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 दलितों और आदिवासियों के लिए मोदी सरकार ने क्या किया ?

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बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि लगभग दस मुस्लिम संगठन भारत विभाजन के विरोधी थे। वे अंग्रेजी सरकार से विभाजन  न करने का आग्रह करते रहते थे। ज्ञापन आदि देते रहते थे लेकिन साम्राज्यवादी  शासन जिस देश को मजबूरी में आज़ाद  करता था उसके टुकड़े कर देता था ताकि वे आपस में लड़ते रहे और  एक सशक्त देश न बन सके। साम्राज्यवाद ने यहां यही अनीति  लागू की थी और उसके लिए मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग ने उसकी मदद की थी। अप्राकृतिक भारत विभाजन का परिणाम वही  निकला था जो साम्राज्यवाद चाहता था। देश में बड़ी बर्बादी और भयानक  हिंसा हुई थी। 

दोनों देश एक दूसरे से कई युद्ध कर चुके हैं । लगातार एक दूसरे के शत्रु बने हुए हैं। अपनी सैन्य शक्ति बनाए रखने  के लिए पश्चिमी देशों से खरबों डॉलर के हथियार खरीदते हैं।

साम्राज्यवाद की इस चाल को समझना जरूरी है।

वे मुस्लिम संगठन जो  भारत विभाजन के विरोधी थे। इन संगठनों के कुछ सदस्य विभाजन विरोध और हिंदू मुस्लिम एकता और शांति बनाए रखने के प्रयासों में मारे भी गए थे।

1.ऑल इंडिया आजाद मुस्लिम कान्फ्रेंस 

2.ऑल इंडिया जमहूर मुस्लिम लीग

3. ऑल इंडिया मुस्लिम  कांफ्रेंस

4.ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस 

5.ऑल इंडिया शिया पॉलिटिकल कांफ्रेंस

6. अंजुमन – ए- वतन बलूचिस्तान

7. जमात अहले हदीस

8.जमते उलमाए हिन्द

9. मजलिसे अहरार इस्लाम

10.खाकसार आंदोलन

– *असग़र वज़ाहत*

[8/21, 10:48 AM] +91 96029 92087: दलितों और आदिवासियों के लिए मोदी सरकार ने क्या किया ?

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आरएसएस की छत्रछाया में पीएम मोदी के आठ साल के शासन में दलितों और आदिवासियों को क्या मिला ? कहने को पहले श्री रामनाथ कोविन्द के तौर पर दलित राष्ट्रपति और अब श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी के तौर पर आदिवासी राष्ट्रपति, कई मन्त्री और कुछ योजनाएं। लेकिन इन सबके बावजूद पिछले आठ साल में दलितों और आदिवासियों का कितना भला हुआ ? उस पर आज भी प्रश्न चिन्ह खड़ा है।

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जयपुर (थार न्यूज़-इक़रा पत्रिका)। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शासन को आठ साल से अधिक हो गए हैं। पूर्ण बहुमत की सरकार है। आरएसएस की छत्रछाया है। रोटी रोजगार और महंगाई का हाल पूरे देश को मालूम है। थार न्यूज़ और इक़रा पत्रिका सहित कमोबेश सभी मीडिया संस्थान ने कई बार इस मुद्दे पर लिखा है, बोला है और अपनी स्टोरी प्रसारित की हैं। लेकिन आज की इस स्टोरी में मुद्दा दलितों और आदिवासियों का है। जिनके लिए मोदी सरकार ने क्या किया ?

यह जग जाहिर है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अच्छे खासे दलित और आदिवासी वोट भाजपा को मिले और पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में और ज्यादा मिले, जिससे भाजपाई सांसदों की संख्या पहली बार 300 पार कर गई। साथ ही 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी इस तबके के वोट भाजपा को खूब मिले और फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में तो दलित वोटर ने ही यूपी में भाजपा की डूबती हुई नैय्या को बचाया। इसी तरह देश के अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी इस तबके के जमकर वोट भाजपा के खाते में जाते हैं, परिणामस्वरूप डेढ़ दर्जन राज्यों में आज भाजपा की सरकार है।

इतना वोट देकर और भाजपा को सत्ता की चाबी सौंप कर आखिर दलितों और आदिवासियों को क्या मिला ? उनका आरक्षण आबादी के अनुपात में बढ़ा दिया गया ? प्राइवेट सेक्टर में एससी-एसटी को आरक्षण दे दिया गया ? बिना परीक्षा के लेटरल एन्ट्री से बनाए गए आईएएस अधिकारियों में बड़ी संख्या में एससी-एसटी की भी नियुक्त की गई ? कई राज्यों में मुख्यमंत्री एससी-एसटी के बना दिए गए ? केन्द्र व राज्य सरकारों के मुख्य मन्त्रालय व विभाग एससी-एसटी नेताओं को दे दिए गए ? बरसों से खाली पड़े बैक लाॅक के सभी पदों को भर दिया गया ? सभी सवालों के जवाब दलित व आदिवासी चिन्तकों एवं बुद्धिजीवियों और बेरोजगार युवाओं को अपने राजनेताओं और सरकार से खुद पूछने चाहिए।

2017 में श्री रामनाथ कोविन्द को भाजपा ने राष्ट्रपति बनाया, दलित राष्ट्रपति बनाने का खूब प्रचार किया। जो आज भी जारी है, लेकिन श्री कोविन्द ने सरकार के मुखिया के नाते दलितों को क्या विशेष दिलवाया ? अब 2022 में श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी को राष्ट्रपति बनाया गया है, जिन्हें आदिवासी राष्ट्रपति के तौर पर भाजपाई खेमे की तरफ से प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन क्या वे अगले पांच साल में आदिवासियों का बड़े पैमाने पर भला कर पाएंगी ? अगर आरएसएस चाहेगा तो ऐसा कर पाएंगी, नहीं चाहेगा तो नहीं कर पाएंगी। दलित और आदिवासी को राष्ट्रपति बनाना अच्छी बात है, क्योंकि सदियों से यह दोनों तबके दबे हुए, कुचले हुए और प्रताड़ित रहे हैं, आजादी के 75 साल बाद भी इनको वो कुछ नहीं मिला, जिसके यह हकदार हैं।

आरएसएस की छत्रछाया में मोदी सरकार चल रही है, जो किसी से ढकी छुपी बात नहीं है। सरकार में वो ही होता है, जो आरएसएस चाहता है। इसलिए आरएसएस को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी से दलितों व आदिवासियों के भले के कुछ काम करवाने चाहिए। जिनमें पहला आबादी के अनुपात में आरक्षण बढाना, दूसरा प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण देना, तीसरा लेटरल एन्ट्री या तो बन्द करना या फिर इसमें भी आरक्षण लागू करना, चौथा सम्पूर्ण बैक लाॅक भरना, पांचवां आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन आदि का मालिकाना हक देना, छठा आदिवासी क्षेत्रों में लगने वाले समस्त कारखानों व खनन फैक्ट्रियों में स्थानीय आदिवासी परिवारों को शेयर होल्डर (साझी) बनाना, सातवां केन्द्रीय गृहमंत्री, रक्षा मन्त्री, विदेश मन्त्री, वित्त मन्त्री जैसे मुख्य मन्त्रालयों में से एक दलित नेता को और एक आदिवासी नेता को दिलवाना आदि आदि।

इनके अलावा आरएसएस को यह भी करना चाहिए कि यूपी, एमपी, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में कम से कम एक दलित और एक आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए तथा भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्य विभाग (गृह, वित्त, शिक्षा, शहरी विकास, उद्योग आदि) में कम से कम दो तीन दलितों व आदिवासियों को दिलवाना सुनिश्चित किया जाए। क्या आरएसएस ऐसा करवाएगा ? क्या मोदी सरकार आरएसएस को नजरअंदाज कर ऐसा करेगी ? क्या भाजपा नेतृत्व ऐसा करवाने की हिम्मत दिखाएगा ? क्या भाजपाई दलित और आदिवासी नेता खुलकर ऐसी मांग करने की हिम्मत करेंगे ?

एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका

इकरा पत्रिका से साभार

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