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अडानी के बचाव में क्यों खड़े हुए शरद पवार

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महेंद्र मिश्र

अगर कोई संविधान और कानून की धज्जियां उड़ा कर इस काम को करता है। या फिर सरकार और उसमें बैठे लोगों के साथ रिश्तों की डोरी पर चढ़कर इसको अंजाम देता है। या वह विदेश से कालेधन की हेराफेरी के रास्ते अपनी संपत्ति में इजाफा करता है और इस प्रक्रिया में सेंसेक्स से लेकर देश की अर्थव्यवस्था तक मैनिपुलेट करता है। और अंतत: भ्रष्टाचार की सारी सीमाओं को न केवल लांघने का काम करता है बल्कि अपने निहित स्वार्थों में देश की संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी की तैसी कर देता है।

एनसीपी मुखिया शरद पवार भी अडानी के बचाव में खड़े हो गए हैं। अडानी के टेलीविजन एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि किसी बिजनेसमैन को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। दूसरे पूंजीपतियों की तरह अडानी का भी देश के विकास में योगदान है। इस सिलसिले में उन्होंने बिजली क्षेत्र में अडानी समूह के काम समेत कुछ उदाहरण भी दिए हैं। पूंजीपति, व्यवसायी, किसान, मजदूर, महिला या फिर हो कोई मेहतनकश नागरिक हर किसी का देश के विकास में योगदान होता है। निश्चित तौर पर उसका संज्ञान भी लिया ही जाना चाहिए। और जरूरत के मुताबिक उसको सम्मान और प्रतिष्ठा भी मिलनी चाहिए। लेकिन उसकी शर्त क्या होगी?

अगर कोई संविधान और कानून की धज्जियां उड़ा कर इस काम को करता है। या फिर सरकार और उसमें बैठे लोगों के साथ रिश्तों की डोरी पर चढ़कर इसको अंजाम देता है। या वह विदेश से कालेधन की हेराफेरी के रास्ते अपनी संपत्ति में इजाफा करता है और इस प्रक्रिया में सेंसेक्स से लेकर देश की अर्थव्यवस्था तक को मैनिपुलेट करता है। और अंतत: भ्रष्टाचार की सारी सीमाओं को न केवल लांघने का काम करता है बल्कि अपने निहित स्वार्थों में देश की संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी की तैसी कर देता है। जिससे न केवल देश के सामान्य नागरिकों का करोड़ों करोड़ रुपये डूब जाता है बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था हिचकोले खाने लगती है। और अंत में इसका नतीजा यह होता है कि देश की साख को बट्टा लगता है। और निवेश की रही-सही संभावनाएं भी खत्म हो जाती हैं।

ऐसे हालात में क्या इन सारे मसलों से जुड़े शख्स के बारे में, उसके व्यवसाय के बारे में या फिर उसकी इन कारस्तानियों के बारे में बात नहीं होनी चाहिए? क्या देश की संसद को इतने बड़े मसले पर मौन रहना चाहिए? उसको बहस नहीं करनी चाहिए? या फिर जो सच्चाई है वह जनता के सामने नहीं आनी चाहिए? शरद पवार की मानें तो इस मसले पर जेपीसी जांच की जरूरत नहीं है। पवार साहब देश की संसद अगर इस तरह के बड़े मसलों पर नहीं विचार करेगी तो फिर वह करेगी क्या? आप कह रहे हैं कि इस मामले को न्यायालय से हल कराया जाना चाहिए। संसद में जो प्रतिनिधि चुन कर आए हैं अपनी बुनियादी जिम्मेदारी निभाने की जगह अपने कंधे का बोझ किसी और के सिर डाल देंगे तो उससे आखिर होगा क्या?

संसद की जो थोड़ी-बहुत प्रासंगिकता है क्या वह भी सवालों के घेरे में नहीं आ जाएगी? वैसे भी अमृत काल में संसद में अब किसी विधेयक पर बहस तो होती नहीं। न ही उन्हें विचार-विमर्श के लिए स्टैंडिंग कमेटियों के पास भेजा जाता है। स्पीकर और चेयरमैन की कृपा से आंख मूंद कर ध्वनि मत से उन्हें पारित करा लिया जाता है। संसद कोई सरकार का फरमान सुनने के लिए तो नहीं बनी है। न ही विपक्ष ने मौनी बाबा से मंत्र ले रखा है। ऐसे में देश में होने वाले जायज-नाजायज मसलों पर विपक्ष अगर बोलेगा नहीं होगा तो वह करेगा क्या? हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह न केवल उसके जिंदा रहने की पूर्व शर्त है बल्कि उसके बुनियादी कर्तव्यों का हिस्सा भी है। जनता ने उसे भेजा ही इसी काम के लिए है। 

लेकिन विपक्ष में रहते हुए भी शरद पवार यह जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि पूरा विपक्ष अडानी पर मौन रहे। अंबानी के बारे में कुछ नहीं बोले। देश का भले ही बंटाधार हो जाए लेकिन वह विपक्ष की चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। लेकिन अडानी पर पवार की इस मेहरबानी का राज कुछ और है। दरअसल अडानी केवल पीएम मोदी के मित्र नहीं हैं। विपक्ष के कई और घोड़े भी उनकी रसद पर पलते हैं। शरद पवार भी उनमें से एक हैं। अनायास नहीं उन्हें कारपोरेट का सबसे चहेता चेहरा माना जाता है। एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। जिसमें पवार के साथ अडानी की तस्वीर है। यह तस्वीर पवार के घर की है या अडानी के बंगले की या फिर किसी और जगह की बता पाना मुश्किल है। इसी दौर में ली गयी है या फिर इसके पहले की किसी मुलाकात की है। यह भी बता पाना मुश्किल है। लेकिन इससे यह बात ज़रूर साबित होती है कि दोनों के बीच रिश्ते बेहद गहरे हैं। बातें तो यहां तक की जा रही हैं कि अडानी को शुरुआती जमीन पवार ने दी और उन्हें रनवे पर खड़ा किया बाद में विकास के आसमान में पहुंचाने का काम उन्हें मोदी ने किया। 

इसमें अडानी के साथ दोस्ती के अलावा एक और फैक्टर है जिसने रिश्ते के इस फेवीकोली जोड़ को एक नई ऊंचाई दी है। वह है पीएम मोदी के साथ इस मराठा की दोस्ती। पूरा देश जानता है कि पवार और मोदी में गहरी यारी है। और यह याराना बेहद पुराना है। एक दौर में जब विपक्ष खुलेआम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था तो पवार साहब मोदी के साथ मिलकर उनसे अपनी दोस्ती की पींगे बढ़ा रहे थे। और यह पुरानी दोस्ती इस मौजूदा दौर में भी बनी हुई है जब पूरा विपक्ष अडानी के मसले पर पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट है। 19 पार्टियों का गठबंधन एक सुर में न केवल जेपीसी की मांग कर रहा है बल्कि इस घोटाले से देश को होने वाले नुकसान के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है। लेकिन पवार साहब हैं कि उसमें पलीता लगाने के किसी मौके को नहीं छोड़ रहे हैं।

पहले उन्होंने सावरकर के मसले पर राहुल के रुख से एतराज जता कर विपक्ष को दो फाड़ करने की कोशिश की। एकबारगी इस मसले को वह बंद दरवाजे के भीतर होने वाली विपक्ष की बैठकों में भी हल कर सकते थे। इसके लिए उन्हें सार्वजनिक तौर पर कोई बयान देने की जरूरत नहीं थी। लेकिन उन्होंने न केवल इसको मुद्दा बनाया बल्कि इसके जरिये विपक्ष को भी रक्षात्मक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। जब वह मसला हल हो गया तो अब उन्होंने सीधे अडानी के पक्ष में अपना रुख दिखाकर एक बार फिर विपक्ष की मजबूत एकता में दरार पैदा करने की कोशिश की है। 

बहरहाल इस मसले पर राहुल गांधी अपने रुख पर अडिग हैं। और वह किसी भी हालत में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने बाकायदा ट्वीट कर अडानी के खिलाफ फिर से हमला बोला है और पूछा है कि आखिरकार अडानी समूह को मिले 20 हजार करोड़ रुपये किसके हैं। इसके साथ ही अडानी के साथ रिश्तों का ग्राफ भी शेयर किया है जिनमें कई नामचीन हस्तियां शामिल हैं।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)

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