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राजा भैया की कुंडा हवेली में BJP, SP क्यों हैं कतार में

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लखनऊ: सात बार के विधायक रहे रघुराज प्रताप सिंह, जिन्हें राजा भैया के नाम से जाना जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में हैं क्योंकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) दोनों ने राज्यसभा चुनाव में मदद के लिए कुंडा के इस कद्दावर नेता से संपर्क किया है.

राज्यसभा की इन 10 सीटों का फैसला मंगलवार को होगा, जिसमें बीजेपी ने आठ और सपा ने तीन उम्मीदवार उतारे हैं. हर एक उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए 37 प्रथम वरीयता वोटों की ज़रूरत है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा में दो विधायकों के साथ, राजा भैया का जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) या तो सपा को अपने तीसरे उम्मीदवार या भाजपा के आठवें उम्मीदवार को संसद के उच्च सदन में भेजने में मदद करने की स्थिति में है.

जबकि भाजपा सात सदस्यों को भेज पाएगा, उसके आठवें उम्मीदवार संजय सेठ को विपक्षी दलों के समर्थन की ज़रूरत है. 403-सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास 288 वोट हैं. सेठ को आठ अतिरिक्त वोट चाहिए होंगे, जिसका मतलब है कि केवल क्रॉस-वोटिंग ही उनकी जीत में मददगार साबित हो सकती है.

चूंकि सपा के पास 108 विधायक हैं, इसलिए पार्टी को अपने तीसरे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए तीन अतिरिक्त वोटों की ज़रूरत है. हालांकि, कांग्रेस के दो वोट उसके पक्ष में जाने की संभावना है, लेकिन अन्य वोटों के लिए सपा को बाहरी लोगों पर निर्भर रहना पड़ेगा. बसपा के एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह के सपा को वोट देने की संभावना नहीं है.

मंगलवार को सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने कुंडा के कद्दावर नेता से उनके आवास पर मुलाकात की और राज्यसभा चुनाव के लिए उनका समर्थन मांगा. जानकारी के मुताबिक, ‘बाहुबली’ ने टिप्पणी की थी कि उन्होंने सपा को 20 साल दिए हैं और यह उनके लिए सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी नहीं है.

एक दिन बाद, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने यूपी के सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौड़ के साथ कुंडा विधायक से उनके आवास पर मुलाकात की, जहां सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा चुनावों पर भी चर्चा हुई.

बातचीत की जानकारी रखने वाले जेडी(एल) के एक अंदरूनी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों पार्टियां समर्थन के लिए आगे बढ़ी हैं और लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहीं हैं.

सूत्र ने बताया कि पार्टी एनडीए के साथ गठबंधन के लिए उत्सुक है, लेकिन वे अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा के साथ गठबंधन की संभावना भी तलाश रही है.

जद (एल) के अंदरूनी सूत्र ने कहा कि सपा राजा भैया के लिए प्रतापगढ़ संसदीय सीट छोड़ने को तैयार है. इसने कहा, “हमारी पार्टी हमेशा समान विचारधारा वाले लोगों के साथ काम करना चाहती है और एनडीए हमारी पहली प्राथमिकता बनी हुई है. हालांकि, सपा भी हमारी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार है. हमारे अध्यक्ष जल्द ही फैसला लेंगे.”

सूत्रों ने बताया कि कुंडा के ताकतवर नेता कौशांबी में भी सीट तलाश रहे हैं.कौशांबी के पूर्व सांसद और जेडी (एल) नेता शैलेन्द्र कुमार ने बताया कि वे कौशांबी से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “मैं भरोसा दिला सकता हूं कि हम गठबंधन में लड़ेंगे.”1993 और 1996 में बीजेपी के समर्थन से और 2002, 2007 और 2012 में सपा के समर्थन से निर्दलीय विधायक चुने गए राजा भैया ने अपनी ओर से कोई भी स्पष्ट बयान नहीं दिया है.

राजा भैया और सपा का रिश्ता

राजा भैया के साथ सपा का तालमेल उस दुश्मनी से हटकर है जो 2022 के यूपी चुनाव में देखी गई थी क्योंकि विपक्षी दल ने दो दशकों के बाद कुंडा में अपना उम्मीदवार खड़ा किया था.

कुंडा में एक चुनावी रैली में अखिलेश ने “कुंडी बंद कर दो” नारे के साथ राजा भैया पर निशाना साधा और लोगों से “बदलाव के लिए वोट करने” की अपील की. इसके चलते राजा भैया ने घोषणा की कि वे समाजवादी पार्टी को सरकार नहीं बनाने देंगे.

2017 तक अखिलेश के राज्य मंत्रिमंडल के एक प्रभावशाली सदस्य, राजा भैया की सपा प्रमुख से अनबन हो गई, जिसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश ने कहा कि वे भविष्य में कुंडा के ताकतवर नेता के साथ नहीं जुड़ेंगे.

राजा भैया, जो हमेशा निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे हैं, ने 2022 में सातवीं बार जेडी (एल) के टिकट पर कुंडा से विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसे उन्होंने 2018 में बनाया था. पार्टी ने उस साल 18 उम्मीदवार खड़े किए थे.

यूपी चुनाव से पहले सपा के कुंडा उम्मीदवार गुलशन यादव के काफिले पर हमले के बाद वाकयुद्ध छिड़ गया, जिसके बाद अखिलेश ने ट्वीट किया कि कांच (खिड़की का शीशा) तोड़ने से उनका हौसला नहीं टूटेगा.

बाद में 1 मार्च, 2022 को, अखिलेश ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें एक युवक एक महिला मतदाता की ओर से बटन दबाता हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि, ट्वीट को तुरंत डिलीट कर लिया गया था क्योंकि राजा भैया ने पलटवार करते हुए कहा था कि वीडियो हरियाणा में 2019 के लोकसभा चुनाव का है.

जनवरी 2003 में मायावती सरकार द्वारा “आतंकवादी” घोषित किए जाने के बाद, राजा भैया, एक राजपूत, कुंडा के पूर्व शासक परिवार से आते हैं. प्रतापगढ़ जिले में जिसके अंतर्गत कुंडा आता है, वहां उनका बहुत प्रभाव है.

आपराधिक आरोपों का सामना करने के बावजूद, राजा भैया ने तीन भाजपा सरकारों और दो सपा सरकारों में मंत्रालयों में कार्य किया है.

2022 में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कुंडा के कद्दावर नेता ने कहा था कि हमेशा सरकार में रहना ज़रूरी नहीं है. उन्होंने कहा था, “मैं हर सरकार में मंत्री नहीं था. मैं मायावती राज में मंत्री नहीं था. मैं 1993 और 1996 में वहां नहीं था. इसलिए, ऐसा नहीं है…मुझे सत्ता पक्ष और विपक्ष में भी रहने का मौका मिला है.”

2002 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने उन पर उनकी सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया और उन्हें आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के तहत जेल में डाल दिया.

जानकारी के मुताबिक, कुंडा में उनकी हवेली पर छापेमारी में हथियारों के साथ-साथ 600 एकड़ में फैली झील से कंकाल भी बरामद हुए थे. राजा भैया ने आरोपों को सिरे से खारिज किया था.

2003 में मायावती सरकार गिरने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया और मुलायम सिंह यादव सरकार में मंत्री बनाया गया, 2007 में सत्ता में आने के बाद उन्हें फिर से हत्या के आरोप में मायावती ने जेल में डाल दिया.

2017 में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद ऐसी अटकलें थीं कि भाजपा के साथ संबंध टूट जाएंगे क्योंकि उन्हें मंत्री पद से दूर रखा गया था. हालांकि, राजा भैया ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि उनका प्रदर्शन कई क्षेत्रों में पिछली सरकारों से बेहतर है.

सपा के एक नेता ने कहा कि हालांकि, राजा भैया ने अपनी पार्टी बनाई है, लेकिन वे योगी आदित्यनाथ का समर्थन करते हैं और उनसे कई बार मिल चुके हैं. नेता ने दिप्रिंट को बताया, “भले ही वे सरकार में नहीं हों, लेकिन वे (राजा और भाजपा) एक-दूसरे का समर्थन करते हैं. वे कई बार योगी से मिल चुके हैं और क्योंकि वे एक राजपूत नेता हैं, इसलिए बीजेपी और राजा भैया एक-दूसरे की मदद करते हैं.”

‘कुंडा का गुंडा’

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह ने राजा भैया को उनके आपराधिक इतिहास के लिए ‘कुंडा का गुंडा’ कहा था. फिर भी 1997 में उन्होंने उन्हें मंत्री बना दिया था.

इसके बाद उन्होंने राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकारों में काम किया.

अगस्त 2003 में मुलायम ने विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही राजा भैया के खिलाफ पोटा के आरोप हटा दिए. बाद में उनकी रिहाई के बाद उन्होंने उन्हें कैबिनेट में शामिल कर लिया.

2012 में जब मुलायम के बेटे अखिलेश ने सरकार बनाई, तो राजा भैया को जेलों के साथ-साथ खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय भी दिए गए. हालांकि, उन्होंने प्रतापगढ़ के डीएसपी जिया-उल हक की हत्या की कथित साजिश में अपना नाम सामने आने के बाद इस्तीफा दे दिया, जिनकी 2 मार्च, 2013 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

जबकि सीबीआई ने 2013 में उन्हें क्लीन चिट दे दी थी, मारे गए डीएसपी की पत्नी ने इसे चुनौती दी थी और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2022 में आदेश को रद्द कर दिया था. सीबीआई अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मामले की दोबारा जांच कर रही है.

बीजेपी के एक नेता ने कहा कि राजा भैया को ‘शाही’ और ताकतवर व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और उन्हें इस टैग से लोकप्रियता मिलती है. भाजपा नेता ने कहा, “वे ऐसे व्यक्ति हैं जो हमेशा खबरों में रहते हैं. उनमें एक खास तरह का ग्लैमर है और जितना अधिक उन पर हमला किया जाता है, वो उतनी ही अधिक सुर्खियों में आते हैं. इसके अलावा, वे प्रतापगढ़ जिले के साथ-साथ कौशांबी के कुछ इलाकों में राजपूतों के बीच लोकप्रिय हैं.”

राजा भैया के कट्टर समर्थक उनके ‘जनता दरबार’ और उनके द्वारा हर साल आयोजित होने वाले वार्षिक सामुदायिक विवाह कार्यक्रम की गारंटी देते हैं. वे कहते हैं, वे ‘कुंडा का गौरव’ हैं.

खुद को बाहुबली नेता का समर्थक कहने वाले कुंडा के सुरेंद्र सिंह ने कहा, “हां, वे एक ताकतवर व्यक्ति है, लेकिन वो एक मसीहा भी हैं. जनता दरबार में जाति या पंथ के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता…विशेष रूप से अनुसूचित और पिछड़ी जाति के लोगों को त्वरित समाधान मिलता है.”

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