अविनाश चंद्र
विगत 22 तारीख को राममंदिर अयोध्या में रामलला की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा हुई । मेरे कमरे में ऋग्वेद, वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस, भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत महापुराण, कुछ उपनिषद ग्रंथ रखे हुए हैं । अतः मैंने उन ग्रंथों पर एक दृष्टि डाली और प्राचीन तथा वर्तमान शिक्षण पद्धति की तुलना करने लगा ।
राजा दशरथ जी के राज्य में कुछ विद्यालय सुगम तथा कुछ विद्यालय दुर्गम नहीं होते थे । कुछ विद्यालय उत्कृष्ट और कुछ विद्यालय निकृष्ट नहीं होते थे । गुरुजनों की इलेक्शन ड्यूटी नहीं लगती थी । मैंने रामायण, रामचरितमानस, वेद, उपनिषद में कहीं भी नहीं देखा कि किसी गुरुजी का छः प्रतियों में स्पष्टीकरण लिया गया हो या किसी गुरुजी का वेतन रोका हो या उनकी वेतन-वृद्धि कम कर दी गई हो । मैंने ऋग्वेद का अध्ययन करते समय पाया कि उस समय तमाम महिला ऋषिकाएं यथा – अपाला, घोषा, सिकता, ब्रह्मवादिनी आदि थीं लेकिन ऋग्वेद में यह कहीं भी उल्लेख नहीं मिला कि किसी महिला ऋषिका के चिकित्सा अवकाश , मातृत्व अवकाश या बाल्य देखभाल अवकाश पर आपत्ति लगाई गई हो । संपूर्ण रामायण, वेद, रामचरितमानस में कहीं भी उल्लेख नहीं है कि राजा दशरथ ने वशिष्ठ जी या विश्वामित्र जी का स्पष्टीकरण लिया हो , वेतन-वृद्धि रोक दी हो , पेंशन से वंचित कर दिया हो , जिंदगी भर दुर्गम पर्वतीय इलाकों में रहने पर विवश किया हो, जो चमचे किस्म के लोग हैं उनकी जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों में नियुक्ति कर दी हो । ये सब अनर्गल बातें हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में नहीं हैं ।
इन धर्मग्रंथों का अवलोकन करते समय मैंने पाया कि उस समय शिक्षा में आचरण पर बहुत बल दिया जाता था । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज प्रभु श्रीरामचंद्र जी के बारे में लिखते हैं कि
प्रात काल उठि के रघुनाथा । मात पिता गुरु नावहिं माथा ।।
भगवान श्रीराम चंद्र जी प्रातः काल उठते हैं और माता पिता तथा गुरु के चरणों में प्रणाम करते हैं । मैंने वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी की श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं देखा रामचंद्र जी के इतने परसेंटेज और लक्ष्मण जी के इतने परसेंटेज थे । वे लोग परसेंटेज लाने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा , कोटा और मुखर्जीनगर दिल्ली के कोचिंग सेंटरों द्वारा लूटे खसोटे जाने की व्यवस्था से पूर्णतः मुक्त थे । उनके ऊपर उनके मॉं बाप द्वारा इंजीनियर, डॉक्टर या आई ए एस / पी सी एस बनने का दबाव नहीं था । मैंने इन ग्रंथों में कहीं नहीं पाया कि कोई भी अभिभावक गुरु वशिष्ठ जी तथा गुरु विश्वामित्र जी को यह ताना मार रहा हो कि और गुरुजी ! खूब वेतन पा रहे हो । मौज हो रही हो । भगवान श्रीराम का राज्य तो छोड़ दीजिए , रावण के राज्य में भी गुरु शुक्राचार्य जी को कोई भी राक्षस ऐसा उलहना नहीं देता है । मैंने मंत्री सुमंत्र जी को खराब परीक्षाफल का सारा दोष गुरुजनों पर डालकर ग्रीष्मावकाश तथा शीतावकाश में विद्यालय खोले जाने का फरमान जारी करते हुए कहीं नहीं देखा ।
मैंने इन ग्रंथों में पाया कि प्राचीन काल में भारत देश में गुरुजनों का बहुत सम्मान था । शिक्षा परसेंटेज प्रधान न होकर आचरण प्रधान होती थी । आचरण पर बहुत ध्यान दिया जाता था । निरीह अध्यापकों पर साहबी झाड़ना उस युग में बिल्कुल नहीं होता था । रामचरितमानस में राक्षसों से अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को मॉंगने के लिए विश्वामित्र जी सीधे राजा दशरथ के दरबार में चले जाते हैं । इस पर राजा दशरथ जी कहीं नहीं कहते कि सीधे मेरे दरबार में आकर आपने प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है । आप पर कार्यवाही होगी । यहॉं तक कि राजा दशरथ जी स्वयं उठकर विश्वामित्र जी का स्वागत करते हैं । रामचरितमानस में काकभुशुण्डि जी को गुरु का अनादर करते देख कर शिव जी काकभुशुण्डि जी को श्राप दे देते हैं ।
उस युग में अनुशासन भी बहुत था । बालकाण्ड में भगवान राम मन ही मन माता जानकी को और माता जानकी मन ही मन भगवान राम को पसंद करती हैं लेकिन जबतक गुरु विश्वामित्र जी भगवान राम को आज्ञा नहीं दे देते तबतक भगवान राम धनुष भंग करने के लिए खड़े नहीं होते ।
विश्वामित्र समय सुभ जानी । बोले अति सनेहमय बानी ।।
उठहु राम भंजहु भवचापा । मेटहु तात जनक परितापा ।।
आज का विद्यार्थी होता तो भाड़ में जाएं गुरुजी । सबसे पहले तो धनुष तो मैं ही तोड़ूंगा । जब राजा दशरथ जी बारात लेकर जनकपुरी पहुॅंचते हैं तो राम और लक्ष्मण दोनों ही पिता जी से मिलने की तीव्र इच्छा होने पर भी उनसे मिलने के लिए तबतक नहीं जाते जबतक गुरु विश्वामित्र जी उनके मनोभाव को पहचानकर उनको आज्ञा नहीं दे देते । आज के विद्यार्थी होते तो गुरुजी का सिर ही फोड़ देते ।
मैं इन ग्रंथों पर पुनः एक दृष्टि डालने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुॅंचा कि प्राचीन काल में गुरुजनों का सम्मान , अनुशासन , आचरण प्रधान शिक्षा पद्धति ही ऐसे कारक थे जिन्होंने भारत देश को विश्वगुरु के पद पर अभिषिक्त किया था । मैं कामना करता हूॅं कि भारत देश उठे और पुनः अपने उसी गौरव को प्राप्त करे ।
अविनाश चंद्र
प्रवक्ता हिंदी
अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटरमीडिएट काॅलेज बिलखेत पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड ।