अग्नि आलोक
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सुर्खियों में आया “सफेद सोना”..

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*तरुण कुमार सोनी*

खरगोन जिले को “सफेद सोने” का कटोरा कहा जाता है। सफेद सोना यानी कपास की पैदावार के लिये निमाड़ की आबोहवा काफ़ी मुफ़ीद है। यही वज़ह है कि यहां का मेहनतकश किसान अपना खून-पसीना बहाकर धरती से सफ़ेद सोना पैदा करता है। इस धरतीपुत्र का यह दुर्भाग्य ही रहा है कि उसे अपनी इस बेशक़ीमती उपज का कभी उचित दाम नहीं मिला। सरकारें आती-जाती रही लेकिन वो आज भी वहीं खड़ा है। उसके दिन कब बदलेंगें पता नहीं? लेकिन जिस तरह से इनदिनों उसकी इस उपज की चर्चा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर हो रही है उसनें यह साबित कर दिया है कि वो भले ही आज भी बदहाल हो, लेकिन उसकी बदौलत आज कई लोग रातोंरात आबाद हो गये हैं। यह भूमिका इस लिये “किसान” केंद्रित है क्योंकि “जैविक कपास” का उससे सीधा वास्ता है। भले ही उसे आज पता चला हो कि कपास की “जैविक” किस्म भी होती है। जैविक कपास के “फर्जीवाड़े” की खबरें सुर्खियों में आने के बाद “धरतीपुत्र” आश्चर्यचकित तो है ही साथ में अपने आपको ठगा भी महसूस कर रहा है। खैर…”अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत”।

जानकारी के मुताबिक कपास उत्पादक प्रदेशों में मध्यप्रदेश के खरगोन-बड़वानी जिलों ने प्रदेश को अव्वल स्थान देनें में अहम भूमिका अदा की है। एक मोटे अनुमान के तहत प्रदेश के जिनिंग-प्रेसिंग कारोबारियों के माध्यम से सालाना क़रीब 50 हजार गठानें दक्षिण भारत के ज़रिये विदेशों में एक्सपोर्ट होती है। कपास बीज उत्पादक कंपनियां बीटी ओर अन्य किस्म के अलावा कोई दूसरा बीज बाज़ार में नहीं उतारती। जैविक कपास की बात करें तो खरगोन जिले में उत्पादन नगण्य है। हालांकि जिला मुख्यालय स्थित कपास मंडी में जैविक कपास की नीलामी को लेकर अतिरिक्त शेड की व्यवस्था है। लेकिन मंडी रिकार्ड के मुताबिक़ आजतक जैविक कपास की आवक शून्य है। जबकि पिछले डेढ़ दशक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “जैविक कपास उत्पादन” को लेकर निमाड़ का खरगोन ओर बड़वानी जिला सुर्खियों में रहा है। 

*-जैविक कपास की कल्पना को ऐसे लगे पंख…*

“जैविक कपास का फर्जीवाड़ा” सामने आने के बाद चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। चर्चाओं के मुताबिक़ “जैविक कपास” उत्पादन की नींव तब रखी गई जब खरगोन जिले के कसरावद स्थित मैकाल फ़ाइबर्स में एक अंतर्राष्ट्रीय दल पहुंचा था। इस दल ने विदेशों में जैविक कपास की अपार संभावनाओं से अवगत कराया था। साथ ही इस दल ने जिले के विभिन्न गांवों में पहुंचकर दुभाषिये के माध्यम से किसानों से चर्चा कर जैविक पद्धति से कपास पैदाकर अच्छा मुनाफ़ा कमाने की बात कही थी। उस दौरान किसानों को गोरों की बातें बड़ी अज़ीब लगी थी। लेकिन मैकाल फ़ाइबर्स के एक छोटे से मुलाज़िम के शातिर दिमाग़ ने गोरों की बात को पकड़ लिया। बस यही वो समय था जब “जैविक कपास” की कल्पना को पंख लगे। विदेशी धरती पर जैविक कपास पहुंचाना सहज नहीं था। शातिर दिमाग़ मुलाज़िम ने इसपर काम करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में तालमैल बैठाकर इस मुलाज़िम ने साधारण कपास को मिलीभगत के ज़रिये “जैविक कपास सर्टिफाईड” का मार्का लगाकर छोटे स्तर पर एक्सपोर्ट करना शुरू किया। देखते-देखते यह छोटा सा मुलाज़िम उद्योगपति की श्रेणी में आ गया। छोटे से मुलाज़िम से लेकर उद्योगपति बनने तक के इस सफ़र में खरगोन के दो युवा इसकी प्रमुख ताक़त बने।

*_…अभी तो पिक्चर शुरू हुई है…_*

*तरुण कुमार सोनी*

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