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अजमेर दरगाह में क्या है 94 साल पुराना नजराना विवाद, दीवान और खादिमों के बीच क्यों अनबन 

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अजमेर: राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का नजराना विवाद एक बार फिर गहरा गया है। दीवान को दी जाने वाली सवा दो करोड़ की राशि नहीं देने को लेकर खादिम ने अंजुमन कमेटी को पत्र लिखा है। दरअसल यह विवाद वर्ष 1933 से चल रहा है। विवाद खादिमों और दीवान के बीच उस पैसे को लेकर है, जो चढ़ावा के रूप में दरगाह शरीफ में आता है। कई सालों से यह व्यवस्था चली आ रही थी कि खादिमों और दीवान के बीच अजमेर दरगाह में आने वाली राशि को 50 -50 प्रतिशत की हिस्सेदारी में बांटा जाएगा, लेकिन 1933 में खादिमों ने इस आधार पर राशि का बंटवारा सही नहीं बताते हुए विरोध किया था और मामला कोर्ट में ले गए। इसके बाद दीवान को सवा दो करोड़ राशि दिए जाने को लेकर समझौता हुआ था।

खादिम पीर नफीस मियां चिश्ती ने अंजुमन कमेटी को लिखा पत्र
लेकिन समझौता होने के बाद अब इस मामले में नया विवाद जुड़ गया। दीवान को समझौते के तहत दी जाने वाली राशि पर भी अब एक खादिम ने सवाल खड़े किए हैं। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के खादिम पीर नफीस मियां चिश्ती ने अंजुमन कमेटी को एक पत्र लिखा है। पत्र के जरिए उन्होंने कहा कि दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान को नजराने के रूप में सवा दो करोड़ रुपए की राशि दिया जाना उचित नहीं है । सुप्रीम कोर्ट में इसका मामला भी विचाराधीन है और वह स्वयं इस मामले में पक्षकार है।

पत्र में आगे उन्होंने लिखा कि पूर्व अंजुमन कमेटी ने दरगाह दीवान के साथ लिखित में राशि देने का समझौता किया था। इसके तहत सवा 2 करोड़ रुपए की राशि देने पर सहमति बनी थी। इस समझौता पत्र को सुप्रीम कोर्ट में भी पेश किया गया था ,लेकिन अब तक यह समझौता पत्र मंजूर नहीं किया गया है ।

खादिम नफीस मियां चिश्ती ने उठाया यह सवाल
पीर नफीस मियां चिश्ती ने कहा कि अगर यह राशि दीवान को दे दी जाती है और वह सुप्रीम कोर्ट केस हार जाते हैं तो फिर अंजुमन कमेटी किस तरह से दरगाह दीवान से यह समझौते के तहत दी गई राशि की वसूली करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जब रिसीवर दरगाह कमेटी पेटियां लगाकर नजराना एकत्रित कर रही है तो फिर क्यों उन्हें यह राशि दी जाए? पीर नफीस मियां चिश्ती में अंजुमन की बैठक बुलाकर इस संबंध में पुनर्विचार करने की मांग की है। खादिम नफीस मियां के पत्र के बाद अंजुमन में आगामी दो-तीन दिन में बैठक करके इस संबंध में सर्वसम्मति से निर्णय लेने की बात कही है।

1933 से चल रहा है विवाद
वर्ष 1933 में जायरीन की ओर से चढ़ाए जाने वाले नजराने को लेकर विवाद शुरू हुआ। दीवान आले रसूल की डिग्री को इजराए बाबत दीवान जेनुअल आबेदीन अली खान की ओर से न्यायालय में प्रार्थना पत्र पेश किया गया। 13 नवंबर 2013 को हाई कोर्ट की जयपुर खंडपीठ के आदेश से दरगाह कमेटी को रिसीवर नियुक्त कर पीली पेटियां लगाने के निर्देश दिए। दरगाह में पेटियां लगाई भी गई, लेकिन इनका बंटवारा आज तक नहीं हुआ है।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार नोटबंदी के बाद 15 दिसंबर 2016 के आदेश से 2019 तक राशि को पेटियों से निकालकर एसबीआई बैंक में जमा करवाने दिया गया। इसकी अनुपालना में पैसा बैंक में जमा भी करवा दिया गया। अब तक भी इस मसले का हल नहीं निकला है। पैसा ना ही दीवान को मिला और ना ही खादिमों तक पहुंचा है।

निवर्तमान अंजुमन कमेटी के पदाधिकारियों ने दीवान से एक समझौता करके सवा दो करोड़ रुपए की राशि सालाना देने की सहमति दी थी। अब हालांकि नई कमेटी चुन ली गई है। ऐसे में अब कमेटी बैठक के बाद ही इस पर निर्णय करेगी। इधर खामिद मियां नफीस चिश्ती भी कमेटी को दीवान को दी जाने वाली राशि पर रोक लगाने और पुनर्विचार करने की दरखास्त की है।

आधा आधा है नजराना
दरगाह के खादिम ने बताया कि दीवान और खादिम का नजराने पर आधा आधा हिस्सा है। इसको लेकर ही खादिमों की ओर से विरोध किया और इसके बाद में मामला न्यायालय में चला गया।

दीवान के बेटे ने कहा- नो कमेंट्स
एनबीटी ने दरगाह दीवान के बेटे सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती से नजराना विवाद को लेकर पक्ष जानना चाहा ,तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जिसने पत्र लिखा है, उसी से सारी जानकारी ली जाए। फिलहाल अब देखना यह होगा कि दीवान के साथ हुए समझौते को लेकर नई अंजुमन कमेटी आगे क्या फैसला लेती है।

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