मध्य प्रदेश सरकार में नगरीय विकास एवं आवास और संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। उन पर सोशल मीडिया पर भ्रामक पोस्ट करने का मामला खारिज कर दिया गया है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता और मध्य प्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 504/505(1)(बी)/120बी के तहत दर्ज मामला खारिज किया।उन पर अपने X (ट्विटर) अकाउंट पर सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के बारे में कथित रूप से भ्रामक पोस्ट करने का आरोप था।
राज्य सरकार का ये था आरोप
राज्य (कलकत्ता) द्वारा आरोप लगाया गया कि विजयवर्गीय ने अपने X हैंडल पर महिलाओं पर हमला किए जाने का फर्जी वीडियो साझा किया।दावा किया कि इस हमले के पीछे सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता हैं। यह तर्क दिया गया कि इस पोस्ट के कारण क्षेत्र में व्यापक शांति भंग हुई।
यह था पूरा मामला
विजयवर्गीय पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से सोशल मीडिया पर कुछ व्यक्तियों द्वारा दो महिलाओं पर हमला किए जाने और अपमानित किए जाने की तस्वीरें साझा कीं। कथित तौर पर ऐसी घटना सूचनाकर्ता के क्षेत्र में हुई।
हालांकि, सूचना देने वाले ने कहा कि पूरा प्रकरण पूरी तरह से गलत है। इस तरह की भ्रामक जानकारी और बयानों के कारण ही उक्त क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ, जिससे इलाके में शांति भंग हुई।इसकी लिखित शिकायत की गई। जिसके बाद कलकत्ता पुलिस ने कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ FIR दर्ज की।
विजयवर्गीय की ओर से ये रखा गया पक्ष
याचिकाकर्ता यानी कैलाश विजयवर्गीय की ओर से अपनी याचिका में दावा किया कि वह राज्य के विपक्षी दल का प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध राजनीतिक व्यक्ति है। जब यह मामला दर्ज किया गया उस समय वे राज्य के विपक्षी दल के राष्ट्रीय महासचिव थे।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद सत्तारूढ़ दल ने राजनीतिक प्रतिशोध के कारण उनके खिलाफ झूठा मामला शुरू किया।भले ही कथित अपराध प्रकृति में गैर-संज्ञेय हैं, जो पुलिस प्राधिकरण को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना जांच करने का अधिकार नहीं देता है।
इसलिए मिली राहत
याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि जांच से पहले मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 155 (2) के तहत कभी भी कोई निर्देश पारित नहीं किया गया।इसके अलावा, शिकायतकर्ता द्वारा आरोपित अपराध किसी भी आपराधिक अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करता है। इसलिए पुलिस प्राधिकरण द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट का पंजीकरण अवैध है।
याचिकाकर्ता को परेशान किया जा रहा है। जिसके कारण वियजवर्गीय ने इस संबंध में अपील की। याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमत होते हुए कोर्ट ने माना कि अपराध वास्तव में गैर-संज्ञेय थे।चूंकि पुलिस ने मजिस्ट्रेट की मंजूरी के बिना उनकी जांच शुरू की थी, इसलिए उनकी प्रारंभिक कार्रवाई ने वर्तमान अभियोजन को शून्य कर दिया था।
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