अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

संघर्षों के बेमिसाल 39 साल

Share

नर्मदा बचाने से प्रकृति संरक्षण तक पहुंचा आंदोलन

(बड़वानी से लौटकर हरनाम सिंह)

आजादी के पश्चात देश में अलग-अलग समस्याओं, मांगो को लेकर अनेक आंदोलन हुए हैं। कतिपय आंदोलन को कहीं सफलता मिली है तो कहीं दमन और उपेक्षा भी सहनी पड़ी है। आंदोलन सजग नागरिकों जीवित समाज की पहचान होते हैं. जो वंचित वर्गों के हितों के लिए संघर्ष करते हैं। ऐसा ही एक संघर्ष 39 साल पहले नर्मदा को बचाने के लिए प्रारंभ हुआ था। इस आंदोलन ने शनिवार को 40 में वर्ष में प्रवेश किया। इस अवसर पर मध्य प्रदेश के बड़वानी में विशाल रैली और जनसभा का आयोजन हुआ। इस में शिरकत करने के लिए देश की विभित्र नदियों को बचाने के लिए संपर्षरत अनेक सामाजिक कार्यकर्ता मुंबई, दिल्ली, बिहार, बंगाल, राजस्थान, महाराज्ञ, गुजरात के आलावा प्रदेश के विभित्र भागों से बढ़‌वानी पहुंचे।

नर्मदा घाटी के विस्थापितों की मांगों को लेकर प्रारंभ आंदोलन अब विस्तारित होकर जल जंगल जमीन के प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की लड़‌ई में बदल गया है। अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन के कारण अनेक पौड़ितों को न्याय मिल पाया है, बावजूद इसके विस्थापन से प्रभावित हुए 20 प्रतिशत किसान, मछुआरे, कुम्हार आज भी संघर्षरत हैं। सभा में वकाओ का आरोप था कि सरकार स्वयं अपने द्वारा बनाई गई पुनर्वास नीति का पालन नहीं करती। गत वर्ष प्रधानमंत्री के जन्मदिन के लिए बांध को पूरी क्षमता से भरने के कारण डूबे अनेक गांवों में आधासन के बाद भी मुआव मुआवजा नहीं दिया गया है। गुजरात से आए प्रतिनिधियों ने बताया कि सरकार द्वारा सरदार पटेल प्रतिमा स्थल की हजारों एकड़ जमीन किसानों से छीनी गई थी और अब वह पूंजीपतियों को सीपी जा रही है। सरदार सरोवर बांध किसानों के लिए बनाने की बात की गई थी लेकिन उसका लाभ उद्योगों एवं शहरी पेगजल उपलब्धता के लिए किया जा रहा है। गुजरात में सानों के सोत आज भी प्यासे हैं।

पर्यावरण बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त प्रकाल सामान्तरा ने कहा कि दुनियां और देश में गैर बराबरी पूंजीवादी विकास की नीतियों के कारण है। विकास के नाम पर विनाश के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी जानी है। सरकार संविधान के खिलाफ काम कर गही है। गत वर्ष प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 946 परिवार विस्थापित हुए थे। किसी को भी विस्थापन का मुआवजा नहीं दिया गया।

मछुआरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष करने वाले प्रदीप चटजी ने कहा की मछलियों के लिए नदियों में स्वच्छपानी होना जरुर है। जवकि देश की लगभग सभी नदियां कचरा प्रबाहित करने के साधन में तब्दील कर दिया गया जिसका नुकसान महुआरों को हो रहा है। जलवायु विशेषज्ञ सौम्या दना ने कहा कि नदियों को बचाना, नदियों को बांधों से मुक्त करने की लड़ाई है नदियों को तालाब में बदलने से बचाने की लड़ाई है, प्रकृति के अधिकारों को संरक्षित रखने की लड़ाई है। 39 साल पहले जलवायु संकर नहीं था। अब प्रकृति इंग्शन को सबक सिखा रही है। अरुणा राय के साथ मिलकर सूचना का अधिकार, महात्मा गांधी है,

रोजगार गारंटी योजना, स्वास्थ्य सेवाअधिकार दिलवाने वाले निखिल डे ने बताया कि देश में अब जवाब देही कानून बनाने की जरूरत है। वर्तमान में सूचना तो मिल जाती है लेकिन सुनवाई नहीं होती। लोगों के समय सीमा में काम नहीं होते। इस हेतु अधिकारियों को को जवाब देह बनाने की जरूरत है। जो काम न करें उस पर जुमांना तथा जिसका काम न हो उसे मुआवजा मिले। ऐसे कानून की जरूरत है। बिहार में कोसी नदी के अधिकारों को बचाने में सक्रिय महेंद्र यादव ने कहा कि वे नर्मदा बचाओ आंदोलन से प्रेरित हैं। कोसी नदी पर बांध बनाने से 10 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, उनके पुनर्वास की लड़ाई लड़ी

जा रही है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मीराबाई ने कहा कि प्रकृक्ति विरोधी राजनीति को बदलने की जरूरत है। नदियां बचेगी तो सब कुछ बचेगा। नदी न तो कचरा प्रवाहित करने का साधन है नहीं मनोरंजक गतिविधियों का। नदी एक जीवित इकाई है। आने वाली पीदीयों के लिए नदी और प्रकृति को बचाने के प्रयास करते रहना होंगे। सीपीआई (माले) बिहार के विधायक पुरुषोत्तम शमां ने आरोप लगाया कि नर्मदा घाटी के बारे में सरकार ने संसद में गलत बयानी की

सभा का संचालन करते हुए कहा कि किसानों को सभी फसलों, दूध और प्रकृति प्रदत्त सभी उपज का सही दाम मिले तो ती देश का विकास माना जाएगा। उन्होंने कहा कि एक तरफ अरबो रुपए शादी में रणग किए जा राी हैं दूसरी तरफ किसान आत्महत्या के लिए विवश है। सरकार जो समितियां, आयोग बनाती है उपकी रिपोर्ट पर अमल नहीं करती। सभा में क्षेत्रीय विधायक राजेंद्र मंडलोई, राजस्थान के कैलाश मीणा, संदीप ठाकूर, बंगाल से आए अमिताभ मित्र, जन आंदोलन के समन्वय कृपाल भाई, पुणे के संतोष लालवानी, ग्वालियर के एडवोकेट रतानिया, शशि भूषण, जो भाई अधिगाली, छतरपुर से आई दमयंती, कसरावद से एडवोकेट आयशा पठान, मुकेश भगोरिया, कमल यादव, श्यामा, सुशीला नाथ, नूर जी साब, शैलेश, लतिका, कांजीभाई गोसरू मंगल्या शंकार भाई। इंदौर से अर्थशास्त्री जगा मेहता, विनीत तिवारी, प्रमोद वागड़ी, अंजुम, शबाना निराशी, हरनाम सिंह ने भी शिरकत की। नवीन मित्रा और अन्य कार्यकर्ताओं ने गीत गाए, स्कूली बच्चों ने नृत्य किया। सभा का संचालन मेधा पाटकर के साथ जाहिद मंसूरी ने किया। सभा के पूर्व बड़वानी में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक विशाल रैली निकाली गई जिसमें बड़ी तादाद में आंदोलन के कार्यकर्ताओं बाहर से आए अतिथियों, स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया।

 औपनिवेशिक आजादी की लड़ाई 90 साल तक चली थी। वर्तमान में देश में जल, जंगल, और जमीन की लड़ाई भी लंबे समय तक चलेगी। सरकार के सभी कानून कॉर्पोरेट के पक्ष में बनाए जा रहे हैं। देश के सभी संसाधन पूंजीपतियों को सौंपें जा रहे हैं। ऐसी नीतियों के खिलाफ लड़ना जरूरी है। इंदौर से आई सामाजिक कार्यकर्ता स्वरिका श्रीवास्तव ने कहा कि विकास से निकला विस्थापन शहर की बस्तियां और गांव को निगल रहा है। इंदौर के प्रगतिशील सोच वाले संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ है। 

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें