेकिन नई राजनीति का खेल यह है कि देश की अधिकतर जनता अपनी बेबसी पर रुदाली करती नहीं मिलेगी।
विपक्षी पार्टियों को वोट देने वाली यही जनता कहती है कि सब कुछ ख़त्म हो चुका है और शायद ही अब कुछ सुधार हो। लेकिन जिनके हाथों में सत्ताधारी पार्टी का झंडा है उनकी आवाज बुलंद निकलती है और वे कहते हैं कि सब कुछ ठीक है और भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। कहां बढ़ रहा है और कैसे बढ़ रहा है और उनकी हालत ठीक क्यों नहीं हुई, उनके बच्चों को काम क्यों नहीं मिल रहा, इस सवाल पर वे ठहर जाते हैं लेकिन फिर जोश में आकर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा और अयोध्या में राम मंदिर बन गया यह कोई मामूली बात है। यह आप लोगों को दिखता नहीं क्या? और अब हिन्दू राष्ट्र बनकर ही रहेगा।
मध्यम वर्ग और गरीब जनता की इस आवाज को आप क्या कहेंगे? इसका जवाब आपके पास हो सकता है लेकिन उस जनता को आप संतुष्ट तो नहीं कर सकते। यह सब नए जमाने की राजनीति है और इस राजनीति के केंद्र में धर्म और कट्टरता का बोलबाला है। मौजूदा दौर में यही राजनीति अधिकतर लोगों को लुभा भी रही है। वे भले ही गरीबी के कारण समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं लेकिन धर्म की चासनी उन्हें तरोताजा कर रही है और उन्मादी भी बना रही है।
एक बात और है। मध्यम वर्ग लगभग ढह सा गया है और उपभोक्ता बाजार मंदी के कगार पर है। चारों तरफ सन्नाटा फैला है और हर घर में कोलाहल मचा हुआ है। घर के भीतर ही कई गुट खड़े हो गए हैं। और यह सब नए दौर की राजनीति का ही फल है। लेकिन बड़ी बात तो यह है कि इसी दौर में जहाँ देश की 80 करोड़ जनता जैसा कि सरकार का दावा है पांच किलो अनाज पर अपना सब कुछ लुटाने को तैयार है वहीं भारत के कारोबारियों के धन में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। जो आंकड़े सामने आ राहे हैं वे चौंकाने वाले हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले साल भर में ही यानी 2023-2024 में देश के धनी लोगों के धन में लगभग 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अगर रकम के रूप में इस बढ़ोतरी को आंकने की कोशिश की जाए तो यह रकम 905 बिलियन डॉलर की है। इतनी धन की बढ़ोतरी देश के कारोबारियों और धनी लोगों के धन में हुई है।
उद्योगपतियों की संख्या के लिहाज से भारत पहले ही दुनिया में तीसरे नंबर पर आ चुका है। चूंकि चीन में विषमता घटाने की नीति पर सख्त अमल के कारण अरबपतियों की संख्या और उनका सकल धन घट रहा है, इसलिए संभव है कि कुछ वर्षों में भारत इस सूची में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आ जाए।
सरकार कहती है कि भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है अगर कुछ सालों में ही यह दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगी और करीब 20 साल के बाद भारत विकसित राष्ट्र बन जाएगा। सरकार का यह स्लोगन अंधभक्तों को खूब भा रहा है और वे उछल भी रहे हैं और उत्पात भी मचा रहे हैं। यह बात और है कि जो उछल रहे हैं उनके घरों में खाने के लाले पड़े हुए हैं।
दस साल के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में अरबपतियों की संख्या बढ़कर अब 185 तक हो गई है। और इनका कुल धन 263 फीसदी बढ़ गया है। स्विस बैंक यूबीएस हर वर्ष अरबपतियों के बारे में रिपोर्ट जारी करता है। उसकी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस समय वैश्विक रुझान अरबपतियों का धन अपेक्षाकृत घटने का है, लेकिन भारतीय अरबपति इस रुझान को मात देने में कामयाब हैं। पिछले वित्त वर्ष में अरबपतियों के धन के लिहाज से टॉप पांच देशों में अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन में भी अरबपतियों का कुल धन बढ़ा, मगर सबसे ज्यादा वृद्धि भारत में दर्ज हुई।
सिर्फ चीन ऐसा देश रहा, जहां इस वर्ग के कुल धन में गिरावट आई। अब इन आंकड़ों पर देश के लोग चाहें, तो फख्र कर सकते हैं या फिर रुदाली मचा सकते हैं। यह भारत ही है जहाँ के लोग अपनी हालत चाहे जैसी भी हो सामने वाले की अमीरी पर खूब तालियां बजाते हैं। यह मौजूदा समय का एक बड़ा सत्य है। किसी भी क्षेत्र में खास कर धनी देशों से भारत के आगे निकलने की खबर पर आम तौर पर अपने लोग खुश होते नजर आते हैं। लेकिन उनके पास क्या बचा है और नहीं बचा है तो क्यों नहीं बचा है इस पर कभी उनकी नजर नहीं जाती। हाथ में एक मोबाइल फोन लेकर जो लोग दिनभर व्हाट्सअप और रील को देख पढ़कर समझ जाते हैं कि देश आगे बढ़ रहा है और अब भारत जल्द ही विकसित देशों में शुमार हो जाएगा।
क्या किसी ने यह समझने की कोशिश की है कि दुनिया में ऐसा कौन सा धंधा है जो रातों रात लोगों को अमीर बना दे और फिर हर साल उसकी आय दोगुनी -चौगुनी बढ़ती चली जाए। और ऐसा कोई धंधा है तो आम लोग भी यही काम क्यों नहीं कर पाते? सच तो यही है कि देश के ये कारोबारी देश को ही चूना लगाते हैं, लूटते हैं और जनता के हक़ को मारकर धनी बनते जाते हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि कारोबारियों के इस खेल को आगे बढ़ाने में देश की राजनीति काम करती है। राजनीतिक दल इसमें शरीक होते हैं और सरकार इन्हें आगे बढ़ने के लिए कई योजनाएं चलाती रहती है।
बता दें कि ये कारोबारी जो अरबपतियों के क्लब में शामिल हैं उनमें से बहुत से अरबपति किसी उत्पाद को नहीं बनाते। ये पैसे से पैसे उगाहते हैं। राजनीतिक दलों को साधते हैं और बिना कुछ बेचे ही पैसे कमाते जाते हैं। पिछले दस सालों में जिस रफ़्तार से देश के भीतर अरबपतियों की संख्या बढ़ी है उससे साफ़ है कि आने वाले दिनों में भारत की हालत और भी ख़राब हो सकती है। लोगों की हालत और भी खस्ता हो सकती है और एक नए तंत्र की स्थापना हो सकती है।
हमारे संविधान में समाजवाद की चर्चा है और हमारी अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ सरकारी और निजी क्षेत्र मिलकर देश और समाज का कल्याण करते हों। लेकिन यह सब अब कहने तक ही सीमित रह गया है। मौजूदा समय में दुनिया पूंजीवाद और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर टिकी है और भारत भी इसी राह पर दौड़ रहा है। इस व्यवस्था में अब जनता के कल्याण की बात नहीं की जाती। कल्याण के नाम पर उसे पार्टी का झंडा पकड़ा दिया जाता है और पार्टी के नारों के साथ उसे मैदान में उतार दिया जाता है। जबकि सारी कमाई पूंजीपतियों के हवाले कर दी जाती है और ये पूंजीपति राजनीतिक दलों को चन्दा देकर अपनी हैसियत को बढ़ाने से नहीं चूकते। भारत का यह सच लोगों को लुभाता भी है और भ्रमित भी करता है।(
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