,,मुनेश त्यागी
हम लड़े हैं,,,,,
खेतों में
सड़कों में
गलियों में
खलिहानों में।
हम लड़े हैं,,,,,
तीर से
बमों से
संगीन से
बंदूक से
तोपों से
टैंको से
तलवार से
मिसाइलों से।
हमारे हथियार थे,,,,,
किताबें
विचार
बहस
भाषण
मनन और
अध्ययन।
हम लड़े थे,,,,,,,
फांसी के फंदे से
फांसी के तख्ते से
जेल की दीवार से
अकेले अकेले नहीं
मिलजुलकर लड़े थे
मिलजुल कर लडेंगे।
हम लड़ेंगे,,,,,,
जैसे मार्क्स और एंगेल्स लड़े थे
जैसे नाना अजीमुल्ला तातिया और जफर लड़े थे
जैसे बिस्मिल और अशफाक लड़े थे
जैसे आजाद, सुभाष और भगत सिंह लड़े थे।