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वे गांधी, नेहरू और कांग्रेस से इतना भयभीत क्यों है?

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सुसंस्कृति परिहार

वे यानि कौन! उन्हें अब तो सब जानने पहचानने लगे हैं ,ये वही लोग हैं जिन्हें आज गोडसे वादी कहा जाता है।बड़ा नाज़ुक सा सवाल यह है कि वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मारकर, नेहरू को गए हुए 60 साल के बाद भी तथा कांग्रेस के एक दशक सत्ता से दूर रहने पर भी आज तक क्यों डरते हैं ?जबकि केन्द्र और बहुतेरे राज्यों में उन्हीं की सरकार है।इस सवाल का उत्तर एक साधारण व्यक्ति देते हुए कहेगा कि –क्योंकि उन्होंने गांधी की हत्या की है और गांधी की आत्मा आज भी हत्यारों को चैन से रहने नहीं देती जब तक उसका वे तर्पण नहीं करेंगे। अमूनन ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाने वाला एक सत्य यह है। वे यह मानते हैं कि हत्यारे हमेशा भयभीत रहते हैं, जब एक सच्चे संत को इस तरह मारते हैं तो हत्या मगरे पर से बोलती है।यह बात मनोविज्ञानी भी कहता है।

 

जहां तक नेहरू और कांग्रेस का सवाल है उससे इनका सैद्धांतिक मतभेद हैं। कांग्रेस यानि नेहरू ने उदारवादी समाजवादी आर्थिक सुधारों को लागू किया और भारत को औद्योगीकरण की नीति के लिए प्रतिबद्ध किया वे विशालकाय कारखानों को औद्योगिक तीर्थ मानते थे।जबकि उनके विरोध में खड़ी संघी विचार धारा देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की पक्षधर थी।जिन्ना की तरह संघ विभाजन का पक्षधर था। गांधी के नोआखोली में अनशन से उनकी घृणा गांधीजी की हत्या में साफ़ नज़र आती है। गांधी के जाने के बाद इस फासिस्ट विचारधारा का अनुमान था कि देश के नागरिक उनके स्पोर्ट् में मज़बूती से खड़े होंगे और वे नेहरू को कमज़ोर कर देंगे लेकिन इसका उल्टा ही असर हुआ। सरदार पटेल ने संघ पर बेन लगवाया और देश में शांति व्यवस्था कायम की। एक लंबे अर्से बाद काफी विरोध के बावजूद संघ को सांस्कृतिक संगठन के रुप में काम करने की अनुमति दी। शाखाओं के प्रदर्शन पर बराबर रोक लगी रही।

कहा जाता है कि दुष्ट पर विश्वास नहीं करना चाहिए वहीं हुआ उन्होंने शिक्षा के नाम पर पूरे देश में सरस्वती स्कूलों का जाल फैला दिया जिसमें बच्चों को हिंदू वाद का पाठ पढ़ाकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक सोच विकसित की।जिसका विस्तार हम आज आईएएस, आईपीएस लाबी से लेकर न्यायाधीश और अधिकारियों में बराबर महसूस कर रहे हैं।एक शिक्षक और पटवारी से गांव के ओर छोर तक यह संदेश पहुंचा।जिसकी परिणति अयोध्या बावरी मस्जिद ढांचा गिराए जाने और जय श्री राम के नारे में 1992में सामने आती है।इसके बाद आज के विश्वगुरु की कृपा से 2002 में नरसंहार होता है जिसका पुरुस्कार तत्कालीन गुजरात के कमांडर को मिलता है। वह उनके आशीष और झूठ से देश की सत्ता प्रमुख बन जाता है। 

आज वह गांधी नेहरू के खिलाफ नफ़रत के बीज फैला चुका है किंतु देश की अवाम अब नफ़रत की जगह मोहब्बत वाले की ओर आकृष्ट हो रही है।

कहने को तो अब गोडसे नहीं है किन्तु जिस विचारधारा से प्रेरित होकर गोडसे अपने 12वें प्रयास में सफल होता है उसके लोग आज देश की सत्ता पर काबिज हैं।जो लोग यह कहते हैं कि यह हत्या भारत पाक विभाजन में पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि से सम्बंधित है वह झूठ है क्योंकि गांधी जी को मारने की कोशिश तो बहुत पहले से शुरू थी।

मूलतः यह मुद्दा ही गांधी नेहरू और कांग्रेस से नफरत का कारण बना।1950में जब हमारा गांधी की विचारधारा को मजबूत करने वाला संविधान आया तब से वे तिरंगा ही नहीं बल्कि राष्ट्र गान से भी  घृणा करते रहे। लोगों द्वारा काफ़ी विरोध दर्ज कराने के बाद भगवा के साथ तिरंगा पिछले तीन साल से संघी नागपुर हाऊस पर फहराया जाने लगा

वे गांधी को सिर्फ इसलिए मारना चाहते थे क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव को मानते थे।वे जांत पांत के भेद को समाप्त करना चाहते थे।वे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना चाहते थे।वे नफरत के सख्त  खिलाफ थे उनकी इच्छा थी कि भारत-पाकिस्तान बंटवारा ना हो किंतु मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे ये दोनों संगठन 1925 में सिर्फ इसी मकसद से बने थे कि भारत को हिंदू राष्ट्र और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बनाया जाए। वो तो गांधी , नेहरू,पटेल, मौलाना आजाद जैसे असंख्य लोग थे जिन्होंने भारत की अपनी सांस्कृतिक पहचान जिसे गंगा जमुनी तहज़ीब कहा जाता है, को बचाने यह फैसला लिया जो जाना चाहे जा सकते हैं जो भारत में रहना चाहते हैं वे बेहिचक यहां रह सकते हैं। गांधी जी तो ये भी नहीं चाहते थे कोई मुसलमान भारत छोड़ कर जाए। संकीर्ण विचारधारा से लैस मुस्लिम लीग और संघ को इस बात से गहरा आघात लगा। वे तो ये मान बैठे थे कि एक एक मुसलमान पाकिस्तान खदेड़ दिया जायेगा।

इसलिए मुसलमानों को सम्पत्ति बांटने जैसे चुनावी शिगूफे छोड़े जाते हैं। हिजाब के नाम पर स्कूल बंद किए जाते हैं।अतिक्रमण का चक्र मुस्लिम बस्तियों पर चलता है। दिल्ली जैसा दंगा होता है।इससे पहले लव-जिहाद,गौकशी और गौमांस के नाम पर की लोगों को मारा गया। चूड़ी बेचने वाले को बेवजह मारा गया,एक जैन परिवार के बुजुर्ग जो अपना नाम मोहम्मद बता दिए उन्हें कूट कूट कर मार दिया, कभी सांवरिया के नाम पर इनका हाथ ठेला तोड़कर मारपीट की गई। ऐसे कई युवक सालों में जेल से जब प्रौढ़ होकर बेदाग निकले ।भोपाल के कथित सिमी अपराधियों को जिस तरह सामूहिक रूप से मारा गया वह कलंक है।उन पर कोई जुर्म सिद्ध नहीं हुआ था।एक जेएनयू का मुस्लिम बेटा  वर्षों से जमानत को तरस रहा है।कुल मिलाकर ये फेहरिस्त डरावनी है। हां  चुनावी दौर में संघ प्रमुख सबका डीएनए एक का बिगुल ज़रुर बजा देते हैं पर घृणा का विस्तार होता जाता है।

इनका पक्ष लेने वाले गांधी, नेहरू, कांग्रेस इसलिए इनके सबसे बड़े शत्रु है मौके बेमौके इसलिए इन्हें कोसते रहते हैं। उन्हें डर लगता है कि गांधी, नेहरू और कांग्रेस बार बार ज़िंदा कैसे हो जाती है?

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