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विश्व का पहला देश अमृत “काल” में?

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शशिकांत गुप्ते इंदौर

त्रेतायुग में असुरों के राजा रावण की सोने की लंका में स्थित अशोकवाटिका में कैद माँ सीताजी ने हनुमानजी को अजर अमर होने का आशीर्वाद दिया।
कलयुग में रमण करती सीता माई ने अपने निर्मल मन से देश की सबसे बड़ी पंचायत के भवन में देश की जनता को अमृतकाल के दर्शन करवा दिए।
देश की स्वतंत्रता का अमृतवर्ष स्वतन्त्रता की सौवी जयंती तक
पूर्ण रूप से अमृतकाल में परिवर्तित हो जाएगा।
अमृत एक ऐसा कुदरती रसायनीक पेय है,जो मनुष्य को अमर बनाता है।
पौराणिक कथा है,समुद्र से अमृत निकालने के लिए देव और दानवों ने समुद्र को ही मथ दिया था।
समुद्र को मथने के लिए मंदराचल पर्वत की मथनी बनाई थी, मथनी को चलाने के लिए, देव और दानवों ने अपनी अद्भुत और विलक्षण शक्ति से वासुकी नामक नाग को रस्सी के रूप यूज किया था।
तात्कालिक मंथन में एक ओर देव और दूसरी ओर दानव थे।
इसे सयोंग ही कहा जा सकता है,तात्कालिक मंथन में भी अमृत दानवों के हाथ ही लगा था।
अमृत के साथ चौदह रत्न निकले थे।
दानवों के हाथों जैसे अमृत लगा वे,अमृत कुम्भ लेकर देश के अंदर ही भागने लगे। तात्कालिक दानव इतने ईमानदार थे कि, विदेश में भाग कर नहीं गए।
दानव जब कुम्भ लेकर भाग रहे थे तब वे बीच बीच में विश्राम भी करतें थे। जहाँ जहाँ दानवों ने विश्राम किया उन स्थानों पर आज भी कुम्भ और सिंहस्थ मेलों का आयोजन होता है। इन मेलों में विशेष आकर्षण का श्रेय नागा साधुओं को मिलता है। नागा साधुओं के लिए मादक पदार्थो की उपलब्धता प्रचूर मात्रा में होती है। यह उपलब्धता ऑफिशियल होती है।
यह तो पौराणिक कथा की बात हुई।
वर्तमान राजनैतिक दौर को ‘राज’ भरी नीति के मंथन का दौर कहा जाता है।
राजनैतिक मंथन के इस दौर में मथने के लिए राजनैतिक पैतरों की मथनी बनाई जाती है।
इस मंथन में एक ओर धार्मिक आस्थावान लोग हैं, और दूसरी ओर सिर्फ विपक्ष का नाम धारण किए लोग हैं।
वर्तमान राजनीति में एनकेनप्रकारेण सत्ता को बरकरार रखने के लिए व्यवस्था को मथा जा रहा है।
तात्कालिक मंथन में देव और दानवों को स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता था।
वर्तमान में पक्ष और विपक्ष पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कारण वर्तमान मंथन में कब कौन इधर का पलड़ा छोड़ा उधर चला जाए यह कहा नहीं जा सकता है?
जिनके हाथों पर अवसरवाद की लकीर स्पष्ट रूप से अंकित है। वे जिधर बम उधर हम वाली कहावत को चरितार्थ करने में निपुण होतें हैं। कारण इस कहावत को चरितार्थ करने के लिए चरित्र का कोई लेना देना नहीं होता है।
जो भी हो राजनैतिक मंथन में दुर्भाग्य मथी जा रही है देश की व्यवस्था,और दुष्परिणाम भुगत रही है देश की जनता।
राजनैतिक मंथन की प्रक्रिया अनवरत चलती रही है और अंतः सन 2014 में मंथन की क्रिया सम्पन्न होकर एक सशक्त, सरकार देश की मिली।
सशक्त सरकार के कारण ही,सन 2014 के बाद प्रतिवर्ष सिर्फ कागजों पर देश के बजट में दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से प्रगति हो रही है। प्रगति की रफ्तार इतनी तेज हो गई कि, अब हम भारतवासी अमृतकाल में प्रवेश कर गए हैं।
सभी एक साथ में एक सुर में गावों
आई है बहारें मिटे जुल्म सितम
अमृतकाल में प्रवेश कर गए हम
अच्छेदिन आगए हैं दूर हुए गम
अब न कोई भूखा होगा और न कोई प्यासा
अपने मन राजा तुम छेड़ो मन का बाजा तुम

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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