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सोलापुर में ग्रामीणों के बैलेट पेपर से वोटिंग की अनोखी पहल को प्रशासन ने क्यों रोक दिया?

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शायद भारत ही नहीं विश्व के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में यह अनोखी पहल पहली बार होने जा रही थी, जिसमें मतदाता अपने मतों की गणना और पारदर्शिता के लिए स्वंय आगे आये थे। इसके लिए उन्होंने अपने खर्चे पर मतदान प्रकिया से संबंधित सभी औपचारिकताओं को पूरा किया था। 

इसके लिए गांव के हर मतदाता से चंदा लेकर पंडाल, कुर्सियों, मतपेटी सहित बैलट पेपर और उसमें हर मतदाता का नाम और चुनाव चिन्ह तक अंकित किया गया था। यह पहल महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मालशिरस विधानसभा क्षेत्र के एक गांव मार्कडवाड़ी में मंगलवार 3 दिसंबर 2024 को संपन्न होना था।  

लेकिन खबर है कि मालशिरस एसडीएम ने सोमवार को ही कुछ स्थानीय लोगों के द्वारा “पुनर्मतदान” की योजना के मद्देनजर किसी प्रकार के झड़प होने के अंदेशे का हवाला देते हुए कानून-व्यवस्था खराब होने से बचने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 के तहत 2 से 5 दिसंबर तक क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू कर दी थी।

इसके साथ ही कल रात से ही प्रशासन की ओर से गांव में भारी पुलिस सुरक्षा बल की तैनाती कर दी गई थी, क्योंकि स्थानीय गांव वालों ने हालिया विधानसभा चुनाव में गांव में पड़े वोटों को देखकर ईवीएम पर संदेह जताया था और जिला प्रशासन से एक बार फिर से बैलट पेपर से “पुनर्मतदान” कराने की मांग की थी, जिसे प्रशासन ने ठुकरा दिया था।

सोलापुर जिले के मालशिरस विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले मार्कडवाड़ी गांव के निवासियों की ओर से बैनर लगाकर घोषणा कर दी गई थी कि 3 दिसंबर को गांव में “पुनर्मतदान” कराया जाएगा। इस गांव में पारंपरिक तौर पर महाविकास अघाड़ी के घटक दल एनसीपी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट मिलते आये हैं। 

हालांकि 2024 विधानसभा चुनाव में भी इस विधानसभा सीट से एनसीपी उम्मीदवार, उत्तमराव जानकर को ही जीत हासिल हुई है, लेकिन इस गांव से बीजेपी में राम सतपुते को बहुमत हासिल हुआ है। चुनाव आयोग की मतगणना से अधिकांश ग्रामीण सहमत नहीं थे, और उनका मानना था कि बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीणों का मत उत्तमराव जानकर के पक्ष में गया था।

मार्कडवाड़ी के निवासियों का दावा है कि उनके गांव में सतपुते के मुकाबले रामकर को कम वोट मिले, जो कहीं से भी संभव नहीं है। स्थानीय ग्रामीण रंजीत मार्कड के दावे के मुताबिक मतदान के दिन गांव में 2,000 मतदाता थे और उनमें से 1,900 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

मार्कड के मुताबिक, “गांव ने पहले भी जानकर के पक्ष में वोट किया है, लेकिन इस बार ईवीएम के जरिए वोटों की गिनती के अनुसार जानकर को मात्र 843 वोट हासिल हुए, जबकि भाजपा उम्मीदवार सतपुते को 1,003 वोट प्राप्त हो गये।

यह कत्तई संभव नहीं है और हमें ईवीएम के इन नंबरों पर भरोसा नहीं है, इसलिए हमने बैलेट पेपर के जरिए पुनर्मतदान कराने का फैसला किया।

न्यूज़ चैनल, टीवी 9 मराठी के मुताबिक, इस गांव से जानकर को 2014 विधानसभा से ही भारी वोट प्राप्त होते रहे हैं। 2014 विधानसभा चुनाव में उन्हें 979 वोट जबकि विपक्ष को 294 वोट मिले।

2019 विधानसभा चुनाव में 1,346 वोट जबकि विपक्षी उम्मीदवार को 300 और 2024 लोकसभा चुनाव में 1,021 मत और मुख्य विपक्षी उम्मीदवार को मात्र 466 वोट प्राप्त हुए थे।

लेकिन इस बार के 2024 विधानसभा चुनाव में जानकर को मात्र 843 वोट प्राप्त हुए, जबकि भाजपा उम्मीवार को 1,003 मत प्राप्त हुए, जो कि हजम नहीं हो रही।

सूत्रों के अनुसार, इसी प्रकार एक अन्य ग्रामीण का कहना था कि ईवीएम के नतीजे संदिग्ध हैं और ग्रामीणों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मतपत्रों के माध्यम से पुनर्मतदान के लिए जिला प्रशासन से संपर्क भी किया था, लेकिन उनके इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।

मंगलवार की सुबह मार्कडवाड़ी गांव के स्थानीय लोगों के एक समूह ने मतपत्रों के उपयोग से “पुनर्मतदान” की व्यवस्था की थी।

जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया के जरिये पहले महाराष्ट्र और कल राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची, यह खबर तेजी से सुर्खियां बन गई।  महाराष्ट्र विधान सभा के चुनाव परिणाम भी पूरे देश को मथ रहे हैं, क्योंकि भाजपा और तमाम एग्जिट पोल सहित शायद ही किसी को महायुति को इतने बड़े पैमाने पर जीत को लेकर यकीन रहा हो। 

महाराष्ट्र चुनावों में, महायुति ने राज्य की 288 सीटों में से 230 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जिसमें अकेले भाजपा 132 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही, जबकि गठबंधन की सहयोगी शिवसेना 57 और अजित पवार की एनसीपी के खाते में 41 सीटें आई हैं।

वहीं दूसरी ओर, लोकसभा में बंपर जीत के 5 महीने के भीतर महाविकास अघाड़ी को जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा है, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी (एसपी) से मिलकर बनी महा विकास अघाड़ी को मात्र 46 सीटें ही प्राप्त हो पाई थीं।

ऐसा जान पड़ता है कि महाराष्ट्र प्रशासन और इंटेलिजेंस इस पूरे घटनाक्रम से बुरी तरह से घबरा गया है, और उसने ग्रामीणों की इस कवायद के बारे में संज्ञान में लेते हुए तुरत-फुरत निषेधाज्ञा लागू करने का फैसला ले लिया। 

नतीजतन आज जहां इस गांव में बड़े धूमधाम के साथ ग्रामीण स्वंय की पहलकदमी और खर्चे पर अपने गुप्त मदतान के माध्यम से बैलट पेपर के जरिये वोट करने जा रहे थे, उसे अचानक से रोक दिया गया है।  

इससे पहले, वेब पोर्टल, न्यूज़ ड्रम के मुताबिक मार्कडवाड़ी गांव के उत्तम जानकर ने उनके संवाददाता को बताया था कि, “जिला प्रशासन ने गांव में भारी पुलिस बंदोबस्त तैनात किया है। पुलिस ने गांव में सड़कें बंद कर दी हैं, और चेतावनी जारी की है कि जो इस प्रकिया में भाग लेगा उसके खिलाफ केस दर्ज किए जाएंगे और मतदान सामग्री जब्त कर ली जाएगी। 

लेकिन उनका कहना था कि यदि एक बार सारे ग्रामीण यहां एकत्र हो जाते हैं, तो पुनर्मतदान की प्रकिया शुरू हो जाएगी, क्योंकि ग्रामीण मतदान में भाग लेने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।”

उधर पुलिस उपाधीक्षक (मालशिराज संभाग) नारायण शिरगावकर के मुताबिक, गांव में कानून-व्यवस्था की किसी भी स्थिति से बचने के लिए पर्याप्त सुरक्षा बल को तैनात कर दिया गया है।

इस एक गांव के लोगों के द्वारा बैलट पेपर के माध्यम से mock-polling कर अपने गांव की सही तस्वीर जानने का प्रयास इतना संगीन हो गया कि आनन-फानन में महाराष्ट्र प्रशासन को निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ गई और गांव वालों को स्व-परीक्षण से दूर रहने की हिदायत देनी पड़ रही है?

यह निहायत ही शोचनीय और भारतीय लोकतंत्र के लिए विचारणीय प्रश्न है। क्या केंद्रीय चुनाव आयोग और मौजूदा निजाम को एक गांव से उठी इस आवाज से वास्तविक खतरा नजर आ रहा है, जो उसे मौजूदा संसदीय विपक्ष से बिल्कुल भी महसूस नहीं होता?

क्या इस बात का डर तो नहीं है कि मार्कडवाड़ी गांव से निकली एक चिंगारी उनके बने-बनाये आशियाने को ख़ाक करने की ताकत रखती है? क्या कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) वाली महाविकास अघाड़ी संविधान के इस मूल (हम भारत के लोग) की आवाज को प्रतिध्वनित करने की काबिलियत रखते हैं, या जनता को अपने मूलभूत अधिकारों के लिए स्वंय खड़ा होना होगा?  

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