पटना/पूर्णिया : विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु गांव-ज्वार में बोली जाने वाली आम भाषा को साहित्य में पिरोने और सृजन कर रेणु ने आंचलिक साहित्य की जिस नई विधा का इजाद किया, आज दुनिया उसकी दीवानी है। फणीश्वर नाथ रेणु अपनी कालजयी रचना मैला आंचल को लेकर विख्यात रहे हैं। इसके अलावा भी उन्होंने कई रचनाएं की। मगर यहां बात साहित्य की नहीं बल्कि उनके जेल से जुड़े अनुभवों की होगी। अपने जीवन काल में रेणु ने दो बार जेल यात्रा की पहली बार 1942 में और दूसरी बार 1974 में।
जीवनकाल में दो बार जेल गए फणीश्वर नाथ रेणु
साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु का स्मृति संसार काफी समृद्ध था। काफी रोचक और तथ्यात्मक अंदाज में चीजों को परोसते थे। अपने जेल के अनुभवों के बारे में रेणु ने काफी विस्तार से संपूर्ण क्रांति के नेता जयप्रकाश नारायण को बताया। 1974 में संपूर्ण क्रांति में भागीदारी के लिए फारबिसगंज में जन प्रदर्शन संगठित कर रहे थे। इसके बाद अररिया में उनकी गिरफ्तारी हो गई। काफी जद्दोजहद के बाद पूर्णिया जेल भेजा गया, जहां उन्होंने अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद जेल से ही जयप्रकाश नारायण को विस्तृत चिट्ठी लिखकर 1942 और 1974 के बीच जेल-व्यवस्था में बढ़ी दुर्दशा को बताए। फिर जेपी ने उनको जवाब भी दिया। जिसमें भविष्य के लिए आशान्वित किया।
पूर्णिया डीएम को ‘रोचक तथ्य’ लगा रेणु का जेल जाना
दरअसल, पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार 6 अप्रैल को जेल का जायजा लेने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने ट्विटर पर इसके फोटो भी शेयर किए। इसमें एक रजिस्टर का पेज भी है, जिसपर 702 नंबर पर फणीश्वर नाथ रेणु का नाम है। हो सकता है कि राहुल कुमार को ये बहुत इंट्रेस्टिंग फैक्ट लगा हो, मगर जो भी पूर्णिया और रेणु को जानते हैं वो इस बात से वाकिफ हैं कि संपूर्ण क्रांति के दौरान फणीश्वर नाथ रेणु पूर्णिया के जेल में बंद थे। पूर्णिया डीएम को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि फिर से कोई कैदी ये न कह दे कि ‘शायद नरक ऐसा ही होगा’।
गिरफ्तारी से पहले फारबिसगंज में क्या-क्या हुआ
फणीश्वर नाथ रेणु ने पूर्णिया जेल से संपूर्ण क्रांति के नेता जयप्रकाश नारायण को चिट्ठी लिखी थी। ये पत्र और जयप्रकाश नारायण का जवाब तब के प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ‘दिनमान’ में 25 अगस्त 1974 को छपा था, जिसके बाद पूरे देश की जानकारी में आया। रेणु जी 7 जुलाई से अपने गांव (औराही हिंगना) में थे और आंदोलन (संपूर्ण क्रांति) के अगले चरण की तैयारी कर रहे थे। 1 अगस्त को फारबिसगंज जनसंघर्ष समिति के आह्वान पर सामूहिक उपवास किया गया। इसके बाद इलाके में अभूतपूर्व बाढ़ आ गई। फिर योजना बनी कि छात्र और जनसंघर्ष समिति के सदस्य आंदोलन के साथ ही राहत का भी काम करें। प्लान के मुताबिक सबकुछ होता रहा।
संपूर्ण क्रांति आंदोलन के कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त को ‘अंग्रेजों, भारत छोडो आंदोलन’ की जयंती पर एक विशाल जुलूस का आयोजन किया गया। इसमें करीब ढाई हजार प्रदर्शनकारी शामिल हुए। जब रेणुजी इस जुलूस को लेकर प्रखंड विकास कार्यालय की ओर अपनी मांगों का ज्ञापन देने जा रहे थे, तभी सीताधर पुल पर स्थानीय दारोगा और इंस्पेक्टर केंद्रीय रिजर्व पुलिस की टुकड़ी के साथ इस तरह खड़े थे, मानो प्रदर्शनकारी स्त्री-पुरुष पुल तोड़ने या उड़ाने जा रहे हों। पुल के पास पहुंचते ही लाठीचार्ज कर दिया गया।
रेणु और दारोगा में हुई जमकर बहसबाजी
पत्र में रेणुजी आगे लिखते हैं कि ‘हमने आगे बढ़कर पुलिसवालों को रोका और कहा, आप यह क्या कर रहे हैं? लाठी चार्ज क्यों करवा रहे हैं?’ फिर दारोगा ने मुझसे कहा कि ‘जुलूस यहां से आगे नहीं बढ़ेगा।’ ‘आप हमें बीडीओ से मिलने नहीं देंगे? आप देख नहीं रहे हैं कि जुलूस में दर्जनों बच्चे हैं, बुजुर्ग हैं। इनसे आपको क्या खतरा है? ये सभी बाढ़ पीड़ित हैं और इन्हें बीडीओ से फ़रियाद करनी है।’ पुलिस दारोगा ने कहा, ‘आपको नहीं मालूम कि धारा 144 लागू है?’ ‘मालूम है। और आपको यह नहीं मालूम कि सारा इलाका बाढ़ से पीड़ित है? हम तो जुलूस लेकर आगे बढ़ेंगे, आप लाठी चलाएं या गोली।’
‘महंगाई-भ्रष्टाचार को कोई भी मिटा नहीं सकता’
इसके बाद फणीश्वर नाथ रेणुजी ने लिखा कि ‘हम आगे बढ़े। करीब तीस-चालीस मिनट तक गुत्थमगुत्थी और घेरघार होता रह। अंतत: वे हमें रोकने में असमर्थ रहे। हम जब ब्लॉक आफिस पहुंचे तो वहां पहले से ही मेन गेट पर सीआरपीएफ के जवान तैनात थे। फिर वही रस्साकशी शुरू हुई। अंत में मैं अन्य छह साथियों (लालचंद साहनी, सत्यनारायण लाल दास, शिव कुमार नेता, जयनंदन ठाकुर, रत्नेश्वर लाल दास और रामदेव सिंह) के साथ अंदर बीडीओ के दफ्तर में पहुंचा। हमारे साथियों ने कार्यालय में जनता का ताला लटकाया। हमने बीडीओ से कहा कि बाढ़ से सारा इलाका तबाह है और आप सिर्फ ‘लॉ एंड ऑर्डर’ मेंटेन कर रहे हैं? हमने अपनी मांग उनके सामने रखी तो वो बोले कि आप लोग मिल कर खाली कांग्रेस को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। आप यह जान लें कि महंगाई और भ्रष्टाचार को कोई भी पार्टी और कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, नहीं मिटा सकता।’ ‘हमने उनसे बात करना फिजूल समझा और हमने एलान किया कि हम आपका कोई भी काम नहीं चलने देंगे और हम अपने साथियों सहित धरना पर बैठ गए। पुलिस दारोगा ने आगे बढ़कर कहा, हमने आप लोगों को गिरफ्तार किया।’
‘हम गिरफ्तार हो गए। मगर बाहर प्रदर्शनकारी प्रखंड के मुख्य द्वार को घेर कर खड़े रहे, जिसमें सात साल के बच्चे और पचहत्तर साल की बूढ़ी औरत भी थी। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे, ‘हमारे नेताओं को रिहा करो या हमें भी गिरफ्तार करो।’ पुलिस ने उन्हें खदेड़ने की बहुत कोशिश कि मगर वे अडिग रहे। अंतत: पुलिस ने 205 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जिसमें 27 औरतें भी (गोद में बच्चे लेकर) थीं। एक ट्रक, एक बस और एक जीप में भरकर हमें फारबिसगंज थाना ले गए… हमने अपने कान से बिहार पुलिस के जवानों को आपस में बात करते सुना, ‘यह तो जुल्म है। हमें तीन सौ, ढाई सौ महीना देंगे ये, चावल तीन रुपये किलो है। ये लड़के ठीक ही तो कर रहे हैं। अफसर लोग चलावें इन पर लाठी, हमसे तो यह पाप नहीं होगा।’
9 अगस्त 1974 को शुरू हुई रेणुजी की जेल यात्रा
रेणुजी और अन्य आंदोलनकारी नौ अगस्त को दिन में करीब ढाई बजे गिरफ्तार किए गए। वहां से अररिया 9 बजे रात को पहुंचाए गए। लेकिन अररिया के जेलर ने इन लोगों को लेने से इनकार कर दिया। क्योंकि इतने लोगों को गिरफ्तारी में रखने की जगह नहीं थी। इसके बाद इन सबको पूरी रात खुले में पुलिस क्लब के भीगे मैदान में घेर कर रखा गया। पुलिस ने खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं की। बल्कि सभी लोगों को सीआरपीएफ के घेरे में छोड़कर चले गए। तब सबने रात के डेढ़ बजे फैसला किया कि एसडीएम के घर पहुंचकर प्रदर्शन किया जाए। इस पर इन्हें फिर घेरा गया। भोजन और पानी की मांग की गई। लेकिन कोई इंतजाम नहीं हुआ। तीन बजे रात में अररिया के एसडीओ और सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट दल-बल सहित पहुंचे।
रेणुजी समेत 14 लोगों को अलग किया। बाकी लोगों को जबरदस्ती बसों में धकेल कर फारबिसगंज भेज दिया। इसके बाद ये अधिकारीगण फिर गायब हो गए। रेणुजी और दूसरों को रात भर वहीं बैठाए रखा गया। सुबह नारेबाजी करने पर एक पुलिस दारोगा आकर बोला कि इन सभी लोगों को तुरंत पूर्णिया भेजा जा रहा है। लेकिन 11 बजे तक अधिकारीगण फिर गायब रहे। अपराह्न 1 बजे सबका वारंट तैयार करा दिया गया और चलने को कहा। मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किए बिना वारंट पर दस्तखत कराने के एतराज की कोई सुनवाई नहीं हुई। सबको पकड़ कर खुले ट्रक में चढ़ाया गया। सभी 10 अगस्त को अपराह्न 4 बजे पूर्णिया जेल पहुंचे। रेणुजी समेत सभी पर चार-चार वारंट और दस-दस दफाएं लगाई गई थीं।
रेणु की चिट्ठी में जेल की आंखों देखी
रेणु जी ने जेपी को चिट्ठी के अंतिम पैरा में लिखा कि ‘मेरा स्वास्थ्य ठीक ही है। यूं, पिछले एक सप्ताह से मेरा पेप्टिक दर्द का दौर शुरू हुआ है। फिर भी मैं मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हूं। कुछ दिन पहले जुगनू ने मुझसे कहा था कि गुलाम भारत के जेल और स्वतंत्र भारत के जेल में काफी अंतर है। सचमुच पूर्णिया जेल मौजूदा भारत का असली नमूना है, जिसमें आदमी भी जानवर बन जाए। एक हजार एक सौ बासठ कैदियों में शायद एक भी व्यक्ति स्वस्थ नहीं है। शायद नरक ऐसा ही होगा…1942 और 1974 में इतना अंतर?’
10 अगस्त को फारबिसगंज बाजार पूरी तरह बंद रहा। नरपतगंज प्रखंड ऑफिस में तालाबंदी हुई। फारबिसगंज में दो छात्र नेताओं मोहन यादव और अशोक दास को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद आंदोलनकारियों ने ये फैसला लिया कि पुलिसिया जुल्म के खिलाफ 13 अगस्त को फारबिसगंज में आठ चौराहों पर बारह घंटे का अनशन किया जाएगा। 15 अगस्त को काला दिवस मनाने का भी निर्णय हुआ।
जयप्रकाश ने रेणु को पत्र के जरिए भेजा जवाब
जयप्रकाश जी ने भी तत्काल 14 अगस्त को रेणु जी को उत्तर लिखा ‘पत्र पढ़कर बड़ा उत्साहित और भविष्य के लिए आशान्वित हुआ। आपके पत्र से जहां एक ओर ये प्रकट होता है कि ये शासन कितना नीचे उतर सकता है, वहां दूसरी ओर ये सिद्ध होता है कि जहां भी जनता को सही नेतृत्व मिलता है, वहां वो कितना ऊंचा उठ सकती है और तब वो क्या नहीं कर सकती है। आपके पत्र से एक बात और प्रकट होती है कि अगर शासन के कुछ अधिकारी जैसे फारबिसगंज के बीडीओ शासन की भ्रष्ट नीतियों के कट्टर समर्थक बने हुए हैं तो दूसरी ओर पुलिस के सिपाही और अन्य गरीब तबके के अधिकारी हृदय से इस क्रांतिकारी संघर्ष के साथ हैं। क्योंकि वे इसमें अपनी भी मुक्ति देखते हैं। इनमें से कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो मारपीट और बर्बरता के अन्य काम कर डालते हैं, परंतु हमारा विश्वास है कि सरकारी क्षेत्र का गरीब वर्ग दिल से हम लोगों के साथ है। आज भले ही उन्हें अपने पेट के लिए गुलामी करनी पड़ती हो।’
रेणुजी को पूर्णिया जेल की दुर्दशा मथती रही
काफी विरोध प्रदर्शन के बाद रेणुजी जेल से बाहर आ गए। मगर रेणुजी को पूर्णिया जेल की दुर्दशा मथती रही। जेल से बाहर आने पर रेणु जी ने कहा कि, ‘जेल जाने के बाद से ऐसा मालूम होता है कि मेरी उम्र 25 साल कम हो गई है। अफसोस होता है कि बहुत पहले ही जेल क्यों नहीं गया। शायद तब मेरा लेखक और जीवंत होता।’