आजकल मैं जिन्दा लोगों से ज्यादा
मरे हुए लोगों से बात करता हूं
क्योंकि ज्यादातर जिन्दा लोग तो
उनसे भी ज्यादा मरे हुए हैं
वे मेरे सवालों से भागते नहीं हैं
और नहीं मुझे देख कर मुंह मोड़ते हैं
ये मरे हुए लोग
आपको मिल जायेंगे इतिहास के पन्नो में
साहित्य के किताबों में
जिन्दा लोगों से ज्यादा
ज़िन्दादिली से जीते हुए
अपने समय के सवालों से टकराते हुए
अपने जमाने की बुराईयों से लड़ते हुए
ये आज भी हमें रास्ता दिखाते हैं
निराश हो जाने पर उम्मीद दिलाते हैं
की जीत हमारी ही होंगी
बस हौसला बनाए रखिये
इन्हें बहुत खुशी होती है
जब कोई इनसे बात करता है
धुल जम चुकी किताबों के
पन्नों से इन्हें आजाद करता है
और ले चलता है अपने साथ
संघर्ष के मैदान में
जिसके लिए उन्होंने
अपनी जिन्दगी कुर्बान की थी
ये संघर्ष में साथ नहीं छोड़ते हैं
और नहीं कायरों जैसी बात करते हैं
जब हम किसी सवाल का
जवाब नही दे पाते हैं
वहां ये आगे बढ़ कर जवाब देते हैं
और मुस्कुराते हुए हम से कहते हैं –
टेंशन मत लो साथी
हम है न !
कितना अच्छा लगता है
इनसे बातें करना
इन्हें अपने आस-पास महसूस करना
इन्हें खुद अपने अन्दर जीना
इनके बताएं रास्ते पर चलना
जिसे उन्होंने अपने रक्त से तैयार किया है
और इतिहास के पन्नों पर
अपना नाम दर्ज किया है
जो हमारे जिन्दा होने की सबूत है !
- विनोद शंकर