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 भारत में जातिवाद क्यों है ? एक निष्पक्ष समीक्षा 

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चन्द्र भान पाल

भारत में जातिवाद है लेकिन जब तक वह कथित सबसे श्रेष्ठ जाति को फायदा पहुंचाता है उन्हें दिखाई नहीं देता,जरा ध्यान से देखिए जातिवाद आपकी चुटिया में दिख जाएगा आपके कंधे पर लटके जनेऊ में दिख जाएगा और सबसे खतरनाक रूप में आपके दिमाग में मिलेगा जो खुद को ऊंच और दूसरों को नीच मानने के दृष्टिदोष लिए आपकी आंखों में भी दिख जाएगा, दूसरों के लिए अपमानजनक शब्द उच्चारित करने वाली आपकी जिह्वा पर दिख जाएगा आपके पूर्वजों के लिखे गप्प ग्रंथों में जातिवाद के अलावा और है ही क्या ? 

              भारत के गांवों में जाकर देखिए जाति के आधार पर ही बस्तियां मिलेंगी और जातियों के आधार पर ही मान -अपमान तय होता है !भारत की संपन्नता – विपन्नता का वर्गीकरण करिए जाति वहां सबसे भयंकर रूप में मौजूद है। आप कहते हो जातिवादस्कूल, कालेज, हास्पिटल, प्राइवेट जॉब, बैंक, बिजनेस,राशन दुकान, माल, थियेटर, रेस्टोरेंट, होटेल्स,बस ट्रेन,प्लेन,श्मशान, सब्जी मंडी कहीं भी जातिवाद नहीं है  !

                   किन्तु आपने यह नहीं बताया कि यह कथित एक ही श्रेष्टतम् जाति की नहीं संविधान की देन और आधुनिकता की मजबूरी है कथित एक ही श्रेष्टतम् जाति का बस चले तो हर जगह जातिवाद का नंगा नाच करें।आप कहते हो सरकारी नौकरियों में जातिवाद है,सरकारी पढ़ाई में जातिवाद है,सरकारी लाभ में जातिवाद है ।

आपको एससी -एसटी ओबीसी के आरक्षण से बड़ी तकलीफ है !

            आपके अनुसार वह खुद को हरिजन कहे तो सरकारी नौकरी मिले और हम हरिजन कह दें तो सजा मिले ,आप इसे ही वास्तविक जातिवाद मानते हैं।तो कथित श्रेष्ठ कुल गौरव ! अब तो आपने भी 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण ले लिया इस तरह तो आप भी हरिजन हो गए वैसे सच पूछो तो हरि मतलब भगवान के जन तो आप ही हो ! हरि के आविष्कार से लेकर उसके प्रचार -प्रसार और हरि के नाम पर मिलने वाले सारे लाभ तो आप ही लेते हो और अब ईडब्ल्यूएस का लाभ भी ले रहे हो ! इस तरह हरिजन शब्द के असली हकदार आप ही हैं।

            हे कथित श्रेष्ठ कुल दीपक ! आपने पूछा है कि चार सवर्ण का नाम जिन्होंने जाति के नाम पर दलितों का शोषण किया हो ? सच्चाई यह है कि मुश्किल से चार मिलेंगे जिन्होंने जाति के नाम पर दलितों का शोषण न किया हो !रामायण महाभारत लिखने वाले वाल्मीकि और व्यास दलित हो ही नहीं सकते पहली बात तो शूद्रों को शिक्षा का अधिकार ही नहीं था और दलित होते भी तो अपने समाज के लिए नीच व अपमानाजनक कहानी कतई नहीं लिखते !

राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे या नहीं किसी ने नहीं देखा सिर्फ किताब में है लेकिन राम को अपना आदर्श मानने का दावा करने वाले सवर्णों ने करोड़ों दलितों को अछूत ही समझा है !

              सुदामा कृष्ण की तो बात ही मत करो उस कहानी में भी जातिवाद का ही जहर है जिसमें एक भिखारी भी ब्राह्मण होने के कारण पूजनीय है !आपने दो चार मंदिर तो बता दिया जिसमें दलित पुजारी हैं। लेकिन उन लाखों मंदिरों का जिक्र ही नहीं किया जिसमें सिर्फ ब्राह्मण पुजारी ही हैं।

              दलित राष्ट्रपति तो बना दिया लेकिन यह नहीं बताया कि टाप ब्यूरोक्रेसी में एससी, एसटी ओबीसी के कितने ब्यूरोक्रेट्स हैं ? सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में एससी ,एसटी ,ओबीसी आदि के कितने जज हैं ? मीडिया और कार्पोरेट जगत में भारत के 85 प्रतिशत बहुजनों की कितनी भागीदारी है ?

             कोई दलित – पिछड़ा शंकराचार्य क्यों नहीं है ?राम मंदिर ट्रस्ट में एक भी ओबीसी क्यों नहीं है ?सवाल तो और भी हैं लेकिन आपको कथित एक ही सर्वश्रेष्ठ जाति का जातिवाद राष्ट्रवाद लगता है और दलित -पिछड़े अपने संख्यानुपात भागीदारी की मांग करें तो वह आपको जातिवाद लगता है !

             आपका सवाल है कि 70 सालों से आरक्षण लेकर कितने विश्व स्तर के डाक्टर, इंजीनियर, टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट,अर्थशास्त्री, वेपन्स एक्सपर्ट, सीईओ आदि बने हैं ? जिन्होंने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया हो ? 

आपके अनुसार आरक्षण की वजह से प्रतिभाशाली लोगों को अवसर नहीं मिलता इसलिए वे भारत का नाम दुनिया में रोशन नहीं कर पाते।

                ईमानदारी से सोचिए इसका मूल कारण भी एक ही कथित सर्वश्रेष्ठ जाति का वर्चस्व ही है जिसमें शिक्षा व्यवस्था में तर्कवाद वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने के बजाय अंधविश्वास पाखंडवाद अवैज्ञानिकता को बढ़ावा दिया जाता है पहली कक्षा से ही बच्चों को भक्त बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, उदाहरणार्थ कबीरदास कमल की पत्ती पर मिलते हैं और मरते हैं तो उनके मृत शरीर की जगह फूलों का ढेर मिलता है ! बड़ा होकर वह डाक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक बन भी गया तो तर्कशीलता वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने वाले देशों के डाक्टरों इंजीनियरों वैज्ञानिकों के सामने कैसे टिकेगा ?

            और फिर आरक्षण व्यवस्था खराब है तो 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण लेने का सभी सवर्णों को विरोध करना चाहिए था।जाति प्रमाणपत्र हटाकर सिर्फ भारतीय प्रमाणपत्र बनना चाहिए आपके विचारों का हम स्वागत करते हैं।

संविधान के वर्गीकरण के अनुसार शासन प्रशासन में हर जगह संख्यानुपात भागीदारी सुनिश्चित होनी ही चाहिए ।

               हम भी तो चाहते हैं कि देश से जातिवाद खत्म हो लेकिन हम यह भी मानते हैं कि जातिवादी दंभ पालने वाले सवर्ण,सर्वश्रेष्ठता का दंभ पालने वाले कथित सिर से पैदा होनेवाले  ही जातिवाद के असली पोषक एवं लाभार्थी भी हैं यह वर्ग अपने दिमाग से जातिवादी दंभ निकाल फेंके तो देश से जातिवाद की समस्या स्वत: ही खत्म हो जायेगी।

               आरक्षण तो जातिवाद से शोषित पीड़ित वंचित जातियों को भी प्रतिनिधित्व देने का एक संवैधानिक प्रयास मात्र है जातिवाद का कारण नहीं, जातिवाद का कारण सवर्णों और कथित एक ही जन्म से सर्वश्रेष्ठ होने का दंभ पाले एक जाति विशेष की श्रेष्ठता की दंभी मानसिकता में है बदलाव की जरूरत वहां है ।बीमारी कहां है और आप इलाज आरक्षण में ढूंढ़ रहे हैं ?

यह भी एक प्रकार का जातिवाद ही है।

           – चन्द्र भान पाल बी एस एस , मुंबई, संपर्क – 72082 17141

              संकलन -निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र 

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