सरकार और सुरक्षा बल इन्हें नकारते हुए नक्सलियों का दुष्प्रचार बताते हैं। मगर कई आरोपों की पुष्टि तो खुद सरकार द्वारा गठित न्यायिक जांच आयोग भी कर चुके हैं। सीबीआई का जांच दल भी सुरक्षा बलों पर सवाल उठा चुका है। ऐसे में किसी के लिए भी यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सरकार और नक्सलियों में से सच कौन बोल रहा है। रही बात बस्तर के ग्रामीण और वन क्षेत्रों में निवासरत आदिवासियों की, तो उनकी बात सुनने की फुरसत शायद किसी को नहीं है। न सरकार को, न आदिवासियों को और न ही समाज को।
मनीष भट्ट मनु
छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार ग्रामीणों और नक्सलियों ने सरकार पर हवाई हमले कर निर्दोषों की हत्या करने का आरोप लगाया है। नक्सली संगठनों ने विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया है कि गत 7 अप्रैल को दक्षिण बस्तर में पामेड़ इलाके के मेट्टागुड़ा, भट्टीगुड़, कवुरगट्टा, जब्बागट्टा आदि गांवों में ड्रोन और हेलीकॉप्टर से बमबारी की गई।
इससे पहले भी बस्तर संभाग में अप्रैल 2021 और अप्रैल 2022 तथा जनवरी 2023 में हवाई हमले के आरोप लगाए जा चुके हैं। हालांकि स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों से जुड़े लोग इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं। उनके मुताबिक नक्सली संगठन लगातार कमजोर होने से हताशा के शिकार हैं और इसी हताशा में वे सहानुभूति पाने के लिए आरोप लगा रहे हैं।
नक्सलियों पर हवाई हमले संबंधी खबरें नई बात नहीं हैं। इसके पहले भी कई बार इस आशय के समाचार आ चुके हैं। मसलन, वर्ष 2013 में तत्कालीन वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एन. ए. के. ब्राउन के हवाले से समाचार आए थे कि वायुसेना महाराष्ट्र के नागपुर में 12 हेलीकॉप्टरों की एक यूनिट जून महीने तक सक्रिय हो जाएगी, जो नक्सल हिंसा से प्रभावित जगदलपुर (बस्तर) के बडे इलाके में खोजी एवं राहत मिशन चलाएगी। ब्राउन के हवाले से लिखा गया था कि इस यूनिट में 12 एमआई-17 वी 5 हेलीकॉप्टर होंगे और जरूरत के आधार उनमें से छह हेलीकॉप्टरों को इन अभियानों के लिए रखा जाएगा। साथ ही यह भी कहा गया था कि सुकमा में नक्सलियों के नृशंस हमलों को देखते हुए हवाई ताकत में होने जा रही यह बढ़ोत्तरी अर्द्धसैनिक बलों की कार्रवाइयों में बहुत मददगार साबित होगी।
कईयों का तब भी यह मानना था कि खोजी एवं राहत मिशन के नाम पर यदि हवाई हमला किया जाने का निर्णय लिया जाता है तो उसे कौन रोक पाएगा। आज लगभग 10 साल बाद हैलाकाप्टरों और उनके ठिकानों की संख्या भी बढ़ी है और खोजी एवं राहत मिशन भी। जनवरी 2023 में सुकमा और बीजपुर जिलों के सीमाई क्षेत्रों में हवाई हमले के आरोपों पर सीआरपीएफ की ओर से जारी आधिकरिक बयान में कहा गया था कि फारवर्ड बेस कैंप में जवानों को हेलीकाप्टर से शिफ्ट किए जाने के दौरान नक्सलियों ने गोलीबारी की है, जिसमें जवाबी कार्रवाई में नक्सली भाग खड़े हुए हैं। हालांकि इस बार भी इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी थी कि नक्सलियों और सुरक्षा बलों में से सच कौन बोल रहा है या फिर कौन झूठ।
बस्तर के ग्रामीण और वन क्षेत्रों में निवासरत नागरिकों का आरोप है कि पिछले तीन सालों में सुरक्षा बलों द्वारा उनके खेतों ओर जंगलों में चार बार हवाई हमले किए गए हैं। उन्हें इनके आगे भी जारी रहने की आशंका है। इस तरह के हमले से सभी निवासी डरे हुए हैं। उनका कहना है कि सरकार अपने ही नागरिकों पर हवाई हमले करवा कर साबित क्या करना चाह रही है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे के बाद भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने विज्ञप्ति जारी कर आने वाले दिनों में हवाई हमलों की आशंका व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ के स्थापना दिवस में जगदलपुर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में कहा था कि नक्सलियों के साथ जंग आखिरी चरण में हैं। उन्होंने बहुत जल्द ही माओवादियो को जड़ से मिटाने की घोषणा की है। इसी लिए पूरे दंडकारण्य में मुखबिर तंत्र से सूचनाएं लेकर आसमान से ड्रोन और हेलीकॉप्टर हवाई हमले की तैयारियां चल रही हैं। बीते 7 अप्रैल को जवानों की ओर से बमबारी इसी कड़ी का हिस्सा है।
हालांकि बस्तर के आईजी सुंदरराज पी. के अनुसार नक्सली प्रेस नोट के माध्यम से झूठी जानकारी दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आज तक इस तरह का कोई हवाई हमला बस्तर में नहीं किया गया है। नक्सली हमेशा से ही सूरक्षा बलों को बदनाम करने और उनका मनोबल गिराने के लिए इस तरह के अर्नगल आरोप लगाते हैं।
गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध बस्तर एक लंबे अरसे से सरकार और नक्सलवादियों के मध्य फंसा हुआ है। यहां को लेकर दोनें ही पक्षों के अपने-अपने दावे और प्रमाण हैं, जिन्हें वह समय-समय पर प्रस्तुत करते रहते हैं। मगर, यह भी उतना ही सच है कि बस्तर के निवासियों, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं, का पक्ष शायद ही कभी निष्पक्ष तौर पर प्रस्तुत किया गया हो। फर्जी मुठभेड़ों, फर्जी आरोप लगा जेल भेजने, घरों और फसलों को जलाने, जानवरों को खाने के लिए जबरन ले जाने के साथ महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार के आरोप सुरक्षा बलों पर अक्सर ही लगते रहते हैं।
जाहिर तौर पर सरकार और सुरक्षा बल इन्हें नकारते हुए नक्सलियों का दुष्प्रचार बताते हैं। मगर कई आरोपों की पुष्टि तो खुद सरकार द्वारा गठित न्यायिक जांच आयोग भी कर चुके हैं। सीबीआई का जांच दल भी सुरक्षा बलों पर सवाल उठा चुका है। ऐसे में किसी के लिए भी यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सरकार और नक्सलियों में से सच कौन बोल रहा है। रही बात बस्तर के ग्रामीण और वन क्षेत्रों में निवासरत आदिवासियों की, तो उनकी बात सुनने की फुरसत शायद किसी को नहीं है। न सरकार को, न आदिवासियों को और न ही समाज को।