डॉ सुनीता त्यागी*
‘नारी चेतना मंच’के 28 वें वर्ष की शुरुआत 20 फरवरी के अवसर पर बधाई देते हुए मुझे खुशी हो रही है कि मै भी कुछ समय पूर्व इसकी सदस्य बनीं। इसकी 27 वर्ष लम्बी यात्रा स्वयं सिद्ध प्रमाण है कि संगठन ने नारी चेतना, उसकी समस्यायें, उनके उन्मूलन व समाधान में सामाजिक, राजनीतिक या न्यायिक सहयोग किया और देश की आधी आबादी को जागरुक करने वैयक्तिक व सामाजिक विकास का विचार दिया।
सदियों से मजबूत पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था में स्त्री की पहचान व स्वतंत्र अस्तित्व एक चुनौती रही है । रुढ़िवादी विचारधारा स्त्री का पिता या पति से अलग न अस्तित्व मानती है न हित।स्त्री का न सपनों का हक़ न निजी सुख दुःख ,भावनायें व रुचियों का हक़ । हर क्षेत्र में उसकी क्षमता व कुशलता को भी दबा दिया जाता है । एक अर्थ में स्त्री पुरुष की सम्पत्ति भर होती है , हाल ही में आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत का बयान इसी विचार की पुष्टि करता है । उनका कहना है कि समाज में बढते तलाक का कारण स्त्री की आर्थिक आत्मनिर्भरता से उत्पन्न अहंकार है । उनके इस विचार से तो विवाह संबंध स्त्री की परनिर्भरता से ही निभ सकते हैं । क्या यह पुरुष की आर्थिक स्वतंत्रता से उत्पन्न अहंकार नहीं है कि वह स्त्री को पालता है , सुरक्षा देता है? उनके विचार से तो पुरुष श्रेष्ठता उसकी आर्थिक श्रेष्ठता का सीधा परिणाम है जैसे धन कमाने की योग्यता पुरुष में ही है । यह विचार ही स्त्री विरोधी है । पुरुष की आर्थिक श्रेष्ठता स्त्री के आर्थिक आत्मनिर्भर हो जाने पर वैवाहिक जीवन में पुरुष श्रेष्ठता समाप्त हो जायेगी । इसका सीधा अर्थ है कि रुढ़िवादी विचारधारा स्त्री का पुरुष के समकक्ष होना बर्दाश्त नहीं करती है । यह तो दूसरे के पर काट कर अपनी उड़ान को ऊंचा सिद्ध करने की कुंठा है। स्त्री की आत्मनिर्भरता पुरुष के अधिकार में दखल लगती है इसीलिए स्त्री को शिक्षा, समान अधिकार, चार दीवारी से बाहर निकलना, निजी पहचान बनाना , अपनी प्रतिभा क्षमता का प्रदर्शन आदि से स्त्री को वंचित रखने के दकियानूसी विचार को बल दे रहे हैं । मोहन भागवत की नीति ही समाज को वर्गों व लिंगों में बांट एक दूसरे का शोषण करने की है । लेकिन परिवर्तन प्रकृति व समाज का नियम है । पुरानी परम्पराओं व रुढ़ियों से नये और प्रगतिशील विचार की स्त्रियों ने अपने अस्तित्व व अधिकार के लिए पुरुष सत्ता से टकराव का साहस किया और आज वे पहले से ज्यादा स्वतंत्र, आत्मनिर्भर व अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम है , हालाँकि औरतों का छोटा सा हिस्सा ही पिछड़े व मध्य युगीन मूल्य मान्यताओं को छोड़ स्वतंत्र पहचान बनाने में जुटा है । नारी चेतना मंच की सभी शिक्षित महिलायें गरीब साधनहीन वर्ग की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उनकी लडकियों की शिक्षा का अभियान चलाती हैं । सरकारी योजना की सूचना व दिलाने में भी सहयोग करती है ताकि शिक्षा बीच में न रुके । आधी आबादी जब बहुतायत में शिक्षित व जागरुक होगी , सामाजिक आर्थिक स्थिति में बदलाब तभी संभव होगा । नारी चेतना को जगाते रहिये । नारियों को भी निजी कमजोरियों को चिन्हित कर उनसे बाहर निकलने का प्रयास करना होगा अन्यथा नारी ही नारी का शोषण करती रहेगी। अधिकार के लिए संघर्ष करते समय यह भी एहसास रहना चाहिए कि एक अधिकार अपने साथ अनेक कर्तव्य भी लेकर आता है। उनका निर्वहन भी उतना ही जरुरी है जितना अधिकार पाना। हमारा देश आज भी काफी हद तक जाति , क्षेत्र व लिंग में बंटा हुआ । स्वतंत्र इंसान बनने के लिए इन भेदों को मिटा कर सामूहिक विकास जरुरी है । सामूहिक विकास ही किसी समूह की शक्ति बनता है उसे सशक्त बनाता है ।
पुनः नारी चेतना मंच को 28 वें स्थापना दिवस की बधाई
(डॉ सुनीता त्यागी शासकीय वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय बिजनौर , उत्तर प्रदेश की अंग्रेजी विभाग की सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर हैं )