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स्त्रियों की मुक्ति और सामाजिक उत्पादन

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मेघना प्रधान

‘स्त्रीवाद की सैद्धांतिकी जेंडर विमर्श’,इस पुस्तक में स्त्री और पुरुष के लिंगभेद के कारण उत्पन्न समस्याओं पर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है। स्त्रियों के जीवन में जो संघर्ष रहता है, स्त्रियों का हमारे जीवन में क्या महत्व रहता है, स्त्रियों को क्यों स्त्री होने के कारण इन संघर्षों का सामना करना पड़ता है? उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता है,तुम स्त्री हो, तुम्हारे लिए अलग नियम है,तुम पुरूषों से मुकाबला नहीं कर सकती, स्त्रियों की ‌इसी स्थिति को इस पुस्तक में दिखाने का प्रयास ‌किया गया है।
इस पुस्तक के भूमिका ही लिखा गया है कि लिंगभेद सर्वत्र है।जब हम बच्चियों को रंग-बिरंगे,चटक-मटक वस्त्र पहनाते हैं, बच्चों के लिए बंदुक वाले खिलौने खरीदते हैं,जब हम लड़कियों लड़के के तरह हरकतें करने से मना करते हैं और लड़कों का लड़कियों की तरह संकोची होने पर मजाक उड़ाते हैं,तब हम लिंगभेद का ही शिकार होते हैं।
इसमें यह भी दिखाया गया है कि किस तरह धर्म भी स्त्रियों को पुरुषों के तुलना में गौण और हीन समझता है।कुछ धार्मिक ग्रंथ दावा करते हैं कि सृष्टि रचना के प्रारंभ में स्त्रियाँ पापपूर्ण प्राणियों के रूप में प्रकट हुयी थी। अग्नि,साँप और विष सब मिलकर एक हो गए तब स्त्रीयाँ प्रकट हुयी। मनुस्मृति में मनु का तर्क यह है कि सृष्टि रचना के समय में स्त्रियों में झूठ बोलने, आभूषणों के प्रति मोह, क्रोध,क्षुद्रता आदि दुर्गुणों का समावेश विधाता ने कर दिया। लगभग सभी धर्मों में स्त्रियों को लेकर ऐसी ही मान्याताएँ हैं। ईसाईयों की आस्था वर्जिन मैरी की शक्ति में है जो शाश्वत कुमारी होने के साथ ही ईश्वर की माँ है। ईसाईयों में औरतों को वर्जिन मैरी के समान माना जाता है जो शाश्वत कुमारी रहती है और ईश्वर सेवा में स्वयं को निहित कर देती है। प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में पुरुषों का दावा है कि स्त्रियाँ जमीन है और पुरुष बीज बोने वाला।इस तरह धार्मिक खाँचे में स्त्रियों को बंद रखा गया,उसे अधिकारो से वंचित रखा गया।
साधारणतः आदर्श स्त्री उसे ही माना जाता है जो घर का काम करें,घर को सजाने संवारने के साथ पति और बच्चों की सेवा करे।ये एक थीम है सभ्य और आदर्श स्त्री होने का। यही आदर्श स्त्री की पहचान है।और वहीं कोई स्त्री इसके विपरित चलें तो उसके उपर अनेक लांछन लगाए जाते हैं, समाज उसके उपर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।इस प्रकार हमने स्त्रियों के लिए एक आदर्श का घेरा बनाकर उन्हें उस घेरे में बंद कर दिया है और उसी घेरे के अन्दर उसके चरित्रों की जाँज पड़ताल करते हैं।
इस‌ पुस्तक में स्त्री पुरुष के लिंगभेद वाली समस्याओं के साथ स्त्रियों के हक की बात भी कही गया है।एक मैगजीन ने घोषणा की कि “Man may be from Mars but woman be down to The Earth”। इसमें औरतों की घरेलू दक्षता की प्रशंसा करते हुए मर्दों की भूमिका को अप्रासंगिक बताकर उसे खारिज किया गया है।
आज स्त्रियाँ रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती देते हुए आगे बढ़ रही है। स्त्रियाँ चाहे सुविधा भोगी वर्ग की हो या श्रमिक वर्ग की,वे पुरुषों की भूमिका अपनाने लगी है।वे पुरुषों से कंधे मिलाकर चल रही है।जेंडर उसके लिए बाधक नहीं है और न ही अयोग्यता के ‌कारण।
अक्सर ऐसा ‌देखा गया है ‌कि स्त्रियाँ पुरुषों से मुकाबला करने के ‌होड में अपनी वास्तविक गुणों को भी खो देती है,उसके अन्दर से करूणा,दया, विनम्रता जैसी नारी सुलभ गुण गायब हो जाते हैं।इसे आज के आधुनिक स्त्रियों में देखा जा सकता है।
जब तक स्त्रियाँ सामाजिक उत्पादन के कार्यों के बाहर रहकर घर के कार्यों तक सीमित रहेगी तब तक उनकी मुक्ति तथा पुरुष के साथ उनके सामाजिक समानता असंभव है। स्त्रियों की मुक्ति तभी संभव है जब वे सामाजिक स्तर पर उत्पादन के कार्यों में बड़े पैमाने पर भागीदारी करेंगी और घरेलू कर्तव्यों के केन्द्र में गौण हो जाएंगे।

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