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मोदी की छत्रछाया में यूं बीता 2024

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-सुसंस्कृति परिहार 

पिछले दस वर्ष के शासन के बाद मोदी जी की पुनर्वापसी सोचिए क्या उनके जनहितकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से हुई है शायद नहीं अगर ऐसा हुआ  होता तो बीते आम चुनाव में 400 पार का ख़्वाब क्यों टूटकर 240 पर ही अटक गया? क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि उनकी लोकप्रियता का जबरदस्त ह्रास हुआ है। मंदिर मस्जिद की आंधी नहीं चली। उधर राहुल गांधी की भारत जोड़ो और भारत न्याय यात्रा ने बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ ना केवल भाईचारे की बात की बल्कि नफ़रत की जगह मोहब्बत की दूकान खोलने पर बड़ी कामयाबी मिली। यही वजह है कि इंडिया गठबंधन ने अपनी पहुंच बनाई।

हालांकि इस जीत में ईवीएम में पड़ी वोट्स की काउंटिग से अधिक वोट काउंटिग का असर सत्तर सीटों पर पड़ा वे भाजपा के पाले में चली गई।वरना वे गोता लगा चुके  होते। लगता है उन्हें  इतनी कम लीड का अहसास नहीं था इसलिए ज़्यादा हेराफेरी नहीं की गई वरना चार सौ पार होकर संविधान को ज़मी में दफन कर हिंदू राष्ट्र का ऐलान हो जाता।

इस सबके लिए जननायक राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन को धन्यवाद देना ही होगा। जनता का मिजाज निश्चित बदला है काश चुनाव आयोग निष्पक्ष होता। लेकिन यह ठेस मोदी शाह को लगी है इसलिए वे अपने अस्तित्व को बचाने नए-नए हथकंडे अपनाते जा रहे हैं पहले हरियाणा फिर महाराष्ट्र में खेला कर दिया । जनता में आक्रोश है इसलिए उसने एक बार फिर जनता को बरगलाने धक्का-मुक्की की आड़ में जिस तरह सांसदों को आपातकालीन चिकित्सा हेतु पहुंचाया, वह ड्रामा सबने देखा। राहुल को फंसाने की पूरी तैयारी की गई है। देखना है झूठ की कितनी ताकत होती है। यह सब मोदी-शाह की छत्रछाया में हुआ है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- “आरएसएस का उद्देश्य भारत को एक संकीर्ण धार्मिक राष्ट्र बनाना है, जो हमारी स्वतंत्रता संग्राम की भावना और संविधान के आदर्शों के विपरीत है.” 

यह सब हम मोदी शासनकाल में देख रहे हैं। उनका मकसद एक हैं किसी भी प्रकार से इस देश के भाई चारे को ख़त्म कर हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना है इसलिए हरदम ध्रुवीकरण की कोशिश में लगे रहते हैं।हिंदुत्व का नशा अयोध्या और बनारस में इस बार नहीं देखा गया। संपूर्ण देश में इसकी खुमारी ख़त्म हो चुकी है।

देश में बढ़ती बेरोजगारी और मंहगाई की उन्हें कोई परवाह नहीं। उल्टे बेरोजगारों पर लाठियां बरसाई जा रही हैं। कर्मचारियों के आंदोलनों को कुचलने में सरकार को महारत हासिल है। किसानों का हाल और बेहाल है सन् बीस से लेकर अब तक सात सौ से अधिक किसानों की जानें जा चुकी लेकिन उनकी फसल का उचित मूल्य सरकार तय नहीं कर पाई है वे वायदाखिलाफी के ख़िलाफ़ सतत् आंदोलन स्वरूपआमरण अनशनरत हैं। नारी सुरक्षा का प्रपंच रोपने वाली सरकार बलात्कार करने वालों को अभिनंदित कर रही है आंकड़े बताते हैं कि बलात्कारियों में सर्वाधिक संख्या में भाजपाई शामिल हैं अपराधियों को सरकारी संरक्षण मिलता देख उनकी संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। वे नारी की तरक्की के ख़िलाफ़ हैं इसलिए मातृशक्ति को प्रमुखता देने वाले मणिपुर में महिलाओं को नग्न कर घुमाने वाले आज तक आज़ाद है। मिलकर रहने वाले कूकी और मैतेई के बीच आग लगाकर वे उसकी ओर से बेखबर हैं उधर आग साल भर से धधक रही है।

संविधान और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर के बारे में मोदी सरकार की सोच का पता गृहमंत्री अमित शाह के अम्बेडकर …..से खुलकर सामने आखिरकार आ ही गई है।

रही सही कसर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी अंत्येष्टि में उभरकर सामने आई। अफ़सोसनाक यह रहा कि जिस प्रधानमंत्री ने तत्कालीन विपक्ष के आग्रह पर 2013 में कानून  बनाकर वीवीआईपी नेताओं की अन्त्येष्टि के लिए स्मारक स्थल की जगह निर्धारित की थी आज उनकी ही अंत्येष्टि जनसामान्य के लिए बने निगम बोध घाट पर  करने की अनुमति दी गई। वजह सुनकर मोदी सरकार से मन घृणा से भर जाता है। उन्होंने मनमोहन सिंह की केबिनेट द्वारा निर्धारित ज़मीन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम कर दी। वहां इतनी बड़ी ज़मीन लगभग सात एकड़ पर क्या होना है यह भाजपा के अंदर की बात कोई नहीं जानता है। हो सकता है यह ज़मीन सरदार पटेल की  स्टेच्यू की तरह कारपोरेट के हवाले हो जाए या सिर्फ भाजपा के प्रधानमंत्रियों के लिए रिजर्व हो।

बहरहाल,ये तमाम बातें इस बात का खुलासा करती हैं कि भाजपा की रीति नीति भारतीय संस्कृति की खुलेआम खिलाफत कर रही है मनमोहन सिंह जी मिट्टी के साथ किया, इस सरकार का यह व्यवहार अशोभनीय है।ये सारे कार्यकलाप तीसरे मोदी काल की छत्रछाया में हो रहे हैं। इनसे इस सरकार की जो छवि बनती है वह निराशाजनक है तथा आगे के लिए भाजपा के लिए खतरे से खाली नहीं है।

सरकार इस दौर में एक ओर थोड़ा संवेदनशील बनने की कोशिश भी करती दिख रही है जैसे मनमोहन सिंह जी के प्रति बड़ा दुलार पहले दिन उमड़ा बाद में जिस तरह घात हुआ उसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की थी। इस सब को स्मरण रखना ज़रूरी है।भ्रम में ना रहें। ये गतिविधियां जनता को समझना ज़रूरी है। मोदी की छत्रछाया में किस तरह के छल और कपटपूर्ण व्यवहार को देखा जा रहा वह सब इस बात को दर्शाता है आने वाले साल 2025 में हमें घात प्रतिघातों और इनके लाड़ दुलार को भली-भांति समझने की तैयारी रखनी होगी।

प्रसन्नता की बात ये है कि संघ नीत भाजपा अपनी पितृ संस्था से इस वक्त जूझ रही है। जिसमें पड़ती दरार मोदी शाह के जीवन मरण का सवाल बनती जा रही है इसीलिए भाजपा अपना नया पार्टी अध्यक्ष नहीं बना पा रही तथा 15जनवरी सात राज्य भाजपा अध्यक्षों को बदलने जा रही है।

कुल मिलाकर मोदी की छत्रछाया में इन दिनों चहुंओर सशक्त बदलाववादी ताकतें पनपी हैं।जो उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।

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