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सक्सेस के लिए ज़रूरी है ईगो और सेल्फ-रिस्पेक्ट के फ़र्क की समझ 

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         प्रखर अरोड़ा 

व्यक्तिगत विकास और मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में इगो और सेल्फ रिस्पेक्ट की अवधारणाओं पर अक्सर चर्चा की जाती है। लेकिन वास्तव में उनका क्या मतलब है और कोई दोनों के बीच अंतर कैसे कर सकता है? सेल्फ रिस्पेक्ट और इगो में एक बुहत छोटा सा अंतर होता है जिसे समझना बहुत जरूरी होता है। 

     कई बार लोग किसी अपने को खोने से इतना डर जाते हैं कि अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट खो देते हैं। मगर कई बार लोग अपनी ईगो को सेल्फ रिस्पेक्ट का नाम दे देते हैं, जिसके कारण कई रिश्ते खत्म हो जाते हैं। इसलिए इन दोनों (Ego vs Self Respect) में अंतर को समझ लाना बहुत जरूरी है।

       ईगो और सेल्फ रिस्पेक्ट समान अवधारणाएं लगती हैं, लेकिन इन दोनों शब्दों के बीच कुछ अंतर हैं। मुख्य अंतर यह है कि आत्म-सम्मान उस सम्मान को संदर्भित करता है जो एक व्यक्ति अपने लिए रखता है, इससे व्यक्ति को आत्मविश्वास मिलता है और उसके चारों ओर सकारात्मकता पैदा होती है। 

    दूसरी ओर, इगो उस महत्व को बताता है जो एक व्यक्ति स्वयं के बारे में महसूस करता है। आत्म-सम्मान के विपरीत, अहंकार कभी-कभी विनाशकारी हो सकता है और व्यक्ति को कई पहलुओं में विकसित होने से भी रोक सकता है।

*क्या होती है सेल्फ रिस्पेक्ट?*

आत्म-सम्मान उस सम्मान को कहा जाता है जो एक व्यक्ति के मन में अपने लिए होता है। यह बहुत जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने प्रति सम्मान का भाव रखे। किसी के स्वयं का सम्मान करना यह दर्शाता है कि व्यक्ति खुद को महत्व देता है। यही कारण है कि इसकी व्याख्या खुद को स्वीकार करने के रूप में भी की जा सकती है।

      उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के मन में खुद के लिए कोई सम्मान नहीं है, तो वह कुछ भी करने को तैयार होगा। इसके साथ ही, वह एक कमजोर स्थिति में होगा जहां अन्य लोग उसका फायदा उठा सकेंगे। चाहे कोई व्यक्ति गरीब, अमीर, किसी भी रंग का या किसी विशेष धर्म या जाति व्यवस्था से संबंधित हो, सभी लोगों में आत्म-सम्मान होता है।

*ईगो क्या है?*

     अहंकार को किसी के आत्म-महत्व के रूप में समझा जा सकता है। अहंकार और आत्म-सम्मान के बीच एक स्पष्ट अंतर यह है कि जहां आत्म-सम्मान का व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है वहीं अहंकार नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह व्यक्ति में स्वयं की गलत भावना पैदा कर सकता है।

     उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो लगातार महसूस करता है कि वही सबसे अधिक प्रतिभाशाली है, उसमें ईगो विकसित हो सकती है। उसी तरह, एक व्यक्ति, जो अपनी छवि अत्यंत प्रतिभाशाली के रूप में विकसित करता है, उसमें एक अहंकार विकसित होगा जो प्रतिभाशाली होने के विचार को मान्यता देता है।

      अहंकार अक्सर दूसरों को स्वयं से कमतर मानता है और सामने वाले की वैल्यू नहीं करता है और स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानता है। यह न केवल व्यक्ति के लिए हानिकारक हो सकता है, बल्कि विकास में बाधा के रूप में भी काम कर सकता है। इसलिए, किसी के अहंकार को प्रबंधित करना बहुत महत्वपूर्ण है।

रिलेशनशिप में ईगो और सेल्फ रिस्पेक्ट को ऐसे संतुलित करें :

   *खुद के व्यवहार का आत्म विश्लेषण :*

      नियमित रूप से अपने व्यवहार और प्रेरणाओं पर विचार करें ताकि आप यह जान सके कि वे ईगो के बजाय सेल्फ रिस्पेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं। इससे यह पहचानने में मदद मिल सकती है कि ईगो कब आपके कार्यों को प्रभावित कर रहा है।

*विनम्र रहना जरूरी :*

अगर आपने कभी अपने पार्टनर को ईगो दिखाया है, तो अपनी खामियों को स्वीकार करें और अपनी चीजों को स्वीकार करने और उन्हें बदलने के लिए तैयार रहें। विनम्रता इगो को नियंत्रण में रखने में मदद करती है और व्यक्तिगत विकास को बढ़ाती है।

*संतुलन की तलाश :*

     आपको इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पार्टनर की ज़रूरतों और दृष्टिकोणों को समान रूप से महत्व दिया जाए। ऐसी पार्टनरशिप बनाने का प्रयास करें जहां निर्णय और जिम्मेदारियां साझा की जाएं।

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