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देश भर में मजदूर हड़ताल का व्यापक असर

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नई दिल्ली/पटना/प्रयागराज। कर्मचारियों,किसानों और आम लोगों पर प्रतिकूल असर डालने वाली सरकार की ग़लत नीतियों के विरोध में केंद्रीय श्रमिक संगठनों की दो दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल आज से शुरू हो गई। देश बचाने के लिये हम हड़ताल पर हैं (#WeStrikeForNation)और बैंक बचाओ देश बचाओ (#BankBachao_DeshBachao)जैसे नारों और हैशटैग के साथ कोयला,इस्पात,तेल,दूरसंचार,बैंक और बीमा क्षेत्रों सहित सैकड़ों सार्वजनिक क्षेत्रों के कामगारों ने आज से दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल शुरू किया। आज हड़ताल का पहला दिन था। कर्मचारी सरकार द्वारा श्रम सुधारों और निजीकरण की कोशिशों का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा मनरेगा के लिए बजट आवंटन बढ़ाने और संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को नियमित करने की भी मांग कर रहे हैं।

दिल्ली में हड़ताल

केंद्र सरकार की देश विरोधी,मनुष्य विरोधी निजीकरण की नीतियों के ख़िलाफ़ यह हड़ताल 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के एक संयुक्त मंच की अपील पर शुरु हुआ है। इस संयुक्त मंच में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू),ऑल-इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी),इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक),हिंद मजदूर सभा,अखिल भारतीय यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर शामिल हैं। जबकि ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन कमेटी,सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेन्स एसोसिएशन,ऑल-इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स,लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने कहा कि उसे असंगठित क्षेत्र के श्रमिक समूहों से भी समर्थन मिला है,जिसमें निर्माण और घरेलू कार्य क्षेत्र भी शामिल है।

झारखंड में प्रदर्शन

दी प्लेटफॉर्म ऑफ सेंट्रल ट्रेड यूनियंस और सेक्टोरल फेडरेशंस एंड एसोसिएशंस के बयान के मुताबिक दो दिवसीय हड़ताल में ज़रूरी सेवाओं के कर्मचारी भी हिस्सा ले रहे हैं। बयान में दावा किया गया है कि रोडवेज,ट्रांसपोर्ट और इलेक्ट्रिसिटी जैसे इसेंशियल सर्विसेज के कर्मचारियों ने भी हड़ताल में हिस्सा लिया है। बैंकिंग और इंश्योरेंस समेत फाइनेंशियल सेक्टर भी इसमें शामिल है।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में महिलाएं जुलूस निकालती हुईं

4 दिन बैंकिंग कामकाज ठप

हालांकि केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया में बड़े वर्ग को बहुत फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन नगदी पर आधारित कारोबार और निम्न वर्ग के लोगों के जीवन पर बैंक हड़ताल से प्रभावित हुआ है। साप्ताहिक अवकाश के चलते बैंक पहले ही 2 दिन बंद थे। 26 मार्च को महीने का चौथा शनिवार होने और 27 मार्च को रविवार के चलते बैंक पहले ही लगातार 2 दिन बंद रह चुके हैं। अब सोमवार (28 मार्च) और मंगलवार (29 मार्च) को हड़ताल के चलते लगातार 4 दिनों के लिए देश में बैंकिंग कामकाज ठप है।

हैदराबाद में प्रदर्शन करते मजदूर

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की महासचिव अमरजीत कौर ने पीटीआई से कहा है कि केंद्रीय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मोर्चे की तरफ से बुलाई गई दो दिनों की राष्ट्रीय हड़ताल को झारखंड,छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कोयला खनन क्षेत्रों के अलावा असम, हरियाणा,दिल्ली,पश्चिम बंगाल,तेलंगाना,केरल,तमिलनाडु,कर्नाटक,बिहार,पंजाब,राजस्थान,गोवा और ओडिशा के औद्योगिक क्षेत्रों से अच्छी प्रतिक्रिया देखी जा रही है।

भिलाई में सभा करते मजदूर-कर्मचारी

उन्होंने कहा कि बैंकों एवं बीमा क्षेत्र की सेवाएं भी हड़ताल की वजह से प्रभावित हुई हैं। वहीं स्टील एवं तेल क्षेत्रों पर इसका आंशिक असर देखा जा रहा है। इस हड़ताल ने बैंकों के कामकाज पर भी असर डाला है। हालांकि यह असर आंशिक रूप से ही देखा जा रहा है क्योंकि बैंक कर्मचारी संगठनों का एक हिस्सा ही इस हड़ताल का साथ दे रहा है। निजी क्षेत्र के नए बैंकों का कामकाज इससे लगभग बेअसर है।

हरियाणा में यातायात कर्मी सुबह ही हड़ताल की तैयारी करते हुए

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए)के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा कि इस हड़ताल का असर पूर्वी भारत में ज्यादा देखा जा रहा है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तमाम शाखाएं बंद हैं। अन्य क्षेत्रों में बैंकों की शाखाओं में अधिकारियों की मौजूदगी होने के बावजूद कर्मचारियों के अनुपस्थित होने से कामकाज प्रभावित हो रहा है। भारतीय बैंक कर्मचारी महासंघ (बीईएफआई)और अखिल भारतीय बैंक अधिकारी संघ (एआईबीओआई)भी इस हड़ताल को अपना समर्थन दे रहे हैं।

मदर डेयरी, दिल्ली के कर्मचारी जुलूस निकालते हुए

आमजन की प्रतिक्रिया

फूलपुर में बैंक ऑफ बड़ौदा के सामने चल रहे सैलून में बैठे लोगों से एक व्यक्ति जो किसी काम से बैंक में आया था ने पूछा, “भैय्या बैंक क्यों नहीं खुला आज।” दूसरे व्यक्ति ने बताया कि “बैंककर्मी दो दिन के हड़ताल पर हैं इसलिये सोमवार और मंगलवार को बैंक बंद है। आज पेपर में भी है, तुमने पेपर नहीं देखा क्या। और वो व्यक्ति ‘नहीं’बोलते हुये लौट गया।”

दिल्ली के वजीरपुर का दृश्य

इसके बाद सैलून में चर्चा शुरु हो गई कि सरकारी बैंक अच्छे हैं या प्राइवेट। पेटीएम में केवाईसी कराने आया था केवाईसी नहीं हो रही रिजर्व बैंक ने रोक लगा दी है। मोबाइल दुकान वाला कह रहा था कि यस बैंक के मालिक ने बड़ा घोटाला किया है इसलिये रोक लगी है। सैलून चलाने वाले ने कहा कि सरकारी बैंक बंद हो गये तो बैंकों में आम लोग पैसा ही नहीं रखेंगे। आखिर अपनी मेहनत की कमाई कौन लुटायेगा।

पुदुचेरी में हड़ताल

एक चौथे आदमी जो ग्राहक था और किसी सेटल परिवार और वर्ग का लग रहा था उसने निजी बैंकों की तरफदारी करते हुये कहा कि सरकारी बैंक वाले चार दिन चक्कर लगवाते हैं निजी बैंकों में अच्छी खातिरदारी होती है। और फट से काम होता है। इसके बाद वहां मौजूद अन्य लोग एक साथ हो लिये। एक अधेड़ आदमी ने कहा प्राइवेट बैंक भी बड़े लोगों के लिये उतने ही अच्छे हैं जितने प्राइवेट अस्पताल और प्राइवेट स्कूल। और आम आदमी के लिये उतने ही बुरे हैं जितने प्राइवेट स्कूल और प्राइवेट अस्पताल।

कोलकाता में जुलूस निकालते मजदूर

एक चेतना संपन्न मंजदूर जो कि नोएडा की एक फैक्ट्री में काम करता है नाम न छापने की शर्त पर अपनी प्रतिक्रिया में कहता है कि निजी क्षेत्र को भी इस हड़ताल में साथ आना चाहिये था जो कि नहीं हुआ। उक्त मज़दूर यह भी कहता है कि 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने अचानक से हड़ताल की घोषणा कर दी ज़मीन पर बिना कुछ काम किये ही। कामगारों और मजदूरों को मोबिलाइज करना चाहिये था। सिर्फ़ एक दिन दो दिन के हड़ताल से इस निर्लज्ज़ सरकार तक अपनी बात नहीं पहुंचाई जा सकती है। हाल ही में अपने लक्ष्य में सफल हुये किसान आंदोलन से कुछ तो लेना चाहिए था।

हल्द्वानी में सभा करते मजदूर

उत्तराखंड में हड़ताल का अच्छा-खासा असर देखा गया। यूनियनों का संयुक्त समन्वय, हल्द्वानी के बैनर तले हल्द्वानी की सभी यूनियनों ने दो दिवसीय अखिल भारतीय आम हड़ताल के पहले दिन में हिस्सा लेकर अपने-अपने कार्यालयों और संस्थानों में हड़ताल की व बुद्धपार्क में संयुक्त प्रदर्शन व सभा का आयोजन किया। जिसमें ऐक्टू,बीमा कर्मचारी संघ,बैंक यूनियन एआईबीओए,उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन,यूनियन बैंक ऑफिसर्स स्टाफ एसोसिएशन,सनसेरा श्रमिक संगठन, भाकपा (माले),आइसा,उत्तर प्रदेश उत्तराखंड मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन,सीटू,पंजाब बेवल गियर्स वर्कर्स यूनियन,बीएसएनएल कैजुअल एंड कॉन्ट्रेक्ट वर्कर्स यूनियन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील भोजनमाता यूनियन,उत्तराखंड निर्माण मजदूर यूनियन,अखिल भारतीय किसान महासभा, परिवर्तनकामी छात्र संगठन आदि के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

संयुक्त सभा को संबोधित करते हुए विभिन्न ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि “‘अच्छे दिन’, ‘सबका साथ-सबका विकास’, आदि – मोदी सरकार द्वारा बारंबार दोहराये जाने वाले नारे व वादे जुमले साबित हो चुके हैं। मोदी शासन में करोड़ों कामगार गरीबी और भुखमरी के दलदल में और ज्यादा डूब गये हैं,वहीं कुछ बेहद अमीरों ने अपनी दौलत को कई अरब और बढ़ा लिया है। और आज राष्ट्र की 77 प्रतिशत संपत्ति 1 प्रतिशत अमीरों के कब्जे में है। जबकि लाखों प्रवासी मजदूरों के वे घाव अभी भी सूखे नहीं हैं जो उन्हें कोविड की पहली लहर में क्रूर लॉकडाउन में उनके जीवन और जीविका के विनाश से मिले थे।
वक्ताओं ने कहा कि ‘हर साल 2 करोड़ नौकरियों देने’के वादे के बरखिलाफ,मोदी सरकार की नीतियों,नोटबंदी समेत ने रोजगार व आजीविका का व्यापक विनाश किया जिसके चलते पिछले चंद सालों में 20 करोड़ से अधिक रोजगार खत्म हो गये। और छंटनी एवं बंदी एक आम बात बन गई है। सरकारी विभागों में लाखों खाली पड़े हुये पद भरे नहीं जा रहे हैं।

तमिलनाडु में जुलूस निकालते मजदूर-कर्मचारी

इसी तरह से तमिलनाडु में भी हड़ताल का अच्छा खास असर देखा गया। विभिन्न ट्रेड यूनियनों के बैनर तले कर्मचारियों ने जुलूस निकाला और सरकार विरोधी नारे लगाए। इस मौके पर नेताओं का कहना था कि इस मजदूरों और कर्मचारियों की इस लड़ाई को उसके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा।
देश के विभिन्न आद्योगिक इलाकों में भी हड़ताल बेहद कामयाब रही। खास कर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों और उसमें भी स्टील और रक्षा क्षेत्र तक में इसका खासा असर रहा। भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारियों ने सभा कर हड़ताल का समर्थन किया।

जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्र भी हड़ताल में शामिल

इसके अलावा दिल्ली के अलग-अलग औद्योगिक इलाकों में भी मजदूरों ने जुलूस निकाला। जंतर-मंतर पर ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में प्रदर्शन किया गया।

दिल्ली के कीर्तिनगर का दृश्य

असम के गुवाहाटी से लेकर पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों में आज जुलूसों का दौर चला। जगह-जगह फैक्टरियों के गेट पर मजदूरों ने सभाएं की और सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ाई का संकल्प जाहिर किया। केरल के विभिन्न हिस्सों में हड़ताल बेहद कामयाब रही। खास बात यह है कि यहां हड़ताल को सरकार का भी समर्थन हासिल था।

असम का दृश्य

पटना के गोलंबर चौराहे पर आशाकर्मियों ने जुलूस निकाल कर सभा की। आशाकर्मियों के वेतन को बढ़ाने की मांग कई सालों से लंबित है। लेकिन सरकार उस पर कोई गौर नहीं कर रही है। लिहाजा आशाकर्मियों ने एक बार फिर इस मौके पर अपनी मांगों को आगे बढ़ाते हुए उसके तत्काल पूरा होने की अपेक्षा जाहिर की है। देश का शायद ही कोई हिस्सा हो जो हड़ताल से प्रभावित न रहा हो। यहां तक कि पुदुचेरी में भी मजदूरों ने जुलूस निकाला और आम सभा की। दिल्ली से सटे हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में मजदूर हड़ताल पर रहे।

पटना में सभा करती आशाकर्मी

इतना ही नहीं इस हड़ताल को किसानों का भी समर्थन हासिल था। पंजाब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक जगह-जगह किसान मजदूरों के समर्थन में आगे आए।

भारतीय मजदूर संघ ने नहीं दिया किसानों मज़दूरों कामगारों का साथ

वहीं 10 केंद्रीय यूनियनों के आह्वान के जवाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने दो दिवसीय ‘हड़ताल’ को राजनीति से प्रेरित बताते हुये 24 मार्च को घोषणा की थी कि वह इसमें भाग नहीं लेगा। बता दें कि संयुक्त मंच ने 22 मार्च को एक बैठक में हड़ताल की तैयारियों की समीक्षा की थी और कहा था कि कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी सरकार की “मजदूर विरोधी, किसान विरोधी,जन विरोधी और राष्ट्र विरोधी” नीतियों के विरोध में हड़ताल पर रहेंगे। संयुक्त मंच ने 23 मार्च को अपने बयान में कर्मचारी भविष्य निधि जमा पर ब्याज में हालिया कमी को लेकर केंद्र के ख़िलाफ़ प्रहार किया था। गौरतलब है कि 5 राज्यों में चुनाव परिणामों से उत्साहित होकर,केंद्र की भाजपा सरकार ने मेहनतकश लोगों पर हमले तेज कर दिए हैं,पीएफ संचय पर ब्याज दर को 8.5 प्रतिशत से घटाकर 8.1% कर दिया है,अचानक वृद्धि पेट्रोल,एलपीजी,केरोसिन और सीएनजी की कीमतों में,अपने मुद्रीकरण के कार्यक्रम को लागू करने के लिए कदम उठा रहे हैं।

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