एक
वासंती ऋतु हुई शराबी होली में,
खाकर भाँग सुबह इठलायी होली में ।
बटन खोल तहज़ीब नाचती सड़कों पर,
हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में ।
सबके सिर पर राजनीति का रंग चढ़ा,
सियासत ने यूँ धाक जमायी होली में ।
।
धनवानों की होली बेशक होली है,
भूखों ने पर खाक उड़ायी होली में ।
प्रेमचन्द की धनिया बैठी सिसक रही,
जैसे-तैसे लाज बचायी होली में ।
दो
धनिया ने क्या रंग जमाया होली में,
रँगों का इक गाँव बसाया होली में ।
आँखों से हैं छूट रहे शराबी फव्वारे,
होठों ने उन्माद जगाया होली में ।
फँसती गई देह की मछली मतिमारी,
जुल्फों ने यूँ जाल बिछाया होली में ।
सिर पे रखके पाँव निगोड़ी नाच रही,
इस तौर लाज का ताज गिराया होली में ।
टेसू के रँगों का फागुन हुआ हवा,
कड़वाहट का रँग बरसाया होली में।
तेजपाल सिंह तेज स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों स्वतंत्र लेखन में रत हैं।