अग्नि आलोक
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डॉक्टर अग्निशेखर… कश्मीर का वो सच जो आपको जानना जरूरी है

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हरितेश्वर मनी तिवरी की वाल से
यह नाम कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े नेता के रूप में जाना जाता है, और भाजपा के बहुत बड़े समर्थक के रूप में भी जाना जाता था। इनको सुनने और समझने का प्रयास कीजिए।
एक साल पहले गृहमंत्री अमित शाह ने जब कश्मीरी पंडित विस्थापन को लेकर संसद में उलूल झुलूल तर्क दिए थे तब उनका बयान सामने से आकर जारी हुआ था।

अग्निशेखर के अनुसार घाटी में कश्मीरी पंडितों पलायन तब तक नहीं हुआ था जब तक कांग्रेस की वहाँ सरकारें थी, माहौल पूरी तरह शांत था, यहां तक कि जब भाजपा समर्थित वी पी सिंह की सरकार में हुए विस्थापन के उपरांत भी यूपीए की डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने घाटी में पुनर्वास के लिए 6000 कश्मीरी युवकों को नौकरी दी। ये सारी बातें नफ़रत फैलाने के उद्द्येश्य से बनी कश्मीर फाइल्स में नहीं दिखलाया गया…

साधारण सी बात है कि दंगों से किसका फायदा हुआ अंत मे दंगा कारकों का पता लगाने के लिए काफ़ी है।
1989 से पहले कश्मीर शांत था, हर कश्मीर भृमण करने वालो के घरों में कश्मीर की खूबसूरत वादियों की खुशनुमा तस्वीरे जरूर मिल जाती थी, 1987 से अलगाववाद जरूर पनपा था परन्तु वो कश्मीर के आंतरिक हिस्सो में ही पनपा था, नाशक की भूमिका नहीं निभा रहा था। उकसा कर मुरली मनोहर जोशी ने कश्मीर को अशांत किया, लाल चौक पर तिरंगा फहराना गलत नहीं था पर अलगाववादियों को हिंसा के लिए उकसाना गलत था।

मुफ़्ती मोहम्मद सईद भाजपा/लेफ्ट समर्थित वी पी सिंह की सरकार में गृहमंत्री थे, एक अलगाववादी नेता के देश के गृहमंत्री के पद पर काबिज होने के बावजूद, 19 जनवरी 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बावजूद, भाजपा ने 10 नवम्बर 1990 तक वी पी सिंह सरकार को समर्थन देना जारी रखा, क्योंकि फायदा भविष्य में उसे ही उठाना था। समर्थन भी खींचा तो राम मंदिर के लिए रुकवाए गए रथयात्रा के मुद्दे को लेकर, कश्मीरी पंडितों के लिए नहीं।

काफ़ी लंबा इन्वेस्टमेंट किया भाजपा ने कश्मीर मुद्दों को लेकर, उस आग को भड़काने के लिए खूब घी और लकड़ी डालने का काम किया, नफ़रत का ऐसा माहौल तैयार किया इस देश मे की उन्ही नफ़रतों के सहारे आज पूर्ण बहुमत से सत्ता पर काबिज है। अब बतलाइए काश्मीरी दंगों से फायदा किसका हुआ?
कारक कौन निकला??

अंतिम तथ्य एक और है, RTI से प्राप्त जानकारी के अनुसार कश्मीर में हिंसा के वक्त मारे गए पंडितों की असल संख्या 89 है, उसके बाद जितनी संख्याओं को प्रसारित किया गया वो सब के सब नफरती बुनियादें है।
नफ़रतों से खेलना ही भाजपा की फितरत है जो कश्मीर फ़ाइल नाम फ़िल्म के रूप में आज पुनः इस देश जरिया बना रहा…

  • आज़ाद हिंदुस्तानी
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