शशिकांत गुप्ते
आज सीतारामजी बहुत ही हास्य विनोद की मानसिकता हैं।
सीतारामजी ने मुझसे मिलने पर हास्यव्यंग्य के प्रख्यात कवि स्व. काका हाथरसी रचित एक छोटी सी हास्यव्यंग्य की रचना सुनाई।
होटल में था बार,खुला हुआ था द्वार।
एक चूहा जिसका बिल्ली कर रही थी पीछा। बार में घुस गया। हड़बड़ी में दो बूंद सूंघ गया।
और पूँछ के बल खड़े होकर।
दहाड़ने लगा बुलाओ बिल्ली की बच्ची को।
यह रचना सुनने के बाद मुझे यकायक घूँस नामक जानवर का स्मरण हुआ।
घूँस नामक प्राणी को जंगली चूहा कहतें हैं। यह जमीन में सुरंग नुमा बील बनाकर रहता है।
इसके कारण मनुष्य को संक्रमक बीमारी होने की होती है। हैजे नामक बीमारी के कीटाणु इसके शरीर पर होतें हैं।
यह जमीन को पोला कर देता है। चूँह से बडे आकर का मतलब छोटे खरगोश जैसा होता है।
यह चूंहे के प्रजाति का होने से इसे भी हरएक चीज वो चाहे खाने की हो या ना हो,उसे कुतरने की आदत होती है।
मेरे स्मरण को सुनने के बाद सीतारामजी ने मुझसे कहा घूँस नामक एक जानवर भी होता है। घूस रिश्वत को भी कहतें हैं। घूसखोर भी घूँस जानवर जैसे ही देश की आर्थिक व्यवस्था को कुतरतें है रहतें हैं।
घूँस जानवर भी समूह में रहता हैं।
pest control मतलब कीट नियंत्रण का कार्य करने वालों के सर्वेक्षण के अनुसार चूहों में
Communicatiom skill मतलब संचार योग्यता होती है,अर्थात सूचनाओं को आदान प्रदान करने की योग्यता होती है। यह योग्यता घूसखोरों में भी होती है।
घूँस नामक जानवर की संचार योग्यता जमीन के अंदर ही होती है। यदि घूँस नामक जानवर को मारने के लिए यदि कोई कीट नाशक औषधि रख दी जाए,यदि ग़लती से कोई एक भी घूँस मर जाए, तो दूसरे घूँस यह संदेश अपने अन्य साथियों को देतें हैं। वहाँ नहीं जाना जहाँ दवाई रखी है।
घूसखोर जमीन के ऊपर ही ऊपर सारा प्रपंच रच लेतें हैं। कभी कभार कोई रंग लगे रुपये इन्हें पकड़ा देता है और ये लोग पकड़ में आ जातें हैं। आगे क्या होता है? आपसी सामंजस्य और सूझबूझ मतलब गोपनीय समझ से ये लोग छूट भी जातें हैं।
ऐसे समय इनलोगों का communication skill काम आता है।
सीतारामजी ने कहा, यही मैं समझाना चाहता हूँ कि जानवर घूँस और घूसखोरों में बहुत साम्यता होती है।
हाँ एक बात जरूर भिन्न होती है। घूँस जानवर बोल नहीं पाता है। सम्भवतः इसीलिए,घूँस जमात का कोई मुखिया यह ऐलान नहीं कर पाता है कि, ना … तो .. मै… ना.. ही?*
शशिकांत गुप्ते इंदौर