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“चौथे स्तम्भ” की विश्वसनीयता धराशाई कर दी है इस सत्ताधारी निजाम ने 

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मुनेश त्यागी

     हम लोग बचपन से ही रेडियो सुनते, टेलीविजन देखते और अखबार पढ़ते चले आ रहे हैं। तभी से इन माध्यमों को देख, सुन और पढ़कर लोग सरकार के कामकाज के बारे में जानकारियां हासिल किया करते थे और अपना मन बहलाते रहते थे। इन मीडिया संस्थानों द्वारा किसानों, मजदूरों, छात्रों और नौजवानों को बहुत सारी जानकारियां दी जाती थीं, सरकार की नीतियों के बारे में बताया जाता था और भारत की जनता इन पर पूर्ण रूप से विश्वास किया करती थी और उसी के अनुसार अपना जीवन और विचार ढालती थी और अपने ज्ञान विज्ञान में वृद्धि करती थी।

      मगर पिछले 10 साल से भारत की मीडिया भारत के चौथे स्तंभ, यानी मीडिया के चरित्र में बुनियादी फर्क आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत के अधिकांश टीवी चैनलों पर अडानी अंबानी और दूसरे पूंजिपत्तियों का आधिपत्य स्थापित हो गया है। बहुत सारे अखबार भी इन्हीं चंद पूंजीपतियों के नियंत्रण में आ गए हैं। पहले भारत का दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के द्वारा भारतीय जनता, देश की असली हकीकत और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और कृषि विज्ञान के बारे में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त करती थी।

     मगर आज बेहद अफसोस की बात है कि भारत का सरकारी मीडिया जिसमें मुख्य रूप से दूरदर्शन और रेडियो शामिल हैं, जैसे परदे से ही गायब हो गए हैं और अब यह भारत का चौथा स्तंभ, अपनी स्वतंत्र भूमिका को छोड़ चुका है और इन पर भी अब निजी चैनलों की तरह गतिविधियां जारी हैं। अब ये सरकारी चैनल जनता को, देश दुनिया की, समाज की असली गतिविधियों के बारे में और उनकी असली हकीकत से अवगत नहीं करते हैं और ये भी अब सरकारी जबान बोलने लगे हैं। अब इन चैनलों ने अपनी सरकारी भूमिका छोड़कर, निजी कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका ग्रहण कर ली है और ये उन्हीं के हितों को आगे बढ़ा रहे हैं, उनका प्रचार प्रसार कर रहे हैं।

       आज हालात ये हो गए हैं कि जनता का एक बड़ा भाग इन सरकारी चैनलों और मीडिया पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि ये तमाम सरकारी चैनल अब अपनी स्वतंत्र भूमिका छोड़कर, सरकार की हां में हां मिलाने लगे हैं। अब जैसा सरकार चाहती है वैसे ही खबरें प्रकाशित की जाती हैं, जिनमें अब हकीकत यह है कि निजी मीडिया की तो बात ही छोड़ दीजिए, सरकारी मीडिया भी अब पूरी तरह से धनी लोगों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए पक्षपाती हो गया है।

      अब यह सरकारी मीडिया, स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से सरकार के विरोधियों की खबरों को, उनके कार्यक्रमों को, प्रसारित नहीं करता। बड़े-बड़े आयोजनों की, बड़े-बड़े महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की जानकारी भी जनता को नहीं देता। निजी मीडिया संस्थान तो पहले से ही अपने मालिकान के कब्जे में थे। उन्होंने तो जैसे विपक्ष के लोगों के कार्यकर्मों का लगभग पिछले 10 साल से बहिष्कार ही कर रखा है। हम लगातार देखे चले आ रहे हैं कि विपक्ष बड़े-बड़े कार्यक्रम करता है, जनहित में बहुत ही उम्दा प्रोग्राम और कार्यक्रम आयोजित करता है मगर उन्हें तो जैसे मीडिया से लगभग नदारत ही कर दिया गया है।

      इस बारे में जब हमने अपने चिर परिचित पत्रकारों से जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने बताया कि पहले संपादक खबरों के मालिक हुआ करते थे मगर आजकल अधिकांश संपादक मैनेजर बन गये है और अब इनका मुख्य काम सच्चाई से परिपूर्ण खबरें दिखाना और छापना नहीं, बल्कि विज्ञापन प्राप्त करके मीडिया मलिक की तिजोरियां भरना है। अब संपादक मैनेजर बन गए हैं।

      मीडिया कितना परतंत्र हो गया है इसकी हकीकत इस बात से जानी जा सकती है कि हमारी जनता के बहुत बड़े हिस्से को आज यह पता ही नहीं है कि हमारी सरकार की अधिकांश नीतियां क्या हैं? जनता को लेकर देश के शासन प्रशासन को लेकर सरकार क्या कर रही है, जनता का बहुत बड़ा हिस्सा इन जानकारियों से बिल्कुल मेहरूम है। इस बारे में हमने चुनावी बोंड खुलासों के बारे में बहुत सारे लोगों से बातचीत की, जिसमें सब्जी विक्रेता, फल विक्रेता, दुकानदार, नाई , मिस्त्री, टाइपिस्ट, चाय बेचने वाले, वकीलों के मुंशी, कॉलोनी की सड़कों पर सैर करती महिलाएं और रवीस के शब्दों में “कालोनियों के कई अंकिल” शामिल हैं।

       जब हमने उनसे भारत में चल रहे चुनावी बांड खुलासों और दूसरी सरकारी नीतियों के बारे में जानकारी करनी चाही तो इन सब ने सर हिला दिया और बताया कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि इसका मुख्य कारण है कि चुनावी बांड के बारे में भारत के मीडिया जिसमें टेलीविजन और अखबार शामिल हैं, इन्होंने इसके बारे में कोई जोरदार खुलासा नहीं किया, जिस कारण वे चुनावी बांडों की हकीकत के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते हैं।

      यही हाल आज चुनावों को लेकर है। चुनाव को लेकर उनका कहना है कि इन चुनाव में सरकार अपने सकारात्मक और जन समर्थक कार्यक्रम लेकर जनता के बीच में नहीं आ रही है, जनता को नहीं बता रही है, बल्कि नकारात्मक मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है और मीडिया ने भी जनता को सच्चाई बताने के अभियान से अपनी आंखें बंद कर ली हैं जैसे जनता को परेशान कर रहे बुनियादी मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महंगाई, भ्रष्टाचार, लगातार बढ़ती कीमतें, इन पर सरकार कोई बात नहीं कर रही है।

      मीडिया का तो जैसे जनता को सच्चाई बताने से कोई मकसद ही नहीं है, वे सिर्फ और सिर्फ अपने मालिकों के पिछलग्गू ही बनकर रह गए हैं। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि आज हमारे देश में सरकारी और निजी मीडिया संस्थानों का सबसे ज्यादा पतन हुआ है। उन्होंने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी “फोर्थ एस्टेट” की अपनी अहमियत बिल्कुल खो दी है जो भारत के जनतंत्र के लिए बहुत खतरनाक, अकल्पनीय और अफसोसजनक स्थिति है।

     ऐसी स्थिति में यहां पर सबसे बड़ा और अहम सवाल उठता है कि जब इस वर्तमान सत्ता ने भारत के चौथे स्तंभ को ढहा दिया है तो ऐसे में हम क्या करें? यहीं पर समाज के जागरूक तबके और तमाम प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और जनवादी ताकतों की यह सबसे बड़ी भूमिका हो जाती है कि वे इस नाजुक और अंधेरे दौर में एक “वैकल्पिक मीडिया” तैयार करें जो जनता को अपनी महत्वपूर्ण नीतियों से अवगत कराये, उसे सही रास्ता दिखाएं ताकि भारत के संविधान और जनतंत्र की मुकम्मल हिफाजत की जा सके और फासीवादी ताकतों को आगे बढ़ने से रोका जा सके, और उन्हें पूर्ण रूप से पराजित किया जा सके। यही आज के सबसे बुनियादी सवाल और बुनियादी काम हैं।

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