मनीष सिंह
रावण (नाभि में) उड़ता तीर लेकर धराशायी हो चुका था. श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा- जाओ भ्राता, रावण से शासन प्रशासन की शिक्षा लेकर आओ. लक्ष्मण गए और सिर के पास खड़े हो गए. रावण ने ज्ञान न दिया तो राम के समझाने पर वे पैरों के पास खड़े हुए, तब रावण ने ज्ञान देना शुरु किया. यह कथा आप वाल्मीकि रामायण में पढ़ चुके हैं.
अब आगे –
रावण ने कहा – ‘लक्ष्मण, जनता को व्यस्त रखना जरूरी है. व्यस्त न रखने पर वह उद्विग्न हो जाती है. विद्रोह की संभावना रहती है.’
‘तो उसे व्यस्त रखने के लिए क्या किया जाए महाराज’ – लक्ष्मण ने हाथ जोड़कर पूछा.
रावण बोला – ‘हे लक्ष्मण ! जनता को व्यस्त रखने के लिए रोजगार देना पड़ता है. रोज़गार देने के लिए उद्योग खोलने पड़ते हैं. उद्यमशील लोगो को ऋण, सुविधा और मदद देनी होती है लेकिन फिर भी आपके यहां निजी क्षेत्र विकसित न हो तो उद्यम सरकार को खोलने पड़ते हैं, इसे पीएसयू कहते हैं.
लक्ष्मण अधीर होकर बोले- ‘महाराज ! पीएसयू तो करप्शन और आलस का शिकार हो जाते हैं. लॉस मेकिंग होते हैं. देन गवर्नमेंट हैज नो बिजनेस टू डू बिजनेस.’
रावण ने कराह कर कहा – ‘हू सेज दैट लक्ष्मण ? गवर्नेस इज इटसेल्फ ए बिजनेस. राज्य को हर वह चीज करनी चाहिए जो जनता के हित में जरूरी है.’
‘और अगर हजार करोड़ का बिजनेस सौ पचास करोड़ के घाटे में हो, तो भी वर्थ है अगर दस हजार परिवारों को रोजगार दे रहा है. क्या कोई और तरीका है, जिसमें 100-50 पचास करोड़ गंवाकर आप दस हजार परिवार बिजी रख सकते हैं ?’
लक्ष्मण ने खखार कर गला साफ किया और बोले – ‘हां महाराज ! नाउ लिसन – आप उस पैसे से आईटी सेल खोलकर सबको नया इतिहास बता सकते हैं. फ़िल्म बना सकते हैं. मीडिया में बांटकर, विपक्षियों के विरुद्ध बहस प्लांट कर सकते हैं.
‘5 किलो चने और गेहूं बांट सकते हैं. खाते में भी 1000 रुपये डाल सकते हैं. कुछ मन्दिर बनवाकर और कुछ बनवाने का वादा करके सबको मन्दिर मस्जिद में व्यस्त कर सकते हैं.
‘असल में केवल दस बीस हजार करोड़ के व्यय से 135 करोड़ लोगों को व्यस्त रखा जा सकता है महाराज !’
रावण की आंखें चौड़ी होती जा रही थी. पूरे जीवन का ज्ञान वृथा हो चला था. उसे अंत समय में अब सत्य ज्ञान मिल रहा था. सोने की डेवलप्ड लंका बनाकर उसने कितना रेवेन्यू वेस्ट कर दिया था.
पर एक समस्या अब भी थी, जो उसके दिमाग मे टनटना रही थी – ‘दस बीस हजार करोड़ ? इतने पैसे कहां से मिलेंगे लक्ष्मण ? क्या इस पर विचार किया ?’
– ‘वेरी सिम्पल ..!! उन्हीं पीएसयू को बेचकर महाराज …!
लक्ष्मण मुस्कुराये.
जवाब सुनकर रावण के प्राण पखेरू उड़ गए.
- मनीष सिंह