सिंबल देना, मतलब सीट पर प्रत्याशी को नामांकन के लिए पार्टी की ओर से अनुमति देना। महागठबंधन अबतक बिहार की 40 लोकसभा सीटों को अपने घटक दलों के अंदर बांट नहीं सका है। एक-दो दिन में बंटवारे की बात कही जा रही है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की ओर से कई उम्मीदवारों को सिंबल मिलने की भी सूचना सामने आ चुकी है।
बिहार में महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारा हुए बगैर राजद सिंबल बांट रहा है और एनडीए के अंदर सीटें तय होने के बावजूद बड़े दलों के प्रत्याशियों की सूची नहीं जारी हो पा रही है। सीट बंटवारे में क्या हुआ, जिससे नाम घोषित करना मुश्किल हो रहा?
दूसरी तरफ, तीन दिन पहले बिहार की 40 लोकसभा सीटों को अपने घटक दलों में बांटकर पशुपति कुमार पारस को छोड़ देने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बड़े दल प्रत्याशियों की घोषणा तक नहीं कर पा रहे। सीट शेयरिंग में समय लगना समझ में आता है, लेकिन अब प्रत्याशियों की सूची में देर क्यों? इस सवाल का जवाब ढूढ़ने में यह सामने आ रहा है कि बंटवारा करने में कुछ अनदेखी हो गई है। प्रत्याशियों की मजबूत दावेदारी को दरकिनार कर पार्टियों के बीच सीट बंट गए। घोषणा कभी भी हो सकती है, लेकिन मामला इसी में फंसा है। नाम घोषित होने के बाद हंगामा नहीं बचे, इसलिए कल भी मंथन चला। आज भी दिनभर जगह-जगह चल रहा है।
एक-एक सीट वाले पक्के, मांझी कर चुके नामांकन
सीट बंटवारे में गया और काराकाट को लेकर भी संकट हो सकता था, लेकिन इन दोनों सीटों पर अब कोई बात नहीं हो रही है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के सर्वेसर्वा जीतन राम मांझी को गया सीट से पार्टी ने प्रत्याशी घोषित कर दिया है। गया में चुनाव पहले चरण में है। वह 28 मार्च को नामांकन करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की काराकाट सीट पर चुनाव सातवें चरण में है। उनकी सीट पर भी कोई संशय नहीं है। मांझी और कुशवाहा को एक-एक सीट ही मिली भी है। संकट बाकी तीनों दल भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाईटेड और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के बीच बंटवारे में है। हालत यह है कि भाजपा के किसी नेता को चिराग पासवान की पार्टी से मौका मिले तो चौंकाने वाली बात नहीं होगी।