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15 अगस्त 1947 को मिली आजादी को भीख बताने वाली कंगना को पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाना अत्यंत आपत्तिजनक निंदनीय कृत्य : अजय खरे

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रीवा . समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा है जिस कंगना ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन के खिलाफ अत्यंत आपत्तिजनक गलतबयानी की , उसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाना अत्यंत शर्मनाक निंदनीय बात है । श्री खरे ने कहा कि देश के आजादी के आंदोलन के इतिहास के साथ क्रूर खिलवाड़ करने वालों को मोदी सरकार का संरक्षण मिलना अत्यंत चिंताजनक आक्रोश का विषय है ।

कंगना के द्वारा 1947 में मिली आजादी को भीख बताना और यह कहना कि देश में असली आजादी तो साल 2014 में मिली थी , अत्यंत आपत्तिजनक और देश के स्वतंत्रता आंदोलन के अमर सेनानियों का खुल्लम खुल्ला अपमान है जिसे लेकर उसे जरा भी मलाल नहीं है । श्री खरे ने कहा कि यह भारी विडंबना है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम का मजाक उड़ाने वाली कंगना को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है । वह अभी भी अपने बचाव में कुतर्क कर रही हैं । इधर कह रही हैं कि 1857 तो मुझे पता है लेकिन 1947 में कौन सा युद्ध हुआ था इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता है । अगर इसके बारे में मुझे कोई बता सकता है तो मैं अपना पद्मश्री वापस कर दूंगी और माफ़ी भी मांगूंगी । श्री खरे ने कहा कि इतिहास को गलत ढंग से तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने वाली कंगना को यह मालूम होना चाहिए कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को तात्कालिक सफलता नहीं मिली थी और फिर आजादी के आंदोलन को 90 वर्ष बाद सफलता मिल पाई । देश को आजादी दिलाने में 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों ने अहम भूमिका अदा की जिसके चलते 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली । यूनियन जैक की जगह तिरंगे ने ली . देश को आजादी दिलाने में 18 57 से लेकर 1947 के पहले तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ चले जन आंदोलन की अहम भूमिका रही है । भगत सिंह की शहादत को लेकर कंगना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कटघरे में खड़ा करने की ओछी कोशिश करती नजर आ रही हैं । कंगना और अंध भक्तों से यह पूछना है कि क्या गांधी जी भगत सिंह को बचाने के लिए माफीनामा तैयार करते ? क्या गांधी जी ऐसा कर सकते थे या भगत सिंह कभी उसे स्वीकार कर सकते थे ? यह दोनों सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है । देश में त्याग बलिदान की मिसाल भगत सिंह हैं , वहीं दूसरी ओर देश के साथ गद्दारी करने वाले सावरकर का नाम बदनाम है । श्री खरे ने कहा कि कंगना के पीछे ऐसी संकीर्ण सांप्रदायिक सोच वाली सारी ताकतें खड़ी हुई हैं जिन्होंने देश की आजादी के आंदोलन के समय गद्दारी की और महात्मा गांधी की हत्या के षड्यंत्र को सही ठहराने की घृणित कोशिश करते नजर आते हैं । इस बात पर सिर्फ कंगना से सवाल नहीं बल्कि उन सारे लोगों से है जो उसकी आड़ में देश की जनता को गुमराह करने का षड्यंत्र रच रहे हैं । कंगना के माध्यम से देश के इतिहास के साथ गंदा खेल खेला जा रहा है । इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए । बंदूक चलाने में उसके कंधे का इस्तेमाल जरूर हो रहा है लेकिन चलाने वाले लोग कोई और हैं । कंगना को आखिरकार पद्मश्री कैसे मिल गया ? साफ जाहिर है कि उसे मोदी सरकार का संरक्षण मिला हुआ है । कंगना ने जिस तरह का गलत बयान दिया है यदि कोई दूसरा देता तो उसकी जमानत नहीं होती । श्री खरे ने कहा कि धर्म एक नितांत निजी विषय है , राष्ट्र पर किसी धर्म विशेष का राज्य लोक कल्याणकारी राज्य की मूल अवधारणा के प्रतिकूल एवं जन विरोधी है।

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